संघर्ष से सफलता तक का प्रेरणादायी सफर, समाजसेवी संतोष दुबे क्षेत्र के विकास में अपना विशेष दे रहे हैं योगदान मेहनत करके कमाया नाम, हर एक पल था संघर्ष की निशानी लेकिन नहीं मानी हार और पत्नी को बनाया ढीमरखेड़ा की जनपद अध्यक्ष
संघर्ष से सफलता तक का प्रेरणादायी सफर, समाजसेवी संतोष दुबे क्षेत्र के विकास में अपना विशेष दे रहे हैं योगदान मेहनत करके कमाया नाम, हर एक पल था संघर्ष की निशानी लेकिन नहीं मानी हार और पत्नी को बनाया ढीमरखेड़ा की जनपद अध्यक्ष
ढीमरखेड़ा | संघर्ष और सेवा का दूसरा नाम यदि किसी व्यक्ति पर पूरी तरह फिट बैठता है, तो वह हैं समाजसेवी संतोष दुबे का। कटनी जिले के ढीमरखेड़ा क्षेत्र में रहने वाले संतोष दुबे ने जीवन की कठिन राहों को पार कर न सिर्फ समाज में अपनी अलग पहचान बनाई, बल्कि समाज को दिशा देने वाले व्यक्तित्व के रूप में उभरे। उन्होंने समाज सेवा को ही जीवन का उद्देश्य बना लिया और वर्षों की अथक मेहनत से वह उस मुकाम पर पहुंचे जहां लोग उन्हें "जनसेवा का प्रतीक" कहने लगे। उनका यह सफर संघर्ष, समर्पण और सफलता की मिसाल बन चुका है। संतोष दुबे का जन्म एक सामान्य मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। आर्थिक संसाधनों की कमी के बावजूद उनके माता-पिता ने उन्हें ईमानदारी, मेहनत और सेवा की भावना जैसे गुणों की शिक्षा दी। बचपन से ही संतोष दुबे में नेतृत्व करने की क्षमता थी और वे हमेशा दूसरों की मदद करने के लिए तत्पर रहते थे। पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ-साथ उन्होंने जीवन के हर पड़ाव पर अपने व्यक्तित्व को समाजहित के लिए समर्पित किया। संतोष दुबे का जीवन आसान नहीं रहा। सीमित संसाधनों और कठिन परिस्थितियों में उन्होंने अपने लिए और अपने परिवार के लिए बेहतर भविष्य की कल्पना की थी। इसके लिए उन्होंने हर संभव कोशिश की। कभी छोटे-मोटे व्यवसाय किए, कभी सामाजिक कार्यों में खुद को झोंक दिया। कई बार आलोचनाएं भी झेलीं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उनका यह मानना रहा कि "यदि नियत साफ हो और इरादे मजबूत, तो कोई ताकत रास्ते में बाधा नहीं बन सकती।" यही सोच उन्हें बार-बार गिरकर उठने का हौसला देती रही। जीवन का हर संघर्ष उन्हें और अधिक मजबूत बनाता गया।
*पत्नी को बनाया जनपद अध्यक्ष महिलाओं को सशक्त करने का प्रयास*
संतोष दुबे ने न केवल स्वयं समाज सेवा को अपनाया, बल्कि अपनी पत्नी को भी इस पथ पर आगे बढ़ाया। उनकी प्रेरणा और सहयोग से उनकी पत्नी सुनीता दुबे ने ढीमरखेड़ा की जनपद सदस्य का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। यह केवल एक राजनीतिक जीत नहीं थी, बल्कि महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि थी। वे मानते हैं कि जब तक महिलाएं नेतृत्व में नहीं होंगी, तब तक समाज का संपूर्ण विकास संभव नहीं। उन्होंने अपनी पत्नी को हमेशा प्रेरित किया कि वे केवल पद पर न रहें, बल्कि जनता की सच्ची सेवक बनें। आज सुनीता दुबे क्षेत्र की एक मजबूत महिला नेतृत्वकर्ता के रूप में जानी जाती हैं, जो जनहित के लिए पूरी निष्ठा से कार्य कर रही हैं।
*जनसमर्थन और लोकप्रियता*
संतोष दुबे का सबसे बड़ा बल जनता का विश्वास रहा है। वे जिस भी गांव में जाते हैं, लोग उन्हें सम्मान देते हैं, उनके साथ अपनी समस्याएं साझा करते हैं और उन्हें एक सच्चे जनसेवक के रूप में मानते हैं। उन्होंने अपने व्यवहार, ईमानदारी और मेहनत से यह विश्वास अर्जित किया है। उनका यह जनसमर्थन ही था जिसने उनकी पत्नी को जनपद अध्यक्ष पद तक पहुँचाया और उन्हें भी एक जनप्रिय चेहरा बना दिया। चुनावों में जनता ने भारी मतों से उनका समर्थन कर यह साबित किया कि ईमानदारी और सेवा का रास्ता कभी विफल नहीं होता।
*सच्चे जनसेवक की पहचान*
संतोष दुबे राजनीति में भी सक्रिय हैं, लेकिन उन्होंने राजनीति को सेवा का माध्यम बनाया है, सत्ता का नहीं। वे न तो पद के लिए भागदौड़ करते हैं और न ही किसी राजनीतिक स्वार्थ से जुड़े कार्य करते हैं। उनका एक ही ध्येय है “जनता की सेवा, समाज का विकास।” संतोष दुबे का सपना है कि ढीमरखेड़ा को आदर्श विकासखंड बनाया जाए। वे चाहते हैं कि हर गांव में पक्की सड़कें हों, हर घर में बिजली और पानी पहुंचे, हर बच्चा स्कूल जाए, और महिलाएं सशक्त बनें। वे चाहते हैं कि स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर हों, युवाओं के लिए रोजगार उपलब्ध हो, और प्रशासनिक व्यवस्था पारदर्शी और उत्तरदायी हो।
*संघर्ष से बना सेवा पथ का सितारा*
संतोष दुबे का जीवन इस बात का प्रमाण है कि सच्ची नीयत और मेहनत से कोई भी व्यक्ति समाज में बदलाव ला सकता है। उन्होंने हर कठिनाई को पार कर एक मिशाल कायम की। उनके जीवन से प्रेरणा लेकर आज अनेक लोग समाज सेवा की ओर बढ़ रहे हैं। उनकी सफलता की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि वे अब भी पहले जैसे विनम्र, ज़मीन से जुड़े और जनता के लिए सदा तत्पर बने हुए हैं। पत्नी को जनपद अध्यक्ष बनाना केवल राजनीति नहीं, यह एक सोच थी कि महिलाओं को आगे लाकर समाज को बेहतर बनाया जाए। ऐसे समाजसेवक को सलाम, जिसने अपने संघर्षों को सेवा में बदला और क्षेत्र को प्रगति की ओर अग्रसर किया।

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