पोड़ी खिरवा में मानवता को स्थानीय लोगों ने रखा जिंदा, रोडो मे गौ माता रो रोकर सुना रही अपना दर्द लेकिन कोई सुनने वाला नहीं, सड़क पर बिखरी दर्द की चीखें
पोड़ी खिरवा में मानवता को स्थानीय लोगों ने रखा जिंदा, रोडो मे गौ माता रो रोकर सुना रही अपना दर्द लेकिन कोई सुनने वाला नहीं, सड़क पर बिखरी दर्द की चीखें
ढीमरखेड़ा | भारत में गाय को केवल एक पशु नहीं माना जाता, बल्कि वह ‘गौमाता’ के रूप में पूजी जाती है। हमारे धार्मिक ग्रंथों में गाय को जीवनदायिनी बताया गया है। उसका दूध, गोबर और गौमूत्र सभी किसी न किसी रूप में उपयोगी हैं। गांव-गांव में गाय को परिवार का हिस्सा समझा जाता है। ऐसे में सड़क पर तड़पती गायें केवल पशु नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और मान्यताओं का अपमान हैं स्मरण रहे कि एक तेज रफ्तार ट्रक ने अचानक सड़क पर चल रही दो गायों को बेरहमी से कुचल दिया। टक्कर इतनी जोरदार थी कि दोनों गायें दर्द से कराह उठीं और सड़क पर गिर पड़ीं। उनके शरीर से खून बहने लगा, और वे असहनीय पीड़ा में बार-बार उठने की कोशिश करतीं, लेकिन गिर जातीं। उनकी आंखों में जो दर्द था, वह इंसान का दिल पिघलाने के लिए काफी था, लेकिन अफसोस, शासन-प्रशासन का दिल नहीं पिघला। इस दुखद क्षण में, वहां मौजूद कुछ संवेदनशील लोग तुरंत आगे आए। ओमकार चौबे, मोहित पाण्डेय, महेंद्र पटैल, शुभम त्रिपाठी, कृपालु त्रिपाठी,राजेंद्र पटैल,कृष्ण चंद,राजा, सुभाष, अमित,छोटू इन सभी ने मिलकर घटनास्थल पर मानवीय संवेदना की मिसाल पेश की। उन्होंने किसी सरकारी अधिकारी के आने का इंतजार नहीं किया, बल्कि तुरंत स्थानीय डॉक्टर को बुलाकर घायल गायों का उपचार शुरू कराया। किसी ने खून रोकने के लिए पट्टियां लगाईं, तो किसी ने पानी पिलाया। यह दृश्य दिखाता है कि भले ही शासन-प्रशासन अपनी जिम्मेदारी भूल जाए, आम जनता में आज भी इंसानियत जिंदा है।
*उम्मीद की किरण बचाने में लगाई जान की बाजी*
दो गायों को रौंदने वाली यह घटना हमारे समाज और सिस्टम दोनों पर सवाल उठाती है। लेकिन ओमकार चौबे, मोहित पाण्डेय, महेंद्र पटैल, शुभम त्रिपाठी, कृपालु त्रिपाठी, राजेंद्र पटैल, कृष्ण चंद, राजा, सुभाष, अमित और छोटू जैसे लोगों की पहल यह साबित करती है कि अभी भी संवेदना जिंदा है। जरूरत है कि शासन-प्रशासन अपनी जिम्मेदारी समझे और ऐसे मामलों में तुरंत कार्रवाई करे, ताकि मूक प्राणी सड़क पर तड़पने को मजबूर न हों।

Bahut badiya
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