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आरक्षण समाप्त कर समान अधिकार देने की आवश्यकता, आरक्षण नीति केवल 10 वर्षों के लिए लागू की गई थी कई वर्ष हों गए लेकिन आरक्षण समाप्त नही किया जा रहा है वोट बैंक की राजनीती ने देश को किया बर्बाद

 आरक्षण समाप्त कर समान अधिकार देने की आवश्यकता, आरक्षण नीति केवल 10 वर्षों के लिए लागू की गई थी कई वर्ष हों गए लेकिन आरक्षण समाप्त नही किया जा रहा है वोट बैंक की राजनीती ने देश को किया बर्बाद 



ढीमरखेड़ा |  भारत एक लोकतांत्रिक और सामाजिक न्याय पर आधारित राष्ट्र है, जहां संविधान सभी नागरिकों को समान अधिकार और अवसर प्रदान करने की बात करता है। हालांकि, आजादी के बाद से लागू किए गए आरक्षण नीति का उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को मुख्यधारा में लाना था, लेकिन वर्तमान समय में यह नीति कई चुनौतियों और विवादों का कारण बन रही है। अब समय आ गया है कि आरक्षण की व्यवस्था को समाप्त कर समाज के हर वर्ग को समान अवसर दिए जाएं।आरक्षण की शुरुआत भारतीय संविधान के निर्माण के समय हुई थी। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इसे एक अस्थायी व्यवस्था के रूप में प्रस्तावित किया था, जिसका उद्देश्य दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्गों को समाज में बराबरी का स्थान दिलाना था। संविधान में अनुच्छेद 15 और 16 के तहत अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया गया। लेकिन यह आरक्षण नीति केवल 10 वर्षों के लिए लागू की गई थी, जिसे बाद में बार-बार बढ़ाया गया। समय के साथ इसमें नई जातियों और वर्गों को जोड़ा गया, जिससे आरक्षण की सीमा बढ़ती गई और यह नीति राजनीतिक हथियार बन गई।

*योग्यता पर असर*

आरक्षण का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि इससे योग्यता को दरकिनार कर दिया जाता है। किसी भी देश की तरक्की वहां के शिक्षित और योग्य नागरिकों पर निर्भर करती है, लेकिन जब नौकरियों और शिक्षा में मेरिट के बजाय आरक्षण को प्राथमिकता दी जाती है, तो इससे देश की प्रगति बाधित होती है।

 *जातिवाद को बढ़ावा*

आरक्षण का मूल उद्देश्य जातिवाद को खत्म करना था, लेकिन यह व्यवस्था जातिवाद को और मजबूत कर रही है। लोग खुद को पिछड़ा साबित करने की होड़ में लगे हुए हैं ताकि उन्हें आरक्षण का लाभ मिल सके। इससे समाज में अलगाव और टकराव बढ़ रहा है।

 *गरीबों को नहीं मिल रहा लाभ*

आरक्षण का फायदा केवल उन लोगों को मिल रहा है जो पहले से ही मजबूत हैं। गरीब और जरूरतमंद तबका, चाहे वह किसी भी जाति का हो, आरक्षण के लाभ से वंचित रह जाता है। उच्च जाति के गरीब छात्रों और युवाओं को नौकरी और शिक्षा में समान अवसर नहीं मिलते, जिससे वे पीछे रह जाते हैं।

 *राजनीति का खेल*

आरक्षण का इस्तेमाल राजनीतिक दल अपने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए कर रहे हैं। चुनावी फायदे के लिए नई जातियों को आरक्षण देने की मांग की जाती है, जिससे सामाजिक असंतुलन बढ़ता है।

 *आर्थिक आधार पर आरक्षण की अनदेखी*

आज के समय में जातिगत भेदभाव से ज्यादा आर्थिक असमानता एक बड़ी समस्या बन गई है। कई अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोग संपन्न हो चुके हैं, जबकि सामान्य वर्ग के गरीब लोग शिक्षा और नौकरियों में अवसरों से वंचित हैं। इसलिए आरक्षण का आधार जाति न होकर आर्थिक स्थिति होनी चाहिए।

*आरक्षण खत्म कर समान अधिकार क्यों जरूरी?*

जब सभी को समान अवसर मिलेंगे, तो समाज में प्रतियोगिता बढ़ेगी और योग्य व्यक्ति को उसका सही स्थान मिलेगा। इससे देश के विकास की गति तेज होगी।

 *जातिवाद का अंत*

यदि आरक्षण को खत्म कर दिया जाए, तो जातिगत भेदभाव भी धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगा। लोग अपनी पहचान जाति से नहीं, बल्कि अपनी योग्यता और मेहनत से बनाएंगे।

 *गरीबी का सही समाधान*

यदि सरकार गरीबों की मदद करना चाहती है, तो उसे आर्थिक आधार पर योजनाएं बनानी चाहिए। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करना चाहिए ताकि हर गरीब बच्चा पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़ा हो सके।

*सरकारी सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार*

आज आरक्षण के कारण कई अयोग्य लोग महत्वपूर्ण पदों पर बैठ रहे हैं, जिससे सरकारी सेवाओं की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। यदि नियुक्तियां पूरी तरह से योग्यता के आधार पर होंगी, तो प्रशासनिक सेवाएं अधिक कुशल और प्रभावी बनेंगी।

 *समानता और एकता को बढ़ावा*

जब समाज में सभी को समान अधिकार मिलेंगे, तो लोगों के बीच आपसी भाईचारा और एकता बढ़ेगी। इससे सामाजिक सद्भाव मजबूत होगा और देश विकास के पथ पर आगे बढ़ेगा।

*आर्थिक आधार पर लाभ देना*

सरकार को ऐसी नीतियां बनानी चाहिए, जिनका लाभ आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को मिले, चाहे वे किसी भी जाति के हों।

 *शिक्षा प्रणाली को मजबूत करना*

शिक्षा को सुलभ और किफायती बनाया जाए ताकि गरीब और पिछड़े वर्ग के बच्चे भी अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सकें और योग्यता के आधार पर आगे बढ़ सकें।

 *प्रतियोगिता को बढ़ावा देना*

हर व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के समान अवसर दिया जाए, जिससे सभी लोग अपनी योग्यता और मेहनत से सफलता प्राप्त कर सकें।

 *सामाजिक जागरूकता अभियान चलाना*

लोगों को यह समझाने की जरूरत है कि आरक्षण समस्या का समाधान नहीं, बल्कि एक नई समस्या को जन्म दे रहा है। इसलिए हमें समान अधिकारों की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। आरक्षण की नीति भले ही अच्छे उद्देश्य से शुरू की गई थी, लेकिन वर्तमान में यह अपने मूल उद्देश्य से भटक चुकी है। अब समय आ गया है कि आरक्षण को समाप्त कर समान अधिकार दिए जाएं ताकि समाज में योग्यता को महत्व मिले, जातिवाद खत्म हो और हर व्यक्ति अपनी मेहनत से आगे बढ़ सके। हमें एक ऐसे भारत की कल्पना करनी चाहिए जहां हर नागरिक को समान अवसर मिले और किसी को भी जाति के आधार पर विशेष या कमतर नहीं समझा जाए। तभी हमारा देश सही मायनों में विकास की ओर अग्रसर होगा।

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