कर्म ऐसा करो कि जब चमक फीकी पड़े, तब भी लोग तुम्हारे नाम से रोशन हो जाएं
ढीमरखेड़ा | हमारे जीवन में कई क्षण ऐसे आते हैं जब हम बाहरी चमक-दमक, दिखावे और प्रतिष्ठा की चकाचौंध में फंस जाते हैं। हमें लगता है कि सफलता का अर्थ सिर्फ नाम, पैसा, पद और शोहरत है। लेकिन जैसे ही यह अस्थायी आकर्षण खत्म होता है, तब हमें अपने वास्तविक जीवन और कर्मों की याद आने लगती है। यही वह समय होता है जब हमें यह समझ आता है कि हमारी पहचान सिर्फ हमारे कर्मों से होती है, न कि दिखावे से।
*भौतिकता की क्षणिकता*
आज का युग भौतिकता और उपभोक्तावाद का युग है। हर व्यक्ति बेहतर दिखने, आगे निकलने और श्रेष्ठ बनने की होड़ में लगा है। सोशल मीडिया, फैशन, ब्रांडेड जीवनशैली यह सब हमारे मन - मस्तिष्क को बांधते हैं और हमें भ्रम में डालते हैं कि यही सफलता है। लेकिन यह सब केवल "चंद रोज की चमक दमक" है। एक समय आता है जब यह सब फीका पड़ जाता है। ब्रांडेड कपड़े पुराने हो जाते हैं, शोहरत के चर्चे थम जाते हैं, और लोग अगली खबर की ओर बढ़ जाते हैं।
*कर्म का सिद्धांत*
भारत के दर्शन में कर्म का विशेष स्थान है। भगवद गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था, "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन" (अर्थात: तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, फल में नहीं।) कर्म ही वह ताकत है जो व्यक्ति को वास्तविक पहचान देता है। चमक-दमक से कोई भी व्यक्ति महान नहीं बनता, बल्कि उसके कर्म तय करते हैं कि समाज उसे किस रूप में याद रखेगा। जो व्यक्ति ईमानदारी से, सच्चाई से, निष्ठा और परिश्रम से कार्य करता है, वह भले ही अधिक प्रसिद्ध न हो, पर जब समय आता है, तो लोग उसकी कर्म कहानी को याद करते हैं।
*समाज में दिखावे की प्रवृत्ति*
आज का समाज सोशल मीडिया और बाहरी आडंबर से ग्रसित है। लोग इंस्टाग्राम पर फ़िल्टर लगे चेहरे, लग्ज़री कारें, महंगे रेस्टोरेंट की तस्वीरें डालकर एक आभासी जीवन जीते हैं।लेकिन जब अकेलेपन के क्षण आते हैं, जब सब चुप हो जाते हैं, तब आत्मा सवाल करती है "क्या यह सब असली था?" यही वह पल होता है जब अपनी-अपनी कर्म कहानी याद आती है।
*राजनीति और शक्ति का मोह*
राजनीतिक जीवन इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। एक नेता सत्ता में आता है, गाड़ियों का काफिला, मीडिया का ध्यान, लोगों की भीड़ सब उसे सिर आंखों पर बिठाते हैं। लेकिन जैसे ही कार्यकाल समाप्त होता है, चमक फीकी पड़ जाती है। लोग उसी नेता को उसके पुराने फैसलों, वादों, भ्रष्टाचार या जनसेवा के आधार पर याद रखते हैं। कर्मों की गूंज हमेशा दूर तक सुनाई देती है, सत्ता की आवाज केवल सीमित समय तक।
*सिनेमा और प्रसिद्धि की दुनिया*
फिल्मी सितारे, कलाकार, गायक ये लोग जब लोकप्रिय होते हैं, तो हर ओर उनकी चर्चा होती है। लेकिन जैसे - जैसे समय बीतता है, नए चेहरे आ जाते हैं। पुराने कलाकारों को लोग केवल तब याद करते हैं जब उन्होंने कुछ ऐसा किया हो जो अमिट छाप छोड़ जाए जैसे नरगिस की समाजसेवा, सुशांत सिंह राजपूत की सोच, या राज कपूर की सिनेमाई विरासत। यहां भी वही सिद्धांत काम करता है चमक जाती रहती है, कर्म रह जाते हैं।
*व्यक्तिगत जीवन में लागू होती हैं सच्चाई*
एक साधारण व्यक्ति भी जब अपने जीवन के उत्तरार्ध में पहुंचता है, तो वह यह नहीं सोचता कि उसके पास कितनी संपत्ति थी, बल्कि यह सोचता है कि उसने किसे खुश किया, किसका भला किया, किन रिश्तों को संजोया और किन्हें दुख दिया। आख़िर में याद रह जाते हैं रिश्ते, विचार और कर्म।
*मृत्यु के बाद क्या बचता है?*
जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो उसकी अंतिम यात्रा में उसका पद, बैंक बैलेंस या फेसबुक फ़ॉलोअर्स नहीं जाते। उसके साथ जाते हैं लोगों की यादें, आशीर्वाद, और प्रार्थनाएं। अगर किसी ने अच्छे कर्म किए, तो लोग कहते हैं “अरे, बहुत नेक इंसान था।”अगर गलत किए, तो कहते हैं “पैसे वाला तो था, लेकिन आदमी नहीं था।” संत कबीर कहते हैं - "साईं इतना दीजिए, जामे कुटुंब समाय। मैं भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाए।" यह संतुलन की बात है दिखावे और वास्तविकता के बीच। रहीम कहते हैं- "रहिमन देखी बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि। जहां काम आवे सुई, कहा करे तलवारि।।" यह कर्म की महत्ता को दर्शाता है चाहे व्यक्ति छोटा हो, लेकिन उसका कर्म बड़ा हो सकता है।
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम – एक वैज्ञानिक, एक राष्ट्रपति, लेकिन उनके सबसे यादगार कर्म हैं बच्चों से मिलना, सादगी से जीवन जीना और शिक्षा का प्रचार करना ।
मदर टेरेसा - उनके पास ना कोई सत्ता थी, ना धन-संपत्ति, लेकिन आज भी लोग उन्हें उनके करुणामय कर्मों के लिए याद करते हैं। इस धरती पर हर व्यक्ति एक कहानी है। कुछ लोग रोशनी की तरह चमकते हैं लेकिन जल्दी बुझ जाते हैं, तो कुछ दीपक की तरह लगातार जलते रहते हैं। वो जो दिखावे के पीछे भागे, वो खो गए। वो जो कर्म के रास्ते चले, वो अमर हो गए। "चंद रोज की चमक दमक हैं फिर ढीली पड़ जायेगी, अपनी - अपनी कर्म कहानी याद सभी को आयेगी।" यह पंक्ति हमें याद दिलाती है कि जीवन का सच्चा मूल्य बाहरी सफलता में नहीं, बल्कि हमारे द्वारा किए गए कर्मों में छिपा है। जीवन में भले ही कोई भी मुकाम मिले, लेकिन अगर उसके पीछे ईमानदारी, परिश्रम और सच्चाई नहीं है, तो वह केवल क्षणिक है।
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