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शिक्षा के मंदिर में सोती संवेदनाएँ, सो रहे शिक्षक रो रहा बच्चो का भविष्य जब बच्चो की नींव ही अच्छी नहीं होगी तो बच्चे कैसे बनेंगे समझदार बहोरीबंद जनपद शिक्षा केंद्र के अंतर्गत आने वाली शासकीय ए.एल. राय हायर सेकेंडरी स्कूल बचैया का मामला

 शिक्षा के मंदिर में सोती संवेदनाएँ, सो रहे शिक्षक रो रहा बच्चो का भविष्य जब बच्चो की नींव ही अच्छी नहीं होगी तो बच्चे कैसे बनेंगे समझदार बहोरीबंद जनपद शिक्षा केंद्र के अंतर्गत आने वाली शासकीय ए.एल. राय हायर सेकेंडरी स्कूल बचैया का मामला



कटनी |  शिक्षा किसी भी समाज का सबसे मजबूत स्तंभ है। यह वह आधार है जिस पर राष्ट्र की नींव खड़ी होती है, लेकिन कटनी जिले के बहोरीबंद जनपद शिक्षा केंद्र के अंतर्गत आने वाली शासकीय ए.एल. राय हायर सेकेंडरी स्कूल बचैया से जो तस्वीरें सामने आईं, उन्होंने शिक्षा की पवित्रता और शिक्षक की गरिमा दोनों को कठघरे में खड़ा कर दिया है।विद्यालय, जिसे ‘ज्ञान का मंदिर’ कहा जाता है, वहाँ बच्चों को दिशा देने वाले शिक्षक स्वयं गहरी नींद में सोए मिले।कुछ ने बाकायदा बिस्तर बिछा लिया था, तो कुछ मोबाइल स्क्रीन पर डूबे हुए थे। और सबसे हैरानी की बात यह रही कि प्राचार्य महोदय भी कक्षा के समय खर्राटे भरते नज़र आए। यह दृश्य केवल शर्मनाक ही नहीं बल्कि शिक्षा व्यवस्था की आत्मा को झकझोर देने वाला है।

*जब गुरु ही सो जाए तो शिष्य किससे सीखे?*

हमारी परंपरा में गुरु को देवता का स्थान दिया गया है। गुरु ही शिष्य का जीवन गढ़ता है, उसके भीतर छिपी संभावनाओं को आकार देता है।लेकिन जब वही गुरु अपने कर्तव्य से विमुख होकर नींद को ज्ञान पर वरीयता देने लगे, तो यह विद्यार्थियों के भविष्य के साथ विश्वासघात है।बच्चे स्कूल आते हैं ताकि उनका मार्गदर्शन हो, उन्हें दिशा मिले। लेकिन जब सामने बैठे गुरुजन खुद नींद और मोबाइल के शिकार हों, तो छात्रों की मेहनत और सपनों को कौन संवार पाएगा?

*शिक्षा व्यवस्था की खोखली दीवारें*

यह घटना किसी एक विद्यालय तक सीमित नहीं है। यह पूरे शिक्षा तंत्र की उस खोखली दीवार को उजागर करती है, जिसके पीछे लापरवाही, उदासीनता और जवाबदेही का अभाव छिपा है। लाखों रुपए वेतन पाने वाले शिक्षक यदि बच्चों को पढ़ाने की बजाय आराम करना ही उचित समझते हैं, तो यह करदाताओं के पैसों की खुली बर्बादी है। आज ग्रामीण क्षेत्रों के अभिभावक अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा बच्चों की पढ़ाई पर खर्च करते हैं, उन्हें स्कूल भेजते हैं ताकि उनका भविष्य बने।लेकिन जब स्कूल ही आरामगाह बन जाए, तो उनकी उम्मीदें टूट जाती हैं। यही कारण है कि कई परिवार मजबूरी में निजी स्कूलों का रुख करते हैं, जिससे असमानता और गहराती है।

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