निखिल कुमार चौधरी, गांव के शासकीय स्कूल से 95.4% की उपलब्धि, बना क्षेत्र की प्रेरणा
ढीमरखेड़ा | गांवों से भी प्रतिभा कभी पीछे नहीं रहती। सुविधाओं की कमी भले हो, लेकिन यदि संकल्प मजबूत हो और परिवार व शिक्षकों का सहयोग हो, तो कोई भी लक्ष्य दूर नहीं। ऐसा ही एक नाम आज पूरे पोड़ी कला बी खिरवा गांव और आसपास के क्षेत्र में गर्व और प्रेरणा का प्रतीक बन गया है निखिल कुमार चौधरी, जिसने कक्षा 10 वीं की बोर्ड परीक्षा में 95.4% अंक हासिल करके न सिर्फ अपने परिवार और विद्यालय का नाम रोशन किया बल्कि यह साबित कर दिया कि मेहनत और लगन ही असली सफलता की कुंजी है।
*पारिवारिक पृष्ठभूमि मेहनतकश माता-पिता की संतान*
निखिल के पिता संतोष चौधरी एक साधारण किसान हैं। रोज़ सुबह खेतों में पसीना बहाकर वे अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं। उनकी माता अनीता बाई चौधरी एक गृहिणी हैं, जिन्होंने बेटे की पढ़ाई के लिए हर संभव सहयोग किया। सीमित संसाधनों के बावजूद दोनों ने कभी भी निखिल के सपनों में कोई कमी नहीं आने दी। जब गांव के अन्य बच्चे ट्यूशन पढ़ने शहर जाते थे, तब निखिल घर पर ही पुस्तकें पढ़कर अपनी तैयारी करता था। संतोष चौधरी कहते हैं, “हमारी आर्थिक स्थिति ज़रूर अच्छी नहीं है, लेकिन निखिल ने हमेशा कहा कि वह मेहनत से आगे बढ़ेगा। उसने अपने वादे को निभाया।”
*शासकीय हाई स्कूल पोड़ी कला बी का गौरव*
जहां निजी स्कूलों को आमतौर पर बेहतर शिक्षा का माध्यम माना जाता है, वहीं निखिल जैसे विद्यार्थियों ने यह मिथक तोड़ दिया है। शासकीय हाई स्कूल पोड़ी कला बी खिरवा को आज इस उपलब्धि के कारण पूरे क्षेत्र में सम्मान की दृष्टि से देखा जा रहा है। स्कूल के प्राचार्य और शिक्षकगण भी इस बात से उत्साहित हैं कि उनका विद्यालय अब केवल नाम मात्र का नहीं, बल्कि गुणवत्ता का प्रतीक बन रहा है। विद्यालय के शिक्षक बताते हैं, “निखिल पढ़ाई में जितना तेज था, उतना ही अनुशासित भी। उसने हर विषय में गहरी समझ विकसित की और लगातार अभ्यास किया। वह हमेशा जिज्ञासु रहता और हर प्रश्न का उत्तर जानना चाहता।”
*निखिल की पढ़ाई का तरीका, अनुशासन और आत्मनिर्भरता*
निखिल की सफलता का रहस्य सिर्फ टॉपिक पढ़ लेना नहीं था, बल्कि समझने और उसे गहराई से आत्मसात करने की आदत थी। वह रोज़ पढ़ाई का निश्चित समय तय करता था और कठिन विषयों को सबसे पहले निपटाता था। उसने न सिर्फ पाठ्यपुस्तकों को ध्यान से पढ़ा, बल्कि पुराने प्रश्न पत्रों का विश्लेषण करके तैयारी की। निखिल बताता है, “मैंने कभी रटने पर विश्वास नहीं किया। मेरे लिए हर सवाल को समझना जरूरी था। मैंने समय की पाबंदी रखी और मोबाइल से दूरी बनाई। मेरे गुरुजन ही मेरी सबसे बड़ी ताकत थे।”
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