सिहोरा पहुंचे शिवराज से पूछा 16 नवंबर का वादा कौन निभाएगा ,बोले शिवराज मुख्यमंत्री से बात करूंगा, शिवराज सिंह चौहान भूल गए वादा, नेताओं की कथनी और करनी में फर्क, सिहोरा जिला बनाने की मांग फिर तेज
सिहोरा पहुंचे शिवराज से पूछा 16 नवंबर का वादा कौन निभाएगा ,बोले शिवराज मुख्यमंत्री से बात करूंगा,
शिवराज सिंह चौहान भूल गए वादा, नेताओं की कथनी और करनी में फर्क, सिहोरा जिला बनाने की मांग फिर तेज
कटनी | राजनीति में वादे करना आसान होता है, पर उन्हें निभाना सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है।मध्यप्रदेश की राजनीति में एक बार फिर ऐसा ही मामला सामने आया है, जब पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने ही वादे को लेकर सवालों के घेरे में आ गए। बात है सिहोरा को जिला बनाने की एक ऐसा वादा जो जनता के दिलों में उम्मीद बनकर जगा था, पर अब निराशा में बदलता दिखाई दे रहा है। हाल ही में जब शिवराज सिंह चौहान सड़क मार्ग से कटनी जा रहे थे, तो सिहोरा वासियों ने उन्हें रोककर सवाल पूछा 16 नवंबर को सिहोरा को जिला बनाने का जो वादा आपने किया था, उसे अब कौन पूरा करेगा? यह सवाल सुनते ही शिवराज कुछ क्षणों के लिए सकते में आ गए । थोड़ी देर चुप रहने के बाद उन्होंने कहा कि वे इस विषय पर मुख्यमंत्री से बात करेंगे । लेकिन जनता के मन में सवाल यही है आखिर बात करने से क्या होगा? सिहोरा जिला बनाने का वादा तो उनका था, फिर अब जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ना क्यों?
*चुनाव से पहले किया था बड़ा ऐलान*
विधानसभा चुनाव 2023 के पूर्व जब सिहोरा जिला आंदोलन पूरे जोरों पर था, तब शिवराज सिंह चौहान ने आंदोलनकारियों से फोन पर बात करते हुए 16 नवंबर को आश्वासन दिया था कि “सरकार बनने के तुरंत बाद सिहोरा को जिला बनाया जाएगा।” उस समय यह घोषणा सिहोरा क्षेत्र के लोगों में नई ऊर्जा लेकर आई थी। आंदोलन को स्थगित किया गया, लोग मान गए कि अब न्याय मिलेगा। परंतु सरकार बनने के बाद भी न तो इस विषय पर कोई चर्चा हुई और न ही कोई प्रस्ताव आगे बढ़ा।
*सियासी समीकरणों में दब गया सिहोरा का मुद्दा*
सिहोरा जिला आंदोलन का असर इतना गहरा था कि भाजपा को विधानसभा टिकटों में भी बदलाव करना पड़ा। तत्कालीन विधायक नंदनी मरावी का टिकट काट दिया गया। लेकिन चुनाव बाद सत्ता वापसी के बावजूद सिहोरा का मुद्दा एक बार फिर राजनीतिक उपेक्षा का शिकार बन गया। न तो स्थानीय भाजपा नेता और न ही मौजूदा विधायक ने इसे विधानसभा या पार्टी मंच पर उठाया। शिवराज सिंह चौहान, जिनके मुख से यह वादा निकला था, अब केवल “मुख्यमंत्री से बात करूंगा” कहकर किनारा कर गए।
*जनता में गहराती नाराजगी*
लक्ष्य जिला सिहोरा आंदोलन समिति एक बार फिर सक्रिय हो चुकी है। जनता का कहना है कि अगर नेताओं की बातों पर भरोसा नहीं किया जा सकता, तो आंदोलन ही एकमात्र रास्ता बचता है। समिति के सदस्यों ने बताया कि “खून के दीए जलाने” और “भूमि समाधि सत्याग्रह” जैसे कई प्रतीकात्मक आंदोलनों के बाद अब 9 दिसंबर से आमरण अनशन शुरू करने की तैयारी चल रही है। जनता का धैर्य जवाब दे चुका है। आंदोलन समिति का कहना है कि सिहोरा क्षेत्र की भौगोलिक और प्रशासनिक स्थिति जिला बनने के लिए पूरी तरह उपयुक्त है। क्षेत्र की जनसंख्या, विकासखंडों की संख्या, ऐतिहासिक पहचान और प्रशासनिक जरूरतों के आधार पर सिहोरा को पहले ही जिला घोषित किया जाना चाहिए था। लेकिन यह मांग वर्षों से केवल राजनीतिक भाषणों तक सीमित रह गई है।
*नेताओं की कथनी और करनी में अंतर*
सिहोरा वासियों का यह कहना बिल्कुल सही है कि नेताओं की कथनी और करनी में बहुत अंतर है। चुनाव आते ही नेता वादों की बरसात कर देते हैं, लेकिन सत्ता में आने के बाद वही वादे भूल जाते हैं। जनता को केवल “समय आने पर देखेंगे” जैसी बातों से टाल दिया जाता है। यह केवल सिहोरा की नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश की राजनीति की सच्चाई है।शिवराज सिंह चौहान ने जिस आत्मविश्वास के साथ 16 नवंबर की तारीख दी थी, उसी आत्मविश्वास के साथ अब उन्हें जनता के सामने जवाब देना चाहिए। यह केवल एक प्रशासनिक फैसला नहीं, बल्कि जनता के विश्वास का प्रश्न है।
*सिहोरा जिला क्यों जरूरी है?*
सिहोरा क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति कटनी, जबलपुर और मंडला जिलों के बीच स्थित है। क्षेत्र के ग्रामीण अंचलों को प्रशासनिक कामों के लिए कटनी या जबलपुर जाना पड़ता है, जिससे समय और धन दोनों की बर्बादी होती है। अस्पताल, शिक्षा, राजस्व और पुलिस व्यवस्था की दृष्टि से सिहोरा को जिला बनाना न केवल स्थानीय जनता के लिए राहतकारी होगा, बल्कि सरकार के लिए भी प्रशासनिक कार्य आसान करेगा।लोगों का कहना है कि सिहोरा में उपयुक्त भवन, कार्यालय, स्टाफ क्वार्टर और भूमि पहले से उपलब्ध है, इसलिए जिला बनाने में किसी तरह की कठिनाई नहीं है। लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण यह मांग अधूरी पड़ी है।
*जनता का सवाल वादे का जवाब कौन देगा?*
जब पूर्व मुख्यमंत्री को सिहोरा में रोका गया, तो जनता का यह सवाल सिर्फ शिवराज सिंह चौहान से नहीं था, बल्कि पूरे राजनीतिक तंत्र से था। जनता का कहना है कि अगर एक मुख्यमंत्री जनता से सीधा वादा करे और बाद में उसे निभाना भूल जाए, तो लोकतंत्र का भरोसा कैसे कायम रहेगा? आज सिहोरा में हर वर्ग व्यापारी, किसान, विद्यार्थी, महिलाएं सब इस मांग को लेकर एकजुट हैं। उनकी नाराजगी अब आक्रोश में बदलती जा रही है। आंदोलन समिति का कहना है कि “जब तक सिहोरा जिला नहीं बनेगा, तब तक यह आंदोलन चलता रहेगा ।

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