"रणचंडी की पुकार, अब परशुराम बनना ही होगा ब्राह्मण की पहचान, संघर्ष और सत्य", ब्राह्मण प्रेम में झुकना जानता है क्रोध में तो परशुराम है, ब्राह्मण विरोधियों के ऊपर बहुत जल्द राष्ट्रीय परशुराम परिषद इकाई ढीमरखेड़ा के तहसील अध्यक्ष राहुल पाण्डेय लेंगे एक्शन, उठाएंगे फरसा करेगे वध, भारत में ब्राह्मण 3% होने के बाद भी 97% की छाती पर कर रहे तांडव
"रणचंडी की पुकार, अब परशुराम बनना ही होगा ब्राह्मण की पहचान, संघर्ष और सत्य", ब्राह्मण प्रेम में झुकना जानता है क्रोध में तो परशुराम है, ब्राह्मण विरोधियों के ऊपर बहुत जल्द राष्ट्रीय परशुराम परिषद इकाई ढीमरखेड़ा के तहसील अध्यक्ष राहुल पाण्डेय लेंगे एक्शन, उठाएंगे फरसा करेगे वध, भारत में ब्राह्मण 3% होने के बाद भी 97% की छाती पर कर रहे तांडव
ढीमरखेड़ा | "धर्मो रक्षति रक्षितः" जो धर्म की रक्षा करता है, वही धर्म उसकी रक्षा करता है। यह वाक्य ब्राह्मण समाज की आत्मा है। आज जब सोशल मीडिया पर ब्राह्मण समाज को लेकर अनेक अनर्गल टिप्पणियाँ की जा रही हैं, उसका मज़ाक उड़ाया जा रहा है, उसे लक्ष्य बनाकर राजनीतिक रोटियाँ सेंकी जा रही हैं, तब यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि अब रणचंडी स्वयं परशुराम को पुकार रही हैं। यह पुकार केवल प्रतिशोध की नहीं, बल्कि चेतना की है। यह अहंकार नहीं, आत्मसम्मान का उद्घोष है।
*ब्राह्मण केवल जाति नहीं, एक जीवन मूल्य*
ब्राह्मण यह शब्द केवल किसी वर्ण व्यवस्था का भाग नहीं है। यह एक आदर्श जीवन शैली, एक आध्यात्मिक मूल्य और नैतिकता की मूर्ति है।ब्राह्मण वह नहीं जो केवल यज्ञोपवीत धारण करे, बल्कि वह है जो यज्ञ और तप में समर्पित हो, जो अध्ययन, मनन, चिंतन और समर्पण में लीन हो। ब्राह्मण की पहचान उसके ज्ञान, त्याग और निष्पक्षता से होती है।
"ब्राह्मणो नित्यं अध्येयं तपस्वी ब्रह्मचारिणः।"
ब्राह्मण सृष्टि का प्रथम चिंतक है, समाज का मार्गदर्शक है और राष्ट्र का अनन्य हितैषी है। उसकी शक्ति तलवार नहीं, विचार है; उसकी सेना नहीं, सिद्धांत है।
*इतिहास की दृष्टि से ब्राह्मण के वेश की महानता*
इतिहास में बार-बार देखा गया है कि जब किसी को भी छल करना होता है, जब किसी का भरोसा जीतना होता है, तब ब्राह्मण के वेश का उपयोग किया जाता है। ऐसा इसलिए कि ब्राह्मण नाम ही विश्वास और धर्म का प्रतीक बन चुका है।
रावण – जब माता सीता का अपहरण करना था, तो ब्राह्मण का वेश धारण किया, क्योंकि ब्राह्मण पर कोई संदेह नहीं करता।
हनुमान जी – लंका पहुँच कर जब उन्होंने श्रीराम का भेद जानने की चेष्टा की, तो ब्राह्मण के वेश में थे।
कालनेमी – हनुमान जी को भ्रमित करने के लिए ब्राह्मण का वेश धारण किया।
कर्ण – जब परशुराम से शिक्षा प्राप्त करनी थी, तो ब्राह्मण का वेश धारण किया।
श्रीकृष्ण – युद्ध भूमि में कर्ण को भ्रमित करने के लिए ब्राह्मण का वेश धारण किया।
वरुण देव – राजा हरिश्चंद्र की परीक्षा लेने ब्राह्मण वेश में आए।
विश्वामित्र – जब छल करना हुआ तो ब्राह्मण वेश का प्रयोग किया।
वामन अवतार – स्वयं भगवान विष्णु ने राजा बलि से तीन पग भूमि मांगने ब्राह्मण रूप धारण किया।
पांडव – अपने अज्ञातवास में ब्राह्मण वेश में रहे, क्योंकि वही सबसे सुरक्षित और सम्मानजनक था। इन सभी घटनाओं से एक ही सत्य सामने आता है ब्राह्मण वेश ही विश्वास का प्रतीक रहा है। उसका दुरुपयोग तभी होता है जब लोग जानते हैं कि समाज ब्राह्मण को ही आदर्श मानता है।
*ब्राह्मण की पहचान ज्ञान, तप और धर्म*
ब्राह्मण का अस्तित्व केवल पूजा-पाठ, कर्मकांड या यज्ञों तक सीमित नहीं रहा। वह समाज का मार्गदर्शक, राजा का गुरु, सैनिकों का रणनीतिकार, किसानों का सहायक, शिक्षा का प्रवर्तक, और धर्म का रक्षक रहा है।ब्राह्मण समाज में अनेक ऋषि-मुनि हुए जिन्होंने वेदों का संकलन किया (वेदव्यास), आयुर्वेद दिया (चरक), गणित और खगोल विज्ञान का विकास किया (आर्यभट्ट, भास्कराचार्य), राजनीति और अर्थशास्त्र दिया (चाणक्य), न्यायशास्त्र का आधार रखा (जैमिनी), और योग, ध्यान व अध्यात्म की परंपरा को विश्व भर में पहुँचाया।ब्राह्मण समाज की शक्ति हथियार नहीं, विचार रहा है। उसका अस्त्र शास्त्र रहा है।
*समकालीन संकट क्यों उठ रही है परशुराम की मांग?*
आज जब सोशल मीडिया जैसे मंच पर ब्राह्मणों को लक्ष्य बनाकर मज़ाक उड़ाया जाता है, झूठे आरोप लगाए जाते हैं, उन्हें "आरक्षण विरोधी", "सवर्णवादी", "सामंती" जैसे जुमलों से पुकारा जाता है, तब यह समझना ज़रूरी है कि यह एक वैचारिक षड्यंत्र है। ब्राह्मण जो स्वयं में संयम, संतोष, त्याग और सेवा का प्रतीक रहा है, आज उसे अभिमानी, स्वार्थी और वंचक बताकर सामाजिक विमर्श से हटाने का प्रयास किया जा रहा है। यह ठीक उसी तरह है जैसे इतिहास में छल करने वाले ब्राह्मण वेश धारण करते थे। आज कुछ तथाकथित स्वयंभू बुद्धिजीवी ब्राह्मणों की आड़ में समाज में भ्रम फैला रहे हैं। असली ब्राह्मण को बदनाम किया जा रहा है।अब परशुराम बनना ही होगा! जब असत्य का बोलबाला हो, जब धर्म को चुनौती दी जाए, जब ब्राह्मण की मर्यादा को ललकारा जाए तब सहना अधर्म होता है। परशुराम ब्राह्मण का वह रूप हैं जो अत्याचार के विरुद्ध खड़ा होता है। "क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो, उसको क्या जो दंतहीन, विषहीन, विनीत, सरल हो।" अब समय आ गया है कि ब्राह्मण समाज अपने भीतर छिपे परशुराम तत्व को जाग्रत करे न हिंसा के लिए, बल्कि अधर्म और अपमान के विरुद्ध सत्य और गरिमा की रक्षा के लिए। परशुराम एक प्रतीक हैं — धर्मरक्षा के लिए ब्राह्मण का रौद्र रूप। वह बताते हैं कि ब्राह्मण सहिष्णु है, लेकिन कमजोर नहीं। वह क्षमाशील है, लेकिन कायर नहीं।
*ब्राह्मण की विशेषताएँ एक विस्तृत चित्रण, गुण व्याख्या*
ज्ञान वेद-पुराण, शास्त्र और विज्ञान का गहरा अध्ययन त्याग स्वयं के सुख का परित्याग कर समाज के लिए समर्पण धैर्य सबसे बड़े संकटों में भी संयम बनाए रखना संतोष कम संसाधनों में भी संतुलित जीवन जीना दूरदर्शिता समाज के दीर्घकालीन हित को समझना निष्पक्षता न्यायप्रिय होना, चाहे कोई भी पक्ष हो धर्मनिष्ठा सत्य, करुणा, अहिंसा और आचरण में विश्वास
*ब्राह्मण, राष्ट्र का वास्तविक आधार*
भारतवर्ष की संस्कृति की जड़ें ब्राह्मणों के चिंतन से निकली हैं।गुरुकुल से लेकर भारतीय संविधान के मूल विचार तक, ब्राह्मणों का योगदान अमूल्य रहा है। स्वामी विवेकानंद, दयानंद सरस्वती, बाल गंगाधर तिलक, महर्षि अरविंद, मदन मोहन मालवीय, पं. नेहरू जैसे अनेक ब्राह्मणों ने स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्र निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाई।
*परशुराम को समझिए, और जागिए!*
आज जब ब्राह्मणों को केवल एक वर्ग के रूप में गाली दी जाती है, तो यह समय है चेतने का। हमें परशुराम की तरह तटस्थ नहीं रहना चाहिए। हमें विचारों से, ज्ञान से, और सत्य से समाज को जाग्रत करना होगा। "ब्राह्मण कोई विशेषाधिकार नहीं मांगता, वह केवल अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा चाहता है।" अब समय है फिर से उस आदर्श ब्राह्मण को प्रस्तुत करने का जो समाज का आधार था न कि किसी राजनीतिक एजेंडा का शिकार। रणचंडी की पुकार सुनाई दे रही है अब ब्राह्मण को फिर से अपना रौद्र रूप धारण करना होगा, परशुराम बनकर अन्याय, छल और अपमान के विरुद्ध धर्म युद्ध छेड़ना होगा शब्दों से, विचारों से और सत्य से। जय ब्राह्मण समाज। जय परशुराम। जय भारत।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें