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जन्म से लेकर मृत्यु के द्वार तक साथ देते हैं डॉक्टर

 जन्म से लेकर मृत्यु के द्वार तक साथ देते हैं डॉक्टर



 ढीमरखेड़ा | “मरीजों का देखकर हाल सबका दिल कांपता है,ये डॉक्टर के बस की बात है जो सबको संभालता है।” शीर्षक पढ़कर दंग मत होना यह कहानी हैं डॉक्टर की, मसीहा क्या करते हैं, विकट परिस्थितियों में भी डटकर खड़े रहते हैं, चुनौतियों का सामना करते हैं और अपनी जान जोखिम में डालकर औरों की जान बचाते हैं। डॉक्टर मसीहा का पर्याय है। “अधमरे इंसान में जान फूँकने, रोगियों को स्वस्थ करने और हमारे अपनों को दूर जाने से जो बचाने में डटे रहते हैं वही डॉक्टर है, वही मसीहा है।” ईश्वर, माता-पिता और रिश्तेदारों की सूची में यदि डॉक्टरों को शामिल न किया जाए तो मन संतुष्ट नहीं होता है। जब-जब लगा कि अब इस दुनिया को अलविदा कहने का समय आ गया है तब-तब ईश्वर के रूप में डॉक्टरों ने हम लोगों के जीवन में दस्तक दी और असमय मृत्यु को खदेड़ दिया। ‘थैंक यू डॉक्टर’ वाक्य कम, इमोशन ज्यादा है। डॉक्टरों के समुदाय सदियों से साबित करते रहे हैं कि ज़िन्दगी दोबारा भी मिल सकती है।ऑपरेशन थियेटर, ICU, वेंटिलेटर और बेड रेस्ट के बाद परिजन रोगियों से मिलते हैं लेकिन रोगियों की बिगड़ती और सुधरती स्थिति से डॉक्टर हर-पल रूबरू होता है। रोगियों की खुशी डॉक्टरों को चिंतामुक्त करती है जबकि उनकी नाजुक स्थिति डॉक्टरों की नींद उड़ा देती है। दरअसल डॉक्टर का मूल लक्ष्य जीविकोपार्जन अथवा धंधा करना नहीं है बल्कि ज़िन्दगी और मौत से जूझ रहे इंसान को येन-केन-प्रकारेण बचाना है। यह पेशा जितना लुभावना लगता है इसमें जिम्मेदारी और नैतिकता की माँग उतनी ही ज़्यादा की जाती है। हमारे जीवन को सँवारने में क्या केवल माता-पिता और हमारे अपनों का योगदान है? “खेत में किसान, सीमा पर सैनिक, विद्यालय में शिक्षक और अस्पताल में डॉक्टर न रहे तो जीना मुश्किल हो जाएगा।” हम लोगों के जीवन को आनंदमय बनाए रखने के लिए जो लोग तप, त्याग और वीरता का परिचय दे रहे हैं; हमें उनके प्रति शुक्रगुज़ार होना चाहिए। जन्म से लेकर अब तक हम लोगों की ज़िन्दगी को खतरे की परिधि से बाहर रखने में डॉक्टरों की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही है। कई की ज़िन्दगी में डॉक्टर का आगमन जन्म से पूर्व ही हो जाता है। “हमारी उपस्थिति इस दुनिया में सार्थक हो, इसके लिए माता-पिता के साथ-साथ एक डॉक्टर की भूमिका कितनी संवेदनशील हो जाती है, क्या इसके बारे में कभी हमने सोचा है!” कोई राष्ट्र तभी टिकाऊ रूप में तरक्की करता है जब उसके नागरिक स्वस्थ, शिक्षित और संपन्न हों। इसीलिए आर्थिक नीति और शिक्षा नीति के साथ-साथ स्वास्थ्य नीति की भी आवश्यकता पड़ती है। परिणामस्वरूप भारत में राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति वर्ष 1983, 2002 और 2017 में लाई गई। इनके माध्यम से स्वस्थ भारत की परिकल्पना को स्वीकार करने की कोशिश की जा रही है। इन कोशिशों में डॉक्टरों का योगदान सबसे अधिक है। शत-प्रतिशत स्वस्थ समाज बनाने के संकल्प के साथ अस्पतालों में डटे रहने वाले डॉक्टर- मानव सभ्यता में सबसे सभ्य प्राणी नज़र आते हैं। गौरतलब है कि जीवन का मूल्य तय नहीं किया जा सकता है, जीवन अनमोल है। जन्म और मृत्यु सबसे बड़ा सत्य है। किंतु असमय मृत्यु सबसे बड़ी त्रासदी है। आधुनिक मानव सभ्यता जिन दो पेशों पर सबसे ज़्यादा गौरवान्वित हो सकती है उनमें टीचर्स और डॉक्टर्स हैं। दरअसल एक डॉक्टर एक दिन में अनेकों बार जीता और मरता है। जब भी उसके हाथों कोई रोगी ठीक होता है तब उसे लगता है कि वह खुद ठीक हुआ है, और जब तमाम कोशिशों के बाद भी वह किसी रोगी को बचा नहीं पाता है तब लगता है कि अब सब खत्म हो गया। इस प्रकार की स्थितियों से प्रतिदिन दो-चार होना आसान नहीं होता है। आसान नहीं होता किसी की अंतिम साँस में भी जीवन की उम्मीद को देखना। हर कठिन और जटिल परिस्थिति को वह सरल और सहज कर देता है इसलिए हर इंसान डॉक्टर की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देखता है। “यदि अस्तित्त्व विहीन हो जाना इस जीवन की नियति है तो अस्तित्त्व को बरकरार रखना डॉक्टरों के जीवन का कर्तव्य!” सुदूर गाँव में स्वास्थ्य की कम सुविधा के होते हुए भी डॉक्टर रोगियों के दुख-तकलीफ़ में सुई, दवाई, मरहम-पट्टी और कायदे-भरे वाद-व्यवहार से उसी जिजीविषा को बरकरार रखते हैं जिनकी कोशिश शहरों के बड़े-बड़े अस्पतालों में बड़े-बड़े डॉक्टरों के द्वारा की जाती है। मशीनें, उपकरण, सुविधा और इंफ्रास्ट्रक्चर में अंतर दिख सकता है किंतु रोगियों के प्रति चिंता में अंतर न दिखेगा! गाँव, कस्बा, नगर और महानगर सब जगह डॉक्टर ‘केयर टेकर की भूमिका’ में दिख जाएँगे। डॉक्टर सरकारी हो या निजी- सबका मूल लक्ष्य रोगी की जान की रक्षा करना है। “बीमारी छोटी हो या बड़ी, खतरा कितना ही भयावह क्यों न हो, दर्द कम हो या ज़्यादा, डॉक्टर रियल हीरो की तरह हमारे जीवन में इंट्री करता है, और हमें बचाकर किसी और को बचाने के लिए निकल जाता है। डॉक्टरों की यात्रा किसी योद्धा की यात्रा से कम नहीं होती है।” दरअसल अपनों को खोने का दर्द या तो आप समझ सकते हैं या फिर डॉक्टर! जब भी किसी की ज़िन्दगी में किसी डॉक्टर की इंट्री होती है तब मरीज और उनके परिवार को यही भरोसा होता है कि डॉक्टर साहब सब कुछ ठीक कर देंगे। डॉक्टर को खुद पर भरोसा होता है कि मैं इसे बचा ही लूँगा! किंतु उनकी आँखों के सामने जब कोई मरीज दम तोड़ देता है तब वह डॉक्टर भी टूट जाता है। यह अलग बात है कि उनके टूटने को बहुत कम लोग महसूस कर पाते हैं। “टूटना किसे कहते हैं यह कोरोना काल के किसी डॉक्टर से पूछिए, औरों की जान बचाते-बचाते वे खुद मृत्यु की गोद में जा चुके थे। उनकी आँखों के सामने उनके ही साथी डॉक्टरों की जान चली गई और वे कुछ न कर पाए। असली हार और जीत को यदि किसी ने सलीके से महसूस किया है तो वह डॉक्टर्स ही हैं।” बड़ी-बड़ी बीमारियों से ग्रसित मरीजों को दोबारा ज़िन्दगी देते हैं डॉक्टर और कई बार डॉक्टर ही संक्रामक रोग की चपेट में आ जाते हैं। जान बचाने में जान गंवा देने का ऐसा उदाहरण सैनिकों के अलावा कोई और प्रस्तुत नहीं कर सकता है। कोरोना काल में डॉक्टर्स ही थे जो खुद की जान की परवाह किए बगैर मरीजों की जान बचाने की कोशिश करते रहे। जब लोग अपनों से दूरियाँ बना रहे थे तब डॉक्टर्स ‘PPE किट’ पहन मुस्तैदी के साथ ‘कोरोना वारियर्स’ की भूमिका निभा रहे थे। मरीजों की जान बचाते हुए अपनी जान गंवा देने वाले डॉक्टरों की संख्या सैकड़ों में हैं। “अपनी ज़िन्दगी तबाह कर औरों की ज़िन्दगी आबाद करने वाले का उदाहरण दुनिया ने शाबाशी और मायूसी के साथ देखा है।” जब-जब मानव सभ्यता पर आपदा उमड़ी है तब-तब डॉक्टरों ने कहा है- मैं हूँ न! द ब्लैक डेथ, स्पैनिश फ्लू, चेचक, हैजा, इबोला, निपाह, जीका और कोरोना जैसी अनेकों लाइलाज बीमारियों पर डॉक्टरों के समुदाय काबू पाते रहे हैं। इस पृथ्वी पर जिजीविषा को मूर्त रूप प्रदान करने में डॉक्टरों की भूमिका अतुलनीय रही है। हमारी जितनी जनसंख्या है उस हिसाब से उतने डॉक्टर हमारे पास नहीं हैं। ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ के अनुसार प्रत्येक एक हजार की जनसंख्या पर कम से कम एक डॉक्टर अवश्य होना चाहिए। हाल के आँकड़े के अनुसार “11,082 भारतीयों के लिए एक डॉक्टर है, 1,844 भारतीयों के लिए एक सरकारी बिस्तर है और 55,591 भारतीयों के लिए एक सरकारी अस्पताल है।” स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि भारत में प्रति 834 मरीजों पर एक डॉक्टर है, लेकिन इन डॉक्टरों में आयुर्वेद, होम्योपैथी और प्राकृतिक डॉक्टर भी शामिल हैं। दरअसल इलाज की पद्धति जो भी हो समाज के सबसे गरीब और सबसे अमीर दोनों लोगों की जान बचनी चाहिए। स्वास्थ्य सेवाओं तक सबकी पहुँच हो इसके बाद ही भारत तंदुरुस्ती के साथ विकसित राष्ट्र बनने की ओर क़दम बढ़ा सकता है। स्वस्थ नागरिक से ही स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण होगा और इसके लिए मरीजों एवं डॉक्टरों के अनुपात का संतुलित होना अतिआवश्यक है। गौरतलब है कि मानव संसाधन को गुणवत्तापूर्ण बनाने के लिए शिक्षा और रोजगार के साथ हेल्थ सेक्टर पर भी ध्यान देना पड़ता है। “एक अनुमान के मुताबिक भारत में 5 लाख डॉक्टरों की कमी है।” इंडियास्पेंड रिपोर्ट के अनुसार सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की 83% कमी है। दरअसल रातोरात डॉक्टर तैयार नहीं किए जा सकते हैं, अगर हम अगले पांच वर्षों तक हर साल 100 मेडिकल कॉलेज जोड़ते हैं, तो वर्ष 2029 तक देश में पर्याप्त संख्या में डॉक्टर होंगे। खुशहाल भारत की परिकल्पना तभी स्वीकार होगी जब असमय मृत्यु को रोकने के लिए अच्छे डॉक्टरों के साथ हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर वर्ल्ड लेवल का होगा। डॉक्टरों की कमी से जूझता भारत ‘ब्रेन ड्रेन’ का सामना कर रहा है। ‘ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इकनॉमिक कोऑपरेशन एंड डिवेलपमेंट (ओईसीडी)’ के आँकड़े के अनुसार 75 हजार भारतीय डॉक्टर विकसित देशों में सेवा दे रहे हैं। यानी कुल भारतीय डॉक्टरों का लगभग 7% हिस्सा विदेश में कार्यरत है। अच्छी सैलरी, बेहतर परिस्थितियाँ और रिसर्च एंड डिवलपमेंट के साथ ट्रेनिंग के बेहतर मौके के कारण टैलेंटेड डॉक्टर भारत छोड़ रहे हैं। उन्हें बेहतर अवसर देकर यहीं रोके रहने की आवश्यकता है। हमारे यहाँ 90% से अधिक डॉक्टर निजी क्षेत्र में काम करते हैं। हमें अधिक से अधिक डॉक्टरों को सरकारी अस्पतालों से जोड़ना होगा। प्रति हजार व्यक्तियों पर उपलब्ध डॉक्टरों की संख्या के मामले में भारत काफी पीछे है। “ओईसीडी के अनुसार प्रति हजार व्यक्तियों पर डॉक्टरों की संख्या ऑस्ट्रेलिया में 5.5, ब्रिटेन में 3.2, USA में 2.6, चीन में 2.4 जबकि भारत में मात्र 0.9 है।” फिलहाल भारत अपनी जीडीपी का सिर्फ 2% स्वास्थ्य पर खर्च करता है। स्वास्थ्य बजट बढ़ाकर और निवेश को आकर्षित करके सकारात्मक परिणाम हासिल किया जा सकता है। जहाँ लोग अपने जीवन को लेकर डॉक्टरों पर भरोसा करते हैं वहीं ऐसे भी मामले सामने आते रहे हैं जो अटूट विश्वास को हिला देते हैं। कुछ डॉक्टर ऐसे गिरोह में शामिल होते हैं जो ‘किडनी व्यापार, भ्रूण हत्या और अन्य गैर कानूनी गतिविधियों’ को अंजाम देते हैं। ऑपरेशन के दौरान लापरवाही का मामला भी सामने आता रहता है। इलाज के दौरान मरीजों को धन-उगाही का साधन समझना किसी भी प्रकार से नैतिक नहीं है। कई बार महिलाएँ और लड़कियाँ इलाज के दौरान पुरुष डॉक्टर के उत्पीड़न का शिकार हो जाती हैं। हालाँकि ये अपवाद होते हैं किंतु सभी डॉक्टरों को अपने पेशे के प्रति वफ़ादार रहना आवश्यक है। शुरूआती दिनों में “डॉक्टर जिन हिप्पोक्रेटिक शपथ के माध्यम से उपचार, दायित्व और नैतिकता की शपथ लेते हैं उनका शब्दशः पालन करना चाहिए।” कुछ डॉक्टरों के कारण सभी डॉक्टरों को संदेह की नज़र से देखना तर्कसंगत नहीं है। डॉक्टर खुशियाँ देता है न कि पीड़ा! डॉक्टरों से सुरक्षा, अपनत्व और उम्मीद का भाव न आए तो सचेत तो होना ही पड़ता है। ‘24 घंटे सातों दिन’ अपनी सेवा देने वाले डॉक्टरों के योगदान के कारण ही हम लोग चैन की साँस ले रहे होते हैं। दुनिया में कोई ऐसा इंसान न होगा जिसने डॉक्टरों से मदद न ली हो। हृदय रोग विशेषज्ञ, त्वचा विशेषज्ञ, न्यूरोलॉजिस्ट, ओटोलरींगोलॉजिस्ट, नेफ्रोलॉजिस्ट, गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट, हेमेटोलॉजिस्ट, आर्थोपेडिस्ट, पोडियाट्रिस्ट जैसे अनेकों नाम हैं जिनमें दुनिया के लाखों डॉक्टर्स शामिल हैं। छोटी सी खरोंच लगे या हम हो जाएं बड़ी दुर्घटना के शिकार, खाँसी-सर्दी-जुकाम हो या घेर ले हमें विषाणुजनित कोई बड़ा रोग, घाव-फोड़ा-फुंसी से लेकर कैंसर तक के समाधान में हम डॉक्टरों की तरफ उम्मीद के साथ देखते हैं। इसलिए यदि मैं कहूँ कि “हमें ईश्वर ने रचा है, माँ ने पैदा किया है और डॉक्टर ने बचाया है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति न होगी।” बाल्यावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक हमें बार-बार जीने का मौका देते हैं डॉक्टर्स। कोरोना काल में दुनियाभर के 1.19 लाख स्वास्थ्यकर्मियों ने संक्रमण से लड़ते हुए दम तोड़ा था, इसमें भारत के 1,492 से अधिक डॉक्टर और लगभग 6,000 स्वास्थ्यकर्मी शामिल हैं। जब-जब वैश्विक महामारी की चपेट में मानव सभ्यता आई है तब-तब फ्रंट पर नज़र आए हैं डॉक्टर्स! अच्छे और जिम्मेदार डॉक्टरों की प्रासंगिकता हमेशा बरकरार रहेगी।

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