बच्चों की जिंदगी लगी दाव पर देखने और सुनने वाला कोई नहीं नियम केवल फाइलों तक सीमित, दूसरे राज्यों में 12 से 15 साल तक चल सकतीं हैं स्कूल बसें, हमारे यहां 20 साल, दूसरे राज्यों में कबाड़ घोषित हो चुकीं बसें स्कूल वाहनों में हो रही इस्तेमाल
बच्चों की जिंदगी लगी दाव पर देखने और सुनने वाला कोई नहीं नियम केवल फाइलों तक सीमित, दूसरे राज्यों में 12 से 15 साल तक चल सकतीं हैं स्कूल बसें, हमारे यहां 20 साल, दूसरे राज्यों में कबाड़ घोषित हो चुकीं बसें स्कूल वाहनों में हो रही इस्तेमाल
कटनी | जिले में कई कबाड़ और अनफिट वाहन स्कूली वाहन के रूप में संचालित हो रहे हैं। स्कूल संचालकों द्वारा ऐसे जर्जर वाहनों में बच्चों को लाने और ले जाने के रूप में किया जा रहा है। बच्चों को भी पूरी फीस देने के बाद भी असुविधा के बीच इन वाहनों के कबाड़ वाहनों में सफर करना पड़ रहा है। इस ओर परिवहन विभाग का ध्यान बिल्कुल भी नहीं है। इस सबके बीच बच्चों को बैठाकर सड़कों पर भर रहे इन कबाड़ वाहनों से हादसे की आशंका बनी रहती है। जानकारी के मुताबिक शहर में 50 फीसदी स्कूल बसें ऐसी हैं जिन्हें दूसरे राज्यों से लाया गया है। छत्तीसगढ़, हरियाणा, महाराष्ट्र में यह वाहन कबाड़ घोषित हो चुके हैं।जिससे वहां पर ये कबाड़ वाहन रोड से नीचे कर दिए हैं। कटनी के स्कूल संचालक और अन्य लोग इन कबाड़ वाहनों को कम कीमत में खरीदकर स्कूली बसों के रूप में धड़ल्ले से चलाया जा रहा है। इसकी मुख्य वजह है यहां के नियम। अन्य राज्यों में कहीं पर 12 साल तो कहीं पर 15 साल तक ही स्कूल बसों का संचालन किया जा सकता है। टाइम लिमिट के बाद इन वाहनों को बाहर कर दिया जाता है। लेकिन हमारे यहां 20 साल तक बसों को चलाया जा सकता है। यही कारण है कि अन्य राज्यों में कबाड़ घोषित हो चुकी बसें हमारे यहां धड़ल्ले से चल रही हैं। इसके चलते पहले भी कई हादसे हो चुके है। जिस रफ्तार से स्कूल बसें सड़कों पर फरर्राटे भर रही हैं उससे आने वाले दिनों में भी हादसे होने की आशंका बनी रहती है। जानकारी के अनुसार दूसरे राज्यों की बसों के अलावा कटनी में प्रदेश के अन्य शहरों से लाई गई बसों का संचालन किया जा रहा है। इसकी मुख्य वजह है कि कटनी में स्कूल बसों की जांच साल में एक से दो-बार ही होती है। वहीं प्रदेश के अन्य शहरों में लगातार जांच होने से कबाड़ बसों का संचालन करना मुश्किल होता है। दूसरे राज्यों में आरटीओ, पुलिस और प्रशासन द्वारा सख्ती होने के कारण कबाड़ वाहनों का संचालन टाइम लिमिट के बाद नहीं होता है और ऐसे वाहनों को खड़ा कर दिया जाता है।
*पुराने वाहनों को लाकर बनाया कमाई का जरिया*
दूसरे राज्यों में जहां बसों को 12 से 15 साल में रोड से बाहर कर दिया जाता है। उन राज्यों और शहरों से स्थानीय स्कूल संचालक और अन्य लोग ऐसे कबाड़ वाहनों को लाकर कमाई का जरिया बना लिया है। साथ ही वाहनों की खरीद फरोख्त करने वाले लोग भी बाहर से बसों को कम कीमत में लाकर शहर के लोगों को बेच देते हैं। वहीं कुछ ग्राहकों को तैयार करके दूसरे राज्यों में जाकर सौदा तय करवाकर वाहन बेच देते हैं। यही कारण है कि ऐसी कबाड़ बसों को स्कूलों में संचालित किया जा रहा है।
*यातायात पुलिस को पहली जांच में ही मिली कमियां, जो नहीं हुई दूर*
गौरतलब है कि शिक्षण सत्र के शुरुआत में यातायात पुलिस ने बसों की जांच की थी। इस दौरान सभी स्कूल बसों में विभिन्न कमियां मिली। कार्रवाई के दौरान जुर्माना वसूला गया। इसके बाद यह बसें दोबारा से चलने लगीं। यातायात पुलिस के मुताबिक कार्रवाई के दौरान स्कूल बसों में फर्स्ट एंड बॉक्स नहीं था।चालक परिचालक बिना यूनिफार्म में थे। कई बसों में दो दरवाजे नहीं थे। सीसीटीवी कैमरे के साथ खिड़कियों में रैलिंग नहीं लगी थी। इसके अलावा अन्य कमियां भी सामने आई थीं। जिन्हें पूरा कराने के निर्देश देते हुए चालानी कार्रवाई की थी। लेकिन कई बसों में अब भी यह कमियां हैं।
*आरटीओ द्वारा वाहनों की नहीं की जा रही जांच*
इस संबंध में आरटीओ के द्वारा वाहनों की जांच नही की जा रही हैं लिहाजा अगर जांच की जाती तो कार्यवाही की तलवार लटकाई जाती लेकिन न जांच हों रही न कार्यवाही की जा रही है नियमो को ताक में रखकर कार्य किया जा रहा है। बच्चों की जिंदगी से खिलवाड़ किया जा रहा है और देखने वाला और कार्यवाही करने वाला कोई नहीं हैं।
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