कलेक्टर दिलीप कुमार यादव के निर्देशन में उमरियापान सचिव सतीश गौतम की पहल सराहनीय आवारा घूम रहे जानवरों को सुरक्षित गौशाला में छोड़ा जा रहा है, ताकि आमजन को न हो दिक्कत
कलेक्टर दिलीप कुमार यादव के निर्देशन में उमरियापान सचिव सतीश गौतम की पहल सराहनीय आवारा घूम रहे जानवरों को सुरक्षित गौशाला में छोड़ा जा रहा है, ताकि आमजन को न हो दिक्कत
ढीमरखेड़ा | समाज का दर्पण कहे जाने वाले प्रशासनिक तंत्र का दायित्व न केवल कानून और व्यवस्था बनाए रखना है, बल्कि जनता की छोटी से छोटी समस्याओं का समाधान भी सुनिश्चित करना है। इसी दिशा में उमरियापान सचिव सतीश गौतम ने एक अनुकरणीय पहल की है, जिसे कलेक्टर दिलीप कुमार यादव के कुशल निर्देशन और मार्गदर्शन में अंजाम दिया जा रहा है। यह पहल सड़कों पर बेसहारा, भूखे-प्यासे और दुर्घटनाओं का कारण बन रहे आवारा पशुओं के पुनर्वास से जुड़ी हुई है। इस योजना का उद्देश्य इन पशुओं को सुरक्षित गौशालाओं में स्थानांतरित करना है, जिससे ना केवल लोगों को आवागमन में परेशानी से राहत मिले, बल्कि इन निरीह जानवरों की भी देखभाल सुनिश्चत की जा सके। गांव, कस्बे की एक आम लेकिन गंभीर समस्या है आवारा जानवरों की सड़कों पर मौजूदगी। गाय, बैल, बकरी, सांड जैसे जानवर सड़कों पर भटकते रहते हैं, कभी कचरा खाते हैं, कभी खेतों में घुस जाते हैं और कई बार सड़क दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं। मुख्य सड़कों, स्कूलों के बाहर, अस्पतालों के सामने या बाजार के भीतर घूमते ये जानवर यातायात को बाधित करते हैं। रात के समय अंधेरे में विशेषकर दोपहिया चालकों के लिए ये जानवर दुर्घटना का कारण बनते हैं। कचरा खाकर बीमार होने वाले जानवर मर जाते हैं और उनके शवों से संक्रमण फैलने की आशंका रहती है। किसानों की खड़ी फसलें आवारा पशुओं द्वारा खा ली जाती हैं, जिससे आर्थिक नुकसान होता है।
*सचिव सतीश गौतम की संवेदनशील पहल*
उमरियापान के ग्राम पंचायत सचिव सतीश गौतम ने इस समस्या को सिर्फ एक प्रशासनिक मुद्दा नहीं माना, बल्कि इसे सामाजिक और मानवीय दृष्टिकोण से देखा। उन्होंने महसूस किया कि जहां एक ओर आम नागरिक इन पशुओं से परेशान है, वहीं दूसरी ओर ये जानवर भी भटकते हुए जीवन बिता रहे हैं, जहां न उन्हें खाना नसीब हो रहा है, न पानी और न ही छांव। इसी सोच को लेकर उन्होंने स्थानीय गौशाला से संपर्क कर प्रशासनिक स्तर पर योजना बनाई कि क्षेत्र के अंदर घूमते इन आवारा पशुओं को एक-एक करके पकड़कर गौशालाओं में भेजा जाएगा। यह कार्य किसी एक दिन का नहीं है, बल्कि निरंतर प्रयास और श्रम का परिणाम है।

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