रीठी में पदस्थ इंजीनियर पंकज शुक्ला की मनमानी चरम पर विकास कार्यों में भ्रष्टाचार की दीवार
कटनी | मध्य प्रदेश के कटनी जिले के अंतर्गत आने वाले रीठी जनपद की पंचायतें इन दिनों भ्रष्टाचार और शोषण के नए दौर से गुजर रही हैं। सरकारी योजनाएं, जो ग्रामीण विकास की रीढ़ मानी जाती हैं, आज भ्रष्ट तंत्र की गिरफ्त में जकड़ी हुई प्रतीत हो रही हैं। इस पूरे तंत्र में जिस व्यक्ति का नाम तेजी से उभरकर सामने आ रहा है, वह हैं जनपद रीठी में पदस्थ उपयंत्री (सब इंजीनियर) पंकज शुक्ला। उन पर आरोप है कि वे पंचायतों में होने वाले विकास कार्यों में बिल पास करने के एवज में सरपंचों और सचिवों से कमीशन की खुली मांग करते हैं।
*उपयंत्री पंकज शुक्ला पद और प्रभाव*
पंकज शुक्ला जनपद पंचायत रीठी में उपयंत्री के पद पर कार्यरत हैं। उनका काम है ग्रामीण क्षेत्रों में चल रहे निर्माण एवं विकास कार्यों की निगरानी करना, गुणवत्ता सुनिश्चित करना, और पूर्ण कार्यों के बिल पास कराना। लेकिन इन जिम्मेदारियों का दुरुपयोग कर पंकज शुक्ला पर आरोप है कि वे पंचायतों के सरपंचों और सचिवों से बिलों को पास कराने के लिए कमीशन की मांग करते हैं। यह कमीशन की व्यवस्था अब एक स्थापित 'प्रथा' बन चुकी है, जिसमें अगर कोई सरपंच यह कमीशन नहीं देता, तो उनका कार्य लंबित रखा जाता है, या बिलों में त्रुटियाँ निकाल दी जाती हैं।
*सरपंचों की पीड़ा ‘काम करो या घूस दो’ की नीति*
रीठी जनपद के कई ग्राम पंचायतों के सरपंचों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि वे बेहद असहाय महसूस कर रहे हैं। एक सरपंच ने कहा हमने सड़क बनाई, लेकिन उपयंत्री साहब ने साफ कह दिया कि कमीशन दो तभी बिल पास होगा। जब मना किया तो दो महीने तक फाइल दबा दी। कुछ सरपंचों ने यह भी आरोप लगाया कि अगर कोई कमीशन देने से मना करता है तो उपयंत्री द्वारा जानबूझकर निर्माण कार्य में खामियां निकाल दी जाती हैं और उच्च अधिकारियों को गलत रिपोर्ट भेजी जाती है।
*सचिवों का संघर्ष पद की जिम्मेदारी और भय का दबाव*
पंचायत सचिवों की स्थिति भी कम दयनीय नहीं है। उन्हें विकास कार्यों की रिपोर्टिंग, बिलिंग, और दस्तावेजीकरण की जिम्मेदारी दी जाती है। जब उपयंत्री द्वारा उन्हें बार-बार कमीशन देने का दबाव बनाया जाता है, तो वे दोराहे पर खड़े हो जाते हैं या तो वे अपनी ईमानदारी छोड़ दें, या फिर नौकरी का जोखिम उठाएं। गोपनीय सचिव का कहना हैं कि हमसे बार - बार कहा जाता है कि कमीशन रूपी ‘नजराना’ दो। नहीं तो बिल वापस कर दिए जाएंगे या भुगतान में देरी होगी। हमने अपने अफसरों से शिकायत की, पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
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