शासन की दमनकारी नीतियों के खिलाफ पटवारी संघ हुआ लामबंद, कटनी में संयुक्त कलेक्टर को सौंपा ज्ञापन
ढीमरखेड़ा | भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में सरकारी कर्मचारी शासन और प्रशासन की रीढ़ माने जाते हैं। वे सरकार की योजनाओं को धरातल पर उतारने में अहम भूमिका निभाते हैं। लेकिन जब इन्हीं कर्मचारियों के साथ भेदभावपूर्ण, दमनकारी और अलोकतांत्रिक नीतियां अपनाई जाती हैं, तो स्वाभाविक है कि वे संगठित होकर अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ें। ऐसा ही एक घटनाक्रम मध्यप्रदेश के कटनी जिले में देखने को मिला, जहां पटवारी संघ शासन की दमनकारी नीतियों के खिलाफ लामबंद हुआ और संयुक्त कलेक्टर को एक सशक्त ज्ञापन सौंपा। पटवारी भारतीय राजस्व व्यवस्था की एक अत्यंत महत्वपूर्ण कड़ी होते हैं। वे न केवल भूमि रिकॉर्ड, सीमांकन, नामांतरण, फसल कटाई निरीक्षण, और राजस्व वसूली जैसे कार्यों के लिए जिम्मेदार होते हैं, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशासन की आँख, कान और हाथ भी होते हैं। लेकिन विडंबना यह है कि जो कर्मचारी जमीनी स्तर पर सबसे अधिक मेहनत करता है, उसे ही सबसे कम सुविधाएं, कम वेतन, अत्यधिक कार्यभार और राजनीतिक हस्तक्षेप का सामना करना पड़ता है। इसी असंतोष ने पटवारी संघ को प्रदेशभर में आंदोलित कर दिया है।अनियमित तबादले और पदस्थापन, दबावपूर्वक कार्य कराना, समय-समय पर वेतन भुगतान में देरी, अतिरिक्त कार्यों की जबरन जिम्मेदारी देना, राजनीतिक दबाव के कारण ईमानदार पटवारियों को टारगेट करना।
*विभागीय अधिकारियों द्वारा अमानवीय व्यवहार*
इन मुद्दों को लेकर पहले भी कई बार पटवारी संघ ने प्रशासन का ध्यान आकृष्ट करने की कोशिश की, परंतु कोई ठोस समाधान नहीं निकला। अंततः 2025 के अगस्त माह में, जब शासन ने नई सेवा शर्तों और कठोर अनुशासनात्मक नियमों की घोषणा की, तब पटवारी संघ के सब्र का बाँध टूट गया। दिनांक 5 अगस्त 2025 को, कटनी जिले के सभी तहसीलों से आए सैकड़ों पटवारी जिला मुख्यालय पर एकत्र हुए। सभी ने काली पट्टी बांधकर विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के बाद एक प्रतिनिधिमंडल ने संयुक्त कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा।
*अनुशासनात्मक कार्यवाही की धमकी वापस ली जाए*
हाल ही में शासन द्वारा यह निर्देश जारी किया गया कि यदि पटवारी समय पर ऑनलाइन पोर्टल अपडेट नहीं करते हैं या समय पर कार्य संपन्न नहीं करते, तो उनके विरुद्ध कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। जबकि ज़मीनी हकीकत यह है कि पोर्टल कई बार तकनीकी कारणों से काम नहीं करता। बिना किसी कारण के तबादले किए जा रहे हैं। स्थानांतरण में पारदर्शिता नहीं है।
*अन्य कार्यों में जबरदस्ती लगाना बंद हो*
पटवारियों से जनगणना, मतदान, बीएलओ, लोकसभा- विधानसभा ड्यूटी, राशन कार्ड सत्यापन, आपदा प्रबंधन, स्कूलों की जांच, स्वास्थ्य शिविर संचालन जैसे अनेक अतिरिक्त कार्य करवाए जाते हैं, जो उनकी मूल जिम्मेदारियों में बाधा डालते हैं। कई पटवारियों को महीनों से वेतन नहीं मिला है। वेतन भुगतान में अत्यधिक देरी हो रही है। महंगाई भत्ते और यात्रा भत्तों का भुगतान भी नहीं किया जा रहा. जमीनी स्तर पर कार्य करने वाले पटवारियों को कई बार ग्रामीण दबाव, राजनैतिक हस्तक्षेप और अपराधियों से धमकियों का सामना करना पड़ता है। उनकी सुरक्षा को लेकर शासन गम्भीर नहीं है।
*नवीन तकनीकी संसाधनों की सुविधा*
आज के डिजिटल युग में पटवारियों से पोर्टल, टैबलेट, लैपटॉप, जीआईएस सिस्टम, मोबाइल ऐप्स पर कार्य करवाया जाता है, लेकिन उन्हें उचित संसाधन उपलब्ध नहीं कराए जाते. ज्ञापन में यह मांग भी शामिल थी कि जिन पटवारियों के खिलाफ हाल ही में झूठी शिकायतों पर कार्रवाई की गई है, उनकी निष्पक्ष न्यायिक जांच कराई जाए।
*संघ के वक्तव्यों की झलक*
कटनी पटवारी संघ के अध्यक्ष ने कहा "हम कोई राजनीति नहीं कर रहे, हम केवल अपने हक और सम्मान की लड़ाई लड़ रहे हैं। शासन की नीतियाँ दिन-ब-दिन दमनकारी होती जा रही हैं। यदि हमारी मांगें नहीं मानी जातीं, तो हम प्रदेशव्यापी हड़ताल का रास्ता अपनाएंगे।" हमारे पास तकनीकी संसाधन नहीं, न ही विभागीय सहयोग। लेकिन फिर भी हम पूरी ईमानदारी से कार्य कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि शासन हमें कर्मचारी नहीं, इंसान समझे।"
*जनता और अधिकारियों की प्रतिक्रिया*
हालांकि कुछ अधिकारियों का मानना है कि पटवारी संघ का विरोध उचित नहीं है, और सरकार लगातार उनके हित में कार्य कर रही है। लेकिन कई वरिष्ठ अधिकारी भी पटवारियों की समस्याओं को समझते हैं और मानते हैं कि वर्तमान शासन के आदेशों में व्यावहारिक पक्ष की कमी है। ग्रामीण जनता का कहना है कि जब पटवारी नाराज रहते हैं, तो सीधा असर जनता पर पड़ता है नामांतरण, सीमांकन, किसान पंजीयन, फसल बीमा जैसे कार्य रुक जाते हैं।
*आंदोलन का अगला कदम*
ज्ञापन सौंपने के बाद संघ ने सरकार को 7 दिन का अल्टीमेटम दिया है।जिले भर के पटवारी संपूर्ण कार्य बहिष्कार करेंगे जनपद और तहसील कार्यालयों में धरना प्रदर्शन होगा भोपाल में राज्य स्तरीय आंदोलन की शुरुआत की जाएगी। इंदौर, भोपाल, जबलपुर, रीवा, ग्वालियर, सागर आदि जिलों से भी पटवारी संघ की इकाइयों ने समर्थन जताया है। यदि शासन अपनी तानाशाही नहीं छोड़ता है, तो हम सभी जिलों में काम बंद करेंगे और सीएम हाउस तक आंदोलन ले जाएंगे।
*संविधान और कर्मचारी अधिकार*
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। यदि कोई कर्मचारी संगठन शांतिपूर्ण ढंग से अपनी मांगों को रखता है, तो यह उनका संवैधानिक अधिकार है। लेकिन यदि शासन इसका दमन करता है, तो यह लोकतंत्र की आत्मा के खिलाफ है।कटनी जिले में पटवारी संघ द्वारा संयुक्त कलेक्टर को सौंपा गया ज्ञापन केवल एक ज्ञापन नहीं है, यह उन हजारों पटवारियों की गूंगी पीड़ा और संघर्ष की आवाज़ है जो वर्षों से दबाई जाती रही है। यह विरोध केवल वेतन, स्थानांतरण या सुविधाओं के लिए नहीं है, बल्कि सम्मान, गरिमा और न्याय की लड़ाई है। यदि शासन समय रहते संवाद की नीति अपनाता है और कर्मचारियों की समस्याओं को गंभीरता से सुलझाता है, तो प्रशासनिक व्यवस्था सुदृढ़ होगी। अन्यथा यदि यही दमनकारी रवैया जारी रहा, तो आने वाले दिनों में पूरे प्रदेश में बड़ा कर्मचारी आंदोलन खड़ा हो सकता है, जिसकी कीमत सरकार और जनता दोनों को चुकानी पड़ेगी।

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