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समस्या की जड़ केवल तहसीलदार नहीं, समस्त तंत्र पर हो ध्यान, जैसे तहसीलों में दो-दो तहसीलदार नियुक्त किए जा रहे हैं, उसी प्रकार SDM व कलेक्टर कार्यालय में भी दो-दो अधिकारी नियुक्त किए जाएं, सरकार को करना चाहिए अपना ध्यान आकर्षित

 समस्या की जड़ केवल तहसीलदार नहीं, समस्त तंत्र पर हो ध्यान, जैसे तहसीलों में दो-दो तहसीलदार नियुक्त किए जा रहे हैं, उसी प्रकार SDM व कलेक्टर कार्यालय में भी दो-दो अधिकारी नियुक्त किए जाएं, सरकार को करना चाहिए अपना ध्यान आकर्षित



ढीमरखेड़ा |  शीर्षक पढ़कर दंग मत होना यह कहानी हैं सरकार के द्वारा अन्याय पूर्ण रवैए की, मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्य में राजस्व न्यायालयों की भूमिका ग्रामीण जनता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। चाहे वह भूमि विवाद हों, नामांतरण प्रकरण हों या सीमांकन, हर मामला प्रत्यक्ष रूप से आमजन के जीवन से जुड़ा होता है। परंतु वर्तमान में इन मामलों के निराकरण की दर और लंबित प्रकरणों की संख्या प्रशासनिक तंत्र की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाती है।

 *वर्तमान स्थिति का विश्लेषण तहसीलदार एवं नायब तहसीलदार स्तर पर*

औसत निराकरण दर: 71.56%

5 वर्ष से अधिक लंबित प्रकरण: 51

यह दर्शाता है कि इन स्तरों पर काम अपेक्षाकृत बेहतर हो रहा है, लेकिन इसके पीछे का एक बड़ा कारण यह भी है कि इन अधिकारियों को जनता के प्रत्यक्ष संपर्क में रहकर काम करना पड़ता है, जिस कारण प्रशासनिक दबाव अधिक होता है।

*अनुविभागीय अधिकारी (SDM) स्तर पर*

औसत निराकरण दर: 61.38%

5 वर्ष से अधिक लंबित प्रकरण: 496

यह आंकड़ा चिंताजनक है। यह स्पष्ट करता है कि अनुविभागीय स्तर पर प्रकरणों का भार बहुत अधिक है और अधिकारी संभवतः अन्य प्रशासनिक कार्यों में उलझे रहते हैं।

*कलेक्टर स्तर पर*

औसत निराकरण दर: 25%

2 से 5 वर्ष से लंबित प्रकरण: 15,352

5 वर्ष से अधिक लंबित प्रकरण: 279

यह सबसे गंभीर स्थिति है। जिले की सर्वोच्च प्रशासनिक इकाई के स्तर पर यदि इतने बड़े पैमाने पर प्रकरण लंबित हैं, तो यह न केवल न्यायिक विलंब का प्रतीक है, बल्कि आम नागरिकों के अधिकारों के हनन का भी कारण बनता है।

 *तहसीलदारों पर प्रशासनिक बोझ एक बड़ी समस्या*

राजस्व न्यायालयों की खराब स्थिति का एक मुख्य कारण यह है कि तहसीलदारों को केवल न्यायिक कार्यों तक सीमित नहीं रखा गया है।प्राकृतिक आपदाओं का आकलन एवं राहत वितरण, निर्वाचन कार्य, नामांतरण, बंटवारा, सीमांकन के केस, सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का क्रियान्वयन,  ग्राम पंचायतों के निगरानी कार्य, अवैध खनन व अतिक्रमण पर कार्यवाही,  SDM या कलेक्टर द्वारा सौंपे गए अन्य कार्य इस प्रशासनिक बहुभार के चलते तहसीलदार न्यायिक कार्यों को प्राथमिकता नहीं दे पाते और जनता को सालों तक न्याय के लिए इंतजार करना पड़ता है।

 *अनुविभागीय अधिकारी (SDM)*

इनका औसत निराकरण दर 61.38% है, जो तहसीलदारों से कम है। प्रकरणों की संख्या अधिक है लेकिन संसाधन और सहयोगी स्टाफ की भारी कमी है। इन्हें भी निर्वाचन, आपदा प्रबंधन, अपराध नियंत्रण और VIP दौरे जैसे कार्यों में लगा दिया जाता है। कलेक्टर 25% का औसत निराकरण इस बात का संकेत है कि न्यायिक कार्यों की तरफ ध्यान कम है। यदि प्रकरणों की संख्या 15,352 (2 से 5 वर्ष) और 279 (5 वर्ष से अधिक) है, तो यह दर्शाता है कि कार्यभार अत्यधिक है।

*प्रत्येक SDM और कलेक्टर स्तर पर अतिरिक्त अधिकारी नियुक्त हों*

जैसे तहसीलों में दो-दो तहसीलदार नियुक्त किए जा रहे हैं, उसी प्रकार SDM व कलेक्टर कार्यालय में भी दो-दो अधिकारी नियुक्त किए जाएं एक न्यायिक और एक प्रशासनिक कार्यों के लिए। इससे न्यायिक प्रकरणों को समय पर निपटाने की क्षमता बढ़ेगी।

 *तहसीलदारों को केवल न्यायिक कार्यों तक सीमित किया जाए*

यदि तहसीलदारों को गैर-जरूरी प्रशासनिक कार्यों से मुक्त किया जाए, तो वे प्रत्येक दिन 10-15 प्रकरणों का न्यायसंगत निराकरण कर सकते हैं।एक तहसीलदार 250 कार्य दिवसों में लगभग 3,000 से अधिक प्रकरणों का निपटारा कर सकता है। प्रत्येक न्यायालय स्तर पर लंबित प्रकरणों की सूची, उनके कारण और निपटान की संभावित तिथि सार्वजनिक पोर्टल पर उपलब्ध करवाई जाए। इससे पारदर्शिता और जवाबदेही दोनों सुनिश्चित होंगी। प्रत्येक अधिकारी के लिए सप्ताह में एक दिन को ‘न्यायिक दिवस’ घोषित किया जाए जिसमें वे केवल न्यायिक कार्य ही करें। आदेश टंकण, दस्तावेज़ों की स्क्रूटनी, पैरोंकार कार्य आदि के लिए पर्याप्त स्टाफ की नियुक्ति की जाए ताकि अधिकारी केवल नीतिगत निर्णय पर ध्यान केंद्रित कर सकें।

 *राजस्व न्यायालयों की स्थिति का व्यापक प्रभाव*

न्याय में देरी, न्याय का हनन , वर्षों तक लंबित मामलों के कारण जनता का व्यवस्था से विश्वास उठने लगता है। जब प्रकरण लंबित रहते हैं, तो दलाल और बिचौलिये सक्रिय हो जाते हैं जो पैसे लेकर ‘तारीख पर तारीख’ दिलवाते हैं। भूमि विवादों के कारण कई बार किसानों को बैंक लोन नहीं मिलता, खेत की जुताई नहीं हो पाती, जिससे उनकी आजीविका प्रभावित होती है।भूमि विवाद अगर समय पर न सुलझे तो दो पक्षों के बीच आपसी झगड़े, मारपीट और कभी-कभी हत्याओं तक की नौबत आ जाती है। तहसीलदारों को गैर-जरूरी प्रशासनिक कार्यों से मुक्त कर न्यायिक रूप में नियुक्त करना। SDM और कलेक्टर कार्यालय में दो अधिकारी  प्रशासनिक व न्यायिक अलग-अलग रखना। न्यायिक कार्यों हेतु विशेष दिवस एवं त्वरित सुनवाई तंत्र लागू करना। -गवर्नेंस व ऑनलाइन केस ट्रैकिंग की व्यवस्था लागू करना। आज आवश्यकता है कि केवल तहसीलदारों को ही नहीं, बल्कि अनुविभागीय अधिकारी और कलेक्टर स्तर पर भी अधिकारियों की संख्या बढ़ाई जाए। जब SDM और कलेक्टर स्तर पर प्रकरणों की संख्या और औसत निराकरण दर तहसीलदारों से भी अधिक खराब है, तो फिर केवल निचले स्तर पर ही नियुक्तियाँ क्यों? प्रशासन का हर स्तर यदि न्याय में देरी कर रहा है तो केवल निचले अधिकारी को दोषी मानना अनुचित है। सरकार को चाहिए कि न्याय की प्राथमिकता को समझे और 'समय पर न्याय, सबका अधिकार' की भावना को सार्थक बनाए। तभी आम जनता को न्याय की वास्तविक अनुभूति होगी और प्रशासनिक तंत्र में जनता का विश्वास पुनः स्थापित हो सकेगा।

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