समाज सुधार करते - करते नेता अपना जीवन दूसरी स्त्रियों से संबंध रखते हुए सुधारने लगते हैं यह कैसी नेतागिरी, राजनैतिक संरक्षण का उठाते हैं फायदा, जब नेता का अपना घर नहीं संभलता, तो समाज कैसे सुधरेगा
समाज सुधार करते - करते नेता अपना जीवन दूसरी स्त्रियों से संबंध रखते हुए सुधारने लगते हैं यह कैसी नेतागिरी, राजनैतिक संरक्षण का उठाते हैं फायदा, जब नेता का अपना घर नहीं संभलता, तो समाज कैसे सुधरेगा
ढीमरखेड़ा | राजनीति को एक ऐसा माध्यम माना जाता है जिसके द्वारा जनता की सेवा की जाती है, समाज के विकास के लिए निर्णय लिए जाते हैं और जनता के दुख - दर्द को समझकर उसे दूर करने का प्रयास किया जाता है। लेकिन जब वही राजनेता अपने व्यक्तिगत जीवन में विफल रहता है, अपने घर की समस्याओं का समाधान नहीं कर पाता, तो प्रश्न उठना स्वाभाविक है क्या ऐसा व्यक्ति समाज को दिशा दे सकता है?
*राजनैतिक संरक्षण और उसका दुरुपयोग*
आज के समय में कई राजनेता अपने पद और प्रभाव का इस्तेमाल निजी लाभ और गलत कार्यों को छिपाने के लिए करते हैं। उन्हें जो संरक्षण शासन, दल या सत्ता से प्राप्त होता है, वह न केवल उनके राजनीतिक जीवन को सुरक्षित करता है बल्कि निजी जीवन की असफलताओं और अनैतिक आचरणों को भी ढक देता है। जब किसी नेता की पत्नी मायके चली जाती है और वर्षों तक वापस नहीं लौटती, तब यह एक पारिवारिक मामला नहीं रह जाता। यदि वह महिला अपने पति के अवैध संबंध, अत्याचार या उपेक्षा की वजह से अपने ससुराल नहीं लौटती, तो यह महिला अधिकारों का सीधा उल्लंघन है। लेकिन आश्चर्य तब होता है जब ऐसे नेता अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके पुलिस, प्रशासन और समाज के अन्य अंगों को चुप करा देते हैं।
*अवैध संबंध और परिवार में अशांति*
नेताओं के निजी जीवन में अवैध संबंध होना कोई नई बात नहीं रह गई है। लेकिन जब यही संबंध पारिवारिक जीवन को तहस-नहस कर देते हैं और पत्नी को मानसिक, शारीरिक या भावनात्मक रूप से परेशान करते हैं, तो यह गंभीर अपराध बन जाता है। ऐसे मामलों में अक्सर नेता अपनी पत्नी को मायके भेज देते हैं और फिर उसे कभी वापस नहीं लाते। कारण साफ है – नई महिला के साथ संबंध, यदि एक व्यक्ति अपने घर में नारी को सम्मान नहीं दे सकता, उसकी भावनाओं का सम्मान नहीं कर सकता, तो वह समाज की महिलाओं की रक्षा कैसे करेगा?
*क्या ऐसे व्यक्ति क्षेत्र में शांति स्थापित कर सकते हैं?*
नेता केवल योजनाओं की घोषणा करके महान नहीं बनते, बल्कि अपने आचरण से, अपने जीवन से समाज को प्रेरित करते हैं। अगर उनके घर में ही अशांति है, पत्नी मायके बैठी है, बच्चों को पिता का प्यार नहीं मिलता, और घरेलू विवाद खुलेआम हैं, तो जनता ऐसे व्यक्ति को अपना प्रतिनिधि क्यों चुने? शांति केवल भाषणों से नहीं आती, वह उस विचारधारा से आती है जो न्याय, समानता और संवेदनशीलता को समझती है। यदि एक नेता अपने ही घर में न्याय नहीं कर सकता, तो वह दूसरों को न्याय कैसे दिलाएगा?
*न्याय और अन्याय का निर्णय लेने की योग्यता*
राजनीति में बैठा व्यक्ति जब अपने स्वार्थ के लिए कानून का दुरुपयोग करता है, तो वह समाज को भ्रमित करता है। वह न्याय का नहीं, केवल सत्ता का सेवक बनकर रह जाता है।यदि नेता अपने निजी जीवन में अन्याय कर रहा है अपनी पत्नी के साथ दुर्व्यवहार, उपेक्षा, या उसे छोड़ देने जैसा कार्य कर रहा है – और फिर मंच पर न्याय की बातें करता है, तो यह ढोंग के सिवा कुछ नहीं। ऐसे नेता जब क्षेत्र में न्याय की बात करते हैं, तो जनता को ठगा हुआ महसूस होता है। क्योंकि जिसे अपने ही जीवन में सत्य और असत्य का भेद नहीं मालूम, वह समाज के लिए कैसे मार्गदर्शक बनेगा?
*प्रभावित होते हैं सरकारी संस्थान*
जब राजनैतिक संरक्षण के कारण ऐसे लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती, तो पुलिस, प्रशासन और महिला आयोग जैसे संस्थानों की साख पर सवाल उठता है। महिलाएं जब शिकायत करती हैं, तब उन्हें कहा जाता है कि "ये तो नेता हैं, इनसे मत उलझो।" यह मानसिकता समाज में भय और अन्याय को जन्म देती है। अगर नेता के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज नहीं हो सकती, तो आम आदमी को न्याय कैसे मिलेगा?
*क्या समाज स्वीकार करता है इस दोहरे चरित्र को?*
समाज का एक बड़ा वर्ग इन घटनाओं को जानता है लेकिन चुप रहता है। कारण कई हैं डर, मजबूरी, या यह सोच कि "सभी नेता ऐसे ही होते हैं।" लेकिन यही चुप्पी अन्याय को बढ़ावा देती है। नेता जब मंच से महिलाओं के सम्मान की बात करता है, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा लगाता है, लेकिन घर में ही अपनी पत्नी का सम्मान नहीं करता, तो वह केवल एक नौटंकीबाज़ होता है, जनसेवक नहीं।
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