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जाति प्रमाण पत्र नहीं गरीब प्रमाणपत्र जारी किया जाए आरक्षण जाति को नहीं गरीब को दिया जाए गरीब हर जाति में होते हैं

 जाति प्रमाण पत्र नहीं गरीब प्रमाणपत्र जारी किया जाए आरक्षण जाति को नहीं गरीब को दिया जाए गरीब हर जाति में होते हैं



कटनी  |  भारत एक विशाल और विविधताओं वाला देश है। यहां भाषा, संस्कृति, परंपरा और क्षेत्र की तरह ही सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों में भी गहरी असमानताएं मौजूद हैं। सदियों से चली आ रही जाति-व्यवस्था ने समाज को कई खांचों में बांटा है। आजादी के बाद जब संविधान निर्माताओं ने पिछड़े समाजों को मुख्यधारा में लाने के उद्देश्य से आरक्षण व्यवस्था लागू की, तब इसका मूल उद्देश्य सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना था। लेकिन समय के साथ यह व्यवस्था कई सवालों के घेरे में आ गई है। आज कई लोग यह मांग कर रहे हैं कि आरक्षण जाति के आधार पर नहीं, बल्कि आर्थिक आधार पर दिया जाना चाहिए। उनका तर्क है कि गरीबी किसी एक जाति की बपौती नहीं है; गरीब तो हर जाति में होते हैं। इसलिए जाति प्रमाण पत्र के बजाय गरीब प्रमाणपत्र जारी किए जाएं ताकि असली पात्रों तक लाभ पहुंच सके।

*वर्तमान आरक्षण व्यवस्था का ऐतिहासिक आधार*

आरक्षण का मूल उद्देश्य था सदियों से पीड़ित, शोषित और सामाजिक रूप से कमजोर वर्गों को शिक्षा, रोजगार और राजनीति में समान अवसर देना।ऐसी जातियों को ऊपर उठाना जिन्हें सामाजिक संरचना ने लंबे समय तक पीछे धकेला। यही कारण था कि अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और बाद में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को जाति आधारित आरक्षण प्रदान किया गया। यह व्यवस्था सामाजिक पिछड़ेपन पर आधारित थी, आर्थिक पिछड़ेपन पर नहीं। उस समय यह आवश्यक भी था, क्योंकि सामाजिक भेदभाव ही किसी भी व्यक्ति के अवसरों और जीवन-स्तर को निर्धारित करता था।

*बदलते समय के साथ नई चुनौतियां*

बीते 70 वर्षों में देश की परिस्थितियों में काफी बदलाव आया है। आज समाजिक भेदभाव कम हुआ है । कई आरक्षित जातियों के परिवार आर्थिक और शैक्षणिक रूप से मजबूत हो चुके हैं। दूसरी ओर कई सामान्य वर्ग के लोग बेहद गरीबी में जीवन यापन कर रहे हैं, लेकिन उनके लिए आरक्षण का कोई दरवाजा खुला नहीं है। गरीबी तो किसी जाति को देखकर नहीं आती। गरीब की थाली में रोटी कम है, चाहे वह किसी भी जाति का हो। गरीब के बच्चों को पढ़ाई में संघर्ष करना पड़ता है, चाहे वह किसी भी धर्म या समुदाय से जुड़े हों। अस्पतालों की लाइन में गरीब ही धक्के खाते हैं, चाहे उनका सरनेम कुछ भी क्यों न हो इसलिए कई लोग यह मांग कर रहे हैं कि आरक्षण व्यवस्था को सामाजिक न्याय के नए स्वरूप में ढाला जाए जहां असली लाभार्थी आर्थिक रूप से कमजोर लोग हों।

*गरीब प्रमाणपत्र जारी करने की आवश्यकता*

सिर्फ जाति प्रमाणपत्र जारी करने से यह पता चल जाता है कि व्यक्ति किस जाति में जन्मा है, लेकिन यह उसके आर्थिक स्तर, शिक्षा के अभाव, सामाजिक दीनता या वास्तविक जरूरत को नहीं दर्शाता । इसके विपरीत “गरीब प्रमाणपत्र” यह स्पष्ट करेगा व्यक्ति की आय कितनी है क्या उसके पास जमीन है परिवार का आर्थिक स्तर क्या है वह किन सुविधाओं से वंचित है क्या सच में सरकार की सहायता का अधिकारी है यदि ऐसी व्यवस्था बने जिसमें गरीब प्रमाणपत्र ही आरक्षण का आधार हो, तब किसी भी जाति के गरीब बच्चे को समान अधिकार मिलेंगे।

*आर्थिक आधार पर आरक्षण के फायदे*

समान अवसर का सिद्धांत मजबूत होगा,गरीब चाहे किसी जाति का हो, उसे आगे बढ़ने का मौका मिलेगा। इससे समाज में न्याय और समानता की भावना बढ़ेगी। असली लाभार्थी आगे आएंगे जो लोग आर्थिक रूप से सक्षम हैं, लेकिन जाति के आधार पर लाभ ले रहे हैं, वे स्वतः बाहर हो जाएंगे। सामाजिक सद्भाव बढ़ेगा जाति के कारण होने वाले विवाद, मतभेद और राजनीतिक तनाव कम होंगे। लोग समझेंगे कि लाभ जाति से नहीं, जरूरत से तय होता है। गरीबी उन्मूलन में सीधे मदद कई गरीब परिवार जो अभी किसी भी श्रेणी में नहीं आते, उन्हें शिक्षा, रोजगार, छात्रवृत्ति और अन्य योजनाओं में अवसर मिलेगा।

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