सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

रेप पर फांसी का बिल इसलिए पास नहीं हो रहा क्यूंकि संसद में बैठे 40 सांसद खुद इसी अपराध के आरोप झेल रहे हैं, रेप पर फांसी का बिल क्यों नहीं हो रहा पास? प्रधान संपादक राहुल पाण्डेय ने उठाए गंभीर सवाल, खुद बने आरोपी कैसे कर सकते हैं बिल को पास, करेंगे बिल पास तो लटके दिखेंगे फांसी में

 रेप पर फांसी का बिल इसलिए पास नहीं हो रहा क्यूंकि संसद में बैठे 40 सांसद खुद इसी अपराध के आरोप झेल रहे हैं, रेप पर फांसी का बिल क्यों नहीं हो रहा पास? प्रधान संपादक राहुल पाण्डेय ने उठाए गंभीर सवाल, खुद बने आरोपी कैसे कर सकते हैं बिल को पास, करेंगे बिल पास तो लटके दिखेंगे फांसी में 



दैनिक ताजा खबर के प्रधान संपादक राहुल पाण्डेय का संपादकीय लेख  |  देश में बढ़ते दुष्कर्म के मामलों ने आज हर नागरिक को हिलाकर रख दिया है। आए दिन अखबारों और न्यूज़ चैनलों में ऐसी खबरें सामने आती हैं जो समाज के अंदर छिपी विकृत मानसिकता का आईना दिखाती हैं। महिलाओं की सुरक्षा के दावे करने वाली सरकारें और कठोर कानून की बात करने वाले नेता जब इन मामलों पर मौन साध लेते हैं, तो सवाल उठना स्वाभाविक है। इन्हीं मुद्दों पर “दैनिक ताज़ा खबर” के प्रधान संपादक राहुल पाण्डेय ने हाल ही में एक बड़ा बयान दिया है जिसने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है।राहुल पाण्डेय का कहना है रेप पर फांसी का बिल इसलिए संसद में पास नहीं हो रहा क्योंकि संसद में बैठे करीब 40 सांसद खुद इसी घिनौने अपराध के आरोप झेल रहे हैं। जब अपराधी खुद कानून बनाने की कुर्सी पर बैठे हों, तो न्याय की उम्मीद किससे की जाए? उनका यह बयान केवल शब्द नहीं, बल्कि उस दर्द की आवाज़ है जो देश की हर बेटी, हर माँ, और हर उस परिवार की आत्मा से निकलती है जिसने कभी इस तरह के अपराध की पीड़ा झेली हो ।

*कानून की किताब में सख्ती, लेकिन ज़मीन पर ढील*

भारत में बलात्कार के लिए सख्त सजा का प्रावधान है  भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत आजीवन कारावास तक की सजा दी जा सकती है, और “निर्भया केस” के बाद 2018 में 12 वर्ष से कम आयु की बच्चियों के साथ दुष्कर्म के लिए मृत्युदंड का प्रावधान जोड़ा गया। लेकिन ज़मीनी सच्चाई यह है कि कानून जितना कठोर लिखा गया है, उसका पालन उतना ही कमजोर है। अदालतों में मामलों की सुनवाई वर्षों तक लटकी रहती है, गवाह मुकर जाते हैं, और अपराधी सत्ता, पैसे या प्रभाव के दम पर बच निकलते हैं। राहुल पाण्डेय का कहना है कि कानून सख्त नहीं, उसका इस्तेमाल सख्ती से होना चाहिए। जब तक अदालतों में मामलों का त्वरित निपटारा नहीं होगा और दोषियों को सार्वजनिक रूप से सजा नहीं दी जाएगी, तब तक ये अपराधी डरेंगे नहीं। 

*संसद में बैठे ‘आरोपी’ और मौन की राजनीति*

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की रिपोर्ट के अनुसार, संसद और विधानसभाओं में दर्जनों ऐसे जनप्रतिनिधि हैं जिन पर महिलाओं के प्रति अपराध के आरोप दर्ज हैं। कुछ मामलों में एफआईआर लंबित है, कुछ में चार्जशीट दाखिल हो चुकी है, लेकिन फिर भी ये लोग सत्ता का हिस्सा बने हुए हैं। राहुल पाण्डेय ने इसी पाखंड पर निशाना साधते हुए कहा जब संसद में ही ऐसे लोग बैठे हों जो खुद कानून के दायरे में हैं, तो वे फांसी का बिल कैसे पास होने देंगे? उन्हें डर है कि अगर एक दिन यह कानून लागू हो गया, तो अगली पंक्ति में खुद खड़े दिखेंगे। उनके इस बयान ने न केवल राजनेताओं की असलियत उजागर की, बल्कि देश के लोकतंत्र पर भी एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया क्या हमारी संसद में सच बोलने की हिम्मत बची है?

*रेप के मामलों में न्याय की देरी पीड़िता के लिए सज़ा से कम नहीं*

भारत में बलात्कार के मामलों की जांच और सुनवाई इतनी धीमी है कि कई बार पीड़िता को इंसाफ मिलने से पहले ही उसकी ज़िंदगी खत्म हो जाती है।

एक हालिया आंकड़े के अनुसार, देशभर में हर साल औसतन 30,000 से अधिक रेप केस दर्ज होते हैं, लेकिन सजा का प्रतिशत 20% से भी कम है।राहुल पाण्डेय कहते हैं देश में न्याय की गति इतनी धीमी है कि अपराधी को सजा मिलने से पहले समाज पीड़िता को ही दोषी ठहरा देता है। यही कारण है कि महिलाएँ शिकायत दर्ज कराने से भी डरती हैं। वह आगे कहते हैं कि केवल फांसी का प्रावधान काफी नहीं, बल्कि तेज़ और पारदर्शी न्यायिक प्रक्रिया की भी ज़रूरत है।

*राजनीति और अपराध का गठजोड़*

भारत में राजनीति और अपराध का गठजोड़ नया नहीं है। स्वतंत्र भारत के शुरुआती दशकों से ही अपराधियों ने राजनीति का सहारा लेकर खुद को कानून के शिकंजे से बचाने का तरीका खोज लिया। आज हालत यह है कि कई दल ऐसे नेताओं को टिकट देने से नहीं हिचकते जिन पर हत्या, बलात्कार, या भ्रष्टाचार जैसे गंभीर आरोप हों, क्योंकि वे चुनाव जितवा सकते हैं। राहुल पाण्डेय के मुताबिक जब अपराधी नेता बन जाता है, तो अपराध ‘नीति’ बन जाता है। यही कारण है कि रेप जैसे मामलों में भी संसद में ईमानदार बहस नहीं हो पाती। सब एक-दूसरे पर उंगली उठाते हैं लेकिन कोई अपने घर में झांकता नहीं ।

*जनता की भूमिका मौन ही सबसे बड़ी गलती*

राहुल पाण्डेय का मानना है कि समस्या सिर्फ नेताओं की नहीं, जनता की भी है। वह कहते हैं “जब हम वोट डालते समय चरित्र नहीं देखते, केवल जाति, धर्म या पैसे देखते हैं, तब हम खुद अपराध को संसद में भेजते हैं। फिर हम कानून से उम्मीद कैसे कर सकते हैं?” यह सच है कि जनता अगर ठान ले तो कोई भी बिल पास हो सकता है, लेकिन जब समाज ही अन्याय के प्रति संवेदनहीन हो जाए, तो व्यवस्था बदलने की उम्मीद कमजोर पड़ जाती है।

 *डर नहीं, न्याय चाहिए*

राहुल पाण्डेय का बयान भले ही सख्त हो, लेकिन सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता।

जब तक सत्ता में बैठे लोग अपने दामन को साफ नहीं करेंगे, तब तक कानून के डर से नहीं, बल्कि उसकी हँसी उड़ाई जाएगी। आज देश की ज़रूरत है ऐसे नेताओं, और नागरिकों की जो सच बोलने का साहस रखें भले ही सच कड़वा क्यों न हो। राहुल पाण्डेय के शब्दों में जब तक रेप के दोषियों को सज़ा मिलने में देर होगी, तब तक हर बेटी की चीख इस व्यवस्था के कानों में गूंजती रहेगी। संसद में बैठे अपराधी अगर कानून नहीं बनाते, तो जनता को उठना होगा और ऐसा कानून लिखना होगा जो हर बेटी को सुरक्षा दे, और हर दरिंदे को डर ।

टिप्पणियाँ

popular post

रोटावेटर की चपेट में आया मासूम, ढीमरखेड़ा में दर्दनाक हादसा, ट्रैक्टर चालक गिरफ्तार, वाहन जब्त

 रोटावेटर की चपेट में आया मासूम, ढीमरखेड़ा में दर्दनाक हादसा, ट्रैक्टर चालक गिरफ्तार, वाहन जब्त कटनी  |  ढीमरखेड़ा थाना क्षेत्र में रविवार सुबह एक हृदय विदारक हादसा सामने आया, जिसने पूरे इलाके को स्तब्ध कर दिया। ग्राम सगौना निवासी सुशील कुमार पिता कोदो लाल मेहरा के खेत में जुताई-बुवाई का कार्य चल रहा था। रविवार सुबह लगभग 9:25 बजे खेत में खड़ा उनका 14 वर्षीय मासूम बेटा दिव्यांशु मेहरा अचानक एक गंभीर दुर्घटना का शिकार हो गया। जानकारी के अनुसार खेत में कार्यरत ट्रैक्टर लाल रंग का मैसी फर्ग्यूसन ट्रैक्टर था, जिसे नारायण यादव नामक व्यक्ति चला रहा था। जुताई के दौरान दिव्यांशु ट्रैक्टर पर बैठा हुआ था। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार ट्रैक्टर चालक की लापरवाही और असावधानी के चलते दिव्यांशु अचानक ट्रैक्टर के हिस्से में फंस गया। मशीनरी की तेज कटनी और भारी उपकरणों की वजह से हादसा इतना भीषण था कि बच्चे ने मौके पर ही दम तोड़ दिया।घटना के बाद खेत में चीख-पुकार मच गई। परिवारजन और ग्रामीण दौड़कर पहुँचे, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। मासूम की मौत की खबर पूरे गांव में आग की तरह फैल गई। घर मे...

खमतरा निवासी मनोज साहू की नदी में मिली लाश, क्षेत्र में सनसनी, प्रशासन लगातार सक्रिय

 खमतरा निवासी मनोज साहू की नदी में मिली लाश, क्षेत्र में सनसनी, प्रशासन लगातार सक्रिय ढीमरखेड़ा  |  ढीमरखेड़ा थाना अंतर्गत ग्राम खमतरा निवासी 40 वर्षीय मोटरसाइकिल मैकेनिक मनोज साहू का रहस्यमयी ढंग से लापता होना अब दुखद मोड़ ले चुका है। बीते कई दिनों से गायब चल रहे मनोज की लाश महानदी में मिली, जिसके बाद पूरे क्षेत्र में सनसनी फैल गई है। जानकारी के मुताबिक मनोज साहू किसी वैवाहिक समारोह में शामिल होने के लिए घर से निकले थे, लेकिन देर रात तक घर न लौटने पर परिजनों को अनहोनी की आशंका होने लगी । वहीं महानदी पुल के पास उनकी मोटरसाइकिल खड़ी मिली, जबकि मनोज का कहीं पता नहीं चला। इसे परिजनों ने गहरी शंका जताते हुए मुख्य मार्ग पर चक्काजाम कर विरोध प्रदर्शन भी किया था। ग्रामीणों ने प्रशासन से तत्काल खोजबीन की मांग की थी। घटना की गंभीरता को देखते हुए एसडीआरएफ की टीम ने मौके पर पहुंचकर रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया। कई घंटों की तलाश के बाद एक शव दिखाई दिया, जिसकी पहचान मनोज साहू के रूप में की गई। शव मिलते ही मौके पर अफरा-तफरी का माहौल बन गया और बड़ी संख्या में ग्रामीण व परिजन वहां पहुंच गए।...

नियम के तहत रोज़गार सहायको को BLO बनाना नियम विरुद्ध, अधिकारियों का तत्काल होना चाहिए इसमें ध्यान आकर्षित

 नियम के तहत रोज़गार सहायको को  BLO बनाना नियम विरुद्ध, अधिकारियों का तत्काल होना चाहिए इसमें ध्यान आकर्षित  कटनी  |  लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव आयोग की भूमिका अत्यंत संवेदनशील और महत्वपूर्ण होती है। मतदाता सूची का शुद्धीकरण, बूथ स्तर की जानकारी एकत्र करना और मतदान प्रक्रिया को सुचारू रूप से संचालित करना बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) की मुख्य जिम्मेदारियाँ होती हैं। दूसरी ओर ग्रामीण विकास विभाग के अंतर्गत कार्यरत रोज़गार सहायक MGNREGA, पंचायत व्यवस्था और ग्रामीण विकास योजनाओं के क्रियान्वयन में अहम भूमिका निभाते हैं। परंतु हाल के वर्षों में कई जिलों और विकासखंडों में यह दबाव देखा गया है कि रोज़गार सहायकों को BLO की जिम्मेदारी भी सौंप दी जाए। प्रश्न यह उठता है कि क्या यह उचित है? क्या यह नियमों के तहत संभव है? और क्या यह प्रशासनिक नैतिकता तथा संवैधानिक प्रक्रियाओं के अनुरूप है? सभी नियमों और प्रावधानों के संदर्भ में स्पष्ट रूप से यह सामने आता है कि रोज़गार सहायकों को BLO बनाना नियम-विरुद्ध, विभागीय कार्यों के विपरीत तथा प्रशासनिक संरचना के लिए हानिकारक है। भारत निर्वा...