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जिस देश मे नेता का बच्चा नेता बन जाता हों, उस देश मे गरीब का बच्चा गरीब बनना तय हैं, अधर्म पर मौन बनकर जो मात्र निहारे जाते हैं, भीष्म हो, द्रोण हो या हो कर्ण सब मारे जाते हैं

 जिस देश मे नेता का बच्चा नेता बन जाता हों, उस देश मे गरीब का बच्चा गरीब बनना तय हैं, अधर्म पर मौन बनकर जो मात्र निहारे जाते हैं, भीष्म हो, द्रोण हो या हो कर्ण सब मारे जाते हैं 



ढीमरखेड़ा |  भारत में राजनीति में वंशवाद एक गंभीर समस्या बन चुकी है। यदि हम आज के परिदृश्य को देखें, तो अधिकांश प्रमुख राजनीतिक दलों में नेता अपने परिवार के सदस्यों को राजनीति में स्थापित करने का प्रयास करते हैं। ऐसा लगता है कि राजनीति अब योग्यता और जनसेवा का माध्यम नहीं रही, बल्कि परिवार के सदस्यों को सत्ता तक पहुँचाने का साधन बन गई है। यह प्रवृत्ति देश के लोकतंत्र के लिए घातक है। गरीब और सामान्य परिवार से आने वाले युवा राजनीतिक क्षेत्र में संघर्ष करते हुए थक जाते हैं क्योंकि उनके पास धन, संसाधन, और परिवार का समर्थन नहीं होता। उनकी आवाज़ दबा दी जाती है, और वे केवल दर्शक बनकर रह जाते हैं।

*गरीब के बच्चे के लिए बाधाएँ*

गरीब के बच्चों के लिए अवसरों का अभाव ही उनकी प्रगति में सबसे बड़ा रोड़ा है। शिक्षा, स्वास्थ्य, और अन्य बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण गरीब बच्चे बचपन से ही संघर्ष का सामना करते हैं। जहाँ नेता के बच्चों के पास महंगी शिक्षा और संसाधनों की पहुँच होती है, वहीं गरीब का बच्चा दो वक़्त की रोटी के लिए संघर्ष करता है। सरकारी योजनाएँ अक्सर केवल कागजों पर सिमट जाती हैं। गरीब बच्चों के लिए जो योजनाएँ चलाई जाती हैं, उनका लाभ भ्रष्टाचार और बिचौलियों के कारण वास्तविक जरूरतमंदों तक पहुँचता ही नहीं।

*अधर्म पर मौन बनकर निहारने की प्रवृत्ति*

यह कथन कि "अधर्म पर मौन बनकर जो मात्र निहारे जाते हैं, भीष्म हो, द्रोण हो या हो कर्ण, सब मारे जाते हैं," हमारी मानसिकता पर गहरी चोट करता है। महाभारत में भीष्म और द्रोण जैसे महापुरुषों ने अधर्म को देखकर भी मौन साधा, और अंततः वे अधर्म के कारण मारे गए। आज के समाज में भी यही स्थिति है। जब गरीबों और वंचितों के अधिकारों का हनन होता है, तो अधिकांश लोग केवल तमाशा देखते हैं। न तो वे विरोध करते हैं, न ही अन्याय को रोकने का प्रयास करते हैं। यह मौन सहमति अधर्म को और बढ़ावा देती है।

*शिक्षा का अभाव, गरीबों के लिए सबसे बड़ी बाधा*

शिक्षा वह माध्यम है जो किसी भी समाज को सशक्त बनाती है। लेकिन भारत में शिक्षा का निजीकरण और महंगे कोचिंग सेंटर गरीब बच्चों के लिए इसे एक असंभव सपना बना देते हैं। सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव, शिक्षकों की अनुपलब्धता, और घटिया शिक्षण पद्धतियाँ गरीब बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित कर देती हैं। प्राइवेट स्कूल और कोचिंग सेंटर केवल अमीरों के लिए उपलब्ध हैं। गरीब बच्चे, जिनके पास फीस चुकाने का साधन नहीं है, इनसे वंचित रह जाते हैं।

*राजनीतिक जागरूकता की कमी*

गरीबों के बच्चों को अक्सर यह समझ ही नहीं आती कि उनके अधिकार क्या हैं। राजनीति में वंशवाद और भ्रष्टाचार के कारण उनके लिए कोई स्थान नहीं बचता। राजनीतिक दल भी केवल चुनाव के समय ही गरीबों की बात करते हैं। चुनाव जीतने के बाद उनकी समस्याएँ भूल जाते हैं। गरीबों को अक्सर धर्म और जाति के आधार पर बाँट दिया जाता है। राजनेता इन मुद्दों का इस्तेमाल कर गरीबों को आपस में लड़ाते हैं, ताकि वे संगठित होकर अपने अधिकारों के लिए आवाज़ न उठा सकें। महाभारत में कर्ण को उनके जातिगत पहचान के कारण नीचा दिखाया गया। आज भी गरीब और वंचित वर्ग के साथ यही व्यवहार होता है। जाति और धर्म के नाम पर उन्हें कमजोर किया जाता है।

*हर व्यक्ति को होना चाहिए जागरूक*

समाज के प्रबुद्ध वर्ग और युवाओं की यह जिम्मेदारी है कि वे इस असमानता को समाप्त करने के लिए प्रयास करें। शिक्षा को हर बच्चे तक पहुँचाना सबसे महत्वपूर्ण कदम है। सरकार को सरकारी स्कूलों और कॉलेजों की गुणवत्ता सुधारनी चाहिए। युवाओं को प्रेरित करना

गरीब बच्चों को यह समझाना होगा कि गरीबी कोई स्थायी स्थिति नहीं है।मेहनत और संकल्प के माध्यम से वे अपनी स्थिति बदल सकते हैं।

*अधर्म के खिलाफ आवाज़ उठाना*

जैसे महाभारत में अधर्म के खिलाफ लड़ाई लड़ी गई थी, वैसे ही आज समाज को अन्याय और भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा होना चाहिए। राजनीति में वंशवाद को रोकने के लिए सख्त कानून बनाए जाने चाहिए। गरीबों को भी चुनाव लड़ने के लिए आर्थिक मदद दी जानी चाहिए। यदि हम इस असमानता को समाप्त नहीं करेंगे और अधर्म पर चुप्पी साधे रहेंगे, तो समाज में अन्याय और असमानता बढ़ती रहेगी। भीष्म, द्रोण, और कर्ण का मौन अधर्म को रोक नहीं सका, और अंततः वे मारे गए। समाज को चाहिए कि वह अन्याय के खिलाफ खड़ा हो और हर बच्चे को समान अवसर प्रदान करे। गरीब का बच्चा गरीब नहीं, बल्कि एक सफल नागरिक बने, यह सुनिश्चित करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। जब तक हम मौन बने रहेंगे, तब तक इस असमानता का चक्र चलता रहेगा। हमें इस स्थिति को बदलने के लिए आज ही कदम उठाने होंगे।

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