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लाडली बहनों का रो रोकर बुरा हाल प्रशासन बना मूकदर्शक, ग्राम हल्का में 30 वर्षों से खेती कर रहीं पाँच महिलाओं की फसल जेसीबी से नष्ट, प्रशासन पर पक्षपातपूर्ण कार्रवाई का आरोप विधवा और विकलांग महिलाओं की जीवनरेखा छिनी, रात 10 बजे भेजा नोटिस, अगली सुबह पूरी फसल नष्ट; सरपंच और दबंगों पर गंभीर आरोप

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ढीमरखेड़ा |  जिला मुख्यालय के अंतर्गत आने वाले ग्राम हल्का, ग्रामपंचायत अतरसूमा में प्रशासन द्वारा की गई अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही इन दिनों विवाद और जनाक्रोश का केंद्र बनी हुई है। पाँच गरीब और भूमिहीन महिलाएं  पंचो बाई गौड़, द्रोपती बाई गौड़, मैकी बाई गौड़, ज्ञान बाई गौड़ और प्रेम बाई गौड़  जो बीते 30 से 35 वर्षों से शासकीय भूमि पर एक-एक एकड़ में लगातार खेती कर रही थीं, उनकी तैयार मूंग और उड़द की फसल को प्रशासन ने जेसीबी व ट्रैक्टर से रौंदते हुए एक झटके में नष्ट कर दिया। यह कार्रवाई 22 अप्रैल 2025 को की गई, जबकि नोटिस मात्र एक रात पहले 21 अप्रैल को रात 10 बजे दिया गया था। पीड़ित महिलाओं का कहना है कि उन्होंने प्रशासन से विनती की कि फसल कटने तक उन्हें जमीन दिया जाए, जिसके बाद वे स्वेच्छा से भूमि खाली कर देंगी। लेकिन उनकी एक भी नहीं सुनी गई। वे रोती, गिड़गिड़ाती रहीं, मगर मौके पर मौजूद अधिकारियों ने किसी भी प्रकार की दया नहीं दिखाई। यह आरोप लगाया गया है कि यह पूरी कार्रवाई ग्राम पंचायत के सरपंच सुशील गौड़ और गाँव के प्रभावशाली लोगों  बाराती गौड़, वीरेंद्र गौड़, किसन गौड़  के दबाव में की गई। महिलाओं का यह भी कहना है कि वे पूरी तरह से इस भूमि पर निर्भर थीं। उनमें से दो विधवा हैं और एक विकलांग, जिनकी आजीविका का कोई और साधन नहीं है। ऐसे में यह कार्रवाई न केवल उनकी जीविका पर कुठाराघात है, बल्कि मानवीय संवेदनाओं की भी घोर अवहेलना प्रतीत होती है। गाँव में पहले से ही एक खेल मैदान उपलब्ध होने के बावजूद, सरपंच द्वारा उक्त भूमि को खेल मैदान घोषित कर अतिक्रमण हटवाना, महिलाओं के अनुसार, केवल चुनावी रंजिश और व्यक्तिगत विद्वेष का परिणाम है। उन्होंने आरोप लगाया कि पंचायत चुनावों के दौरान उन्होंने सुशील गौड़ का विरोध किया था, जिस कारण उन्हें टारगेट किया गया। अन्य लोगों का कब्जा भी आसपास की शासकीय भूमि पर बना हुआ है, लेकिन प्रशासन ने सिर्फ इन पाँच महिलाओं के विरुद्ध ही कार्रवाई की, जो कि प्रशासन की दोहरी नीति को दर्शाता है। घटना के बाद पीड़ित महिलाओं और उनके परिवारजनों को सरपंच और उसके सहयोगियों द्वारा जान से मारने, घर जलाने, गाँव छोड़ने और बच्चों को स्कूल न भेजने की धमकी दी गई। यह धमकियाँ रात्रि में दी गईं, जब उक्त परिवारों के पुरुष सदस्यों को गाँव के बाहर बुलाकर डराया-धमकाया गया। इससे पीड़ित परिवारों में भय और असुरक्षा का वातावरण बना हुआ है।यह मामला न केवल प्रशासन की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है, बल्कि सामाजिक न्याय, महिला अधिकार, तथा ग्रामीण राजनीति के काले चेहरे को भी उजागर करता है। अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या प्रशासन वास्तव में निष्पक्ष है? क्या विधवा, विकलांग और निर्धन नागरिकों की कोई सुनवाई नहीं?पीड़ित महिलाओं ने कहा है कि यदि प्रशासन और समाज ने उनके पक्ष में कोई ठोस कदम नहीं उठाया, तो उनके पास आत्महत्या जैसे कठोर कदम उठाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा। यह स्थिति प्रशासन के लिए न केवल संवैधानिक, बल्कि नैतिक चुनौती भी बन चुकी है।ग्रामीणों और सामाजिक संगठनों ने इस मामले की उच्चस्तरीय जांच और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की माँग की है। साथ ही प्रभावित महिलाओं को वैकल्पिक भूमि अथवा मुआवज़ा देने की भी माँग उठ रही है, जिससे वे पुनः सम्मानजनक जीवन यापन कर सकें। यह घटना न केवल ग्रामीण प्रशासनिक तंत्र की कठोरता, बल्कि संवेदनहीनता को भी दर्शाती है। यह आवश्यक है कि संबंधित अधिकारी निष्पक्षता और मानवता की दृष्टि से इस पूरे प्रकरण की समीक्षा करें और निर्दोषों को न्याय दिलाएं।

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