जिन ठेकेदारों ने लिया था बिल्डिंग का ठेका जिंनने किया भ्रष्टाचार उनसे की जानी चाहिए वसूली जहां - जहां पहुंचा कमीशन उनको होना चाहिए फांसी, जिंनने गरीब बच्चों की बिल्डिंग पर डाला डाका उसको जनता के सामने लाया जाना चाहिए जनता करेगी फैसला
जिन ठेकेदारों ने लिया था बिल्डिंग का ठेका जिंनने किया भ्रष्टाचार उनसे की जानी चाहिए वसूली जहां - जहां पहुंचा कमीशन उनको होना चाहिए फांसी, जिंनने गरीब बच्चों की बिल्डिंग पर डाला डाका उसको जनता के सामने लाया जाना चाहिए जनता करेगी फैसला
ढीमरखेड़ा | शिक्षा किसी भी राष्ट्र की नींव होती है। अगर नींव ही कमजोर हो तो उस पर कोई मजबूत इमारत खड़ी नहीं हो सकती। जब हम सरकारी स्कूलों की हालत देखते हैं, खासकर ग्रामीण इलाकों में, तो स्थिति बेहद दयनीय नज़र आती है। छतें टपकती हैं, दीवारों में दरारें हैं, फर्श टूटे हुए हैं, टॉयलेट की व्यवस्था नहीं है और कई बार तो स्कूल की बिल्डिंग ही नहीं होती। ऐसे हालात में बच्चों से यह अपेक्षा करना कि वे मन लगाकर पढ़ाई करें, सरासर अन्याय है।
*स्कूल भवनों की जर्जर स्थिति एक जमीनी सच्चाई*
देशभर में हजारों स्कूल ऐसे हैं जिनकी बिल्डिंगें न सिर्फ पुरानी हो चुकी हैं, बल्कि कभी भी गिरने जैसी स्थिति में हैं। बरसात के मौसम में छतों से पानी टपकना आम बात है। कई बार तो पूरी क्लास को एक कोने में सिमटकर बैठना पड़ता है, या स्कूल बंद ही कर देना पड़ता है। कई स्कूल बिना भवन के पेड़ों के नीचे या किसी घर के आंगन में चल रहे हैं। सरकारी आंकड़ों में अक्सर दिखा दिया जाता है कि "सभी स्कूलों में भवन हैं", लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। इन भवनों में न तो सुरक्षा है, न सुविधाएं और न ही पढ़ाई का माहौल।
*बच्चों की पढ़ाई पर असर*
स्कूल की खराब स्थिति बच्चों के मनोबल को तोड़ती है। एक बच्चा जो खुले में बैठकर पढ़ता है, या जिसकी क्लासरूम की छत से पानी टपकता है, वह शिक्षा को बोझ समझने लगता है। विशेष रूप से ग्रामीण और गरीब वर्ग के बच्चों के लिए स्कूल ही एकमात्र आशा होता है, और जब वही टूटी-फूटी अवस्था में हो, तो उनके उज्जवल भविष्य की संभावना बहुत क्षीण हो जाती है।
*सरकार, मंत्री और विधायक जबाबदेही तय हो*
यह आवश्यक है कि जनता के प्रतिनिधि मंत्री और विधायक केवल घोषणाएं करने तक सीमित न रहें, बल्कि उनकी जवाबदेही भी सुनिश्चित की जाए। यदि उनके क्षेत्र में स्कूल भवन जर्जर अवस्था में हैं, तो उन्हें यह उत्तरदायित्व लेना होगा कि या तो वे स्वयं इसकी निगरानी करें या जनता को साफ जानकारी दें कि स्कूल क्यों नहीं बन रहे। एक बहुत ही कारगर सुझाव यह है कि जब तक नए स्कूल नहीं बनते, तब तक मंत्रियों और विधायकों के घरों में ही स्कूल चला दिए जाएं। तब उन्हें भी यह एहसास होगा कि शिक्षा का बुनियादी ढांचा कितना जरूरी है और उसकी अनदेखी कितनी शर्मनाक है।
*पूंजीपतियों से टैक्स और सामाजिक उत्तरदायित्व*
देश के अमीर उद्योगपतियों और पूंजीपतियों पर टैक्स लगाने के अलावा, उन्हें "कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी" (CSR) के तहत स्कूल निर्माण में भागीदारी करनी चाहिए। जब अरबों-खरबों की संपत्ति कमाने वाले उद्योगपति हर साल CSR के नाम पर बड़ी राशि खर्च करते हैं, तो वह पैसा स्कूलों की मरम्मत और नई इमारतों के निर्माण में क्यों नहीं लगाया जा सकता? ऐसे पूंजीपतियों को चिन्हित कर सरकार को बाध्य करना चाहिए कि वे CSR फंड को शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में ही खर्च करें।
*भ्रष्टाचार मुक्त निर्माण की आवश्यकता*
बहुत बार देखा गया है कि स्कूल भवन निर्माण का बजट तो आता है, लेकिन निर्माण अधूरा रहता है या बहुत घटिया स्तर का होता है। बिल्डिंग शुरू होती है, थोड़ी दीवार बनती है, और फिर काम बंद हो जाता है। कई जगहों पर सिर्फ आधार शिला रख दी जाती है, और वर्षों तक कार्य आगे नहीं बढ़ता। इसका कारण है ठेकेदारी व्यवस्था में फैला भ्रष्टाचार। ठेकेदारों को काम तो मिल जाता है, लेकिन जब तक कोई उन्हें भुगतान की राशि का "कमीशन" नहीं देता, अधिकारी बिल पास नहीं करते। इस भ्रष्टाचारी गठजोड़ को तोड़ना आवश्यक है।
*जिन्होंने ठेका लिया और बिल्डिंग नहीं बनाई उनके ठेके रद्द हों*
यह बहुत स्पष्ट नीति होनी चाहिए कि जो ठेकेदार सरकारी पैसे लेकर स्कूल की इमारत नहीं बनाते या अधूरी छोड़ देते हैं, उनका ठेका रद्द किया जाए और उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज हो। साथ ही, उन्हें भविष्य में किसी भी सरकारी कार्य का ठेका न मिले, इसका भी प्रावधान होना चाहिए। अधूरे या घटिया कार्य के लिए भुगतान करना भी बंद होना चाहिए, और संबंधित अधिकारियों से भी जवाबदेही ली जाए।
*अधिकारियों की लापरवाही पर वेतन कटौती*
यदि कोई सरकारी अधिकारी, इंजीनियर या कर्मचारी यह देखकर भी अनदेखा करता है कि स्कूल भवन नहीं बन रहा या घटिया निर्माण हो रहा है, तो उसके वेतन से कटौती की जानी चाहिए। यह कटौती तब तक चलनी चाहिए जब तक वह स्थिति को ठीक न कर दे। जवाबदेही तभी सुनिश्चित हो सकती है जब वेतन, पद और सेवा शर्तों पर असर डाला जाए।
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