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पहरुआ पंचायत के सरपंच शारदा प्रसाद महोबिया, छोटी - छोटी बातों में बड़ा विवाद, विधायक की छवि को नुकसान अविश्वास प्रस्ताव की आहट

 पहरुआ पंचायत के सरपंच शारदा प्रसाद महोबिया, छोटी - छोटी बातों में बड़ा विवाद, विधायक की छवि को नुकसान  अविश्वास प्रस्ताव की आहट



ढीमरखेड़ा |  मध्य प्रदेश के कटनी जिले की जनपद पंचायत ढीमरखेड़ा के अंतर्गत ग्राम पंचायत पहरुआ इन दिनों चर्चाओं का केंद्र बनी हुई है। इसका कारण है वर्तमान सरपंच शारदा प्रसाद महोबिया, जिनके आचरण और कार्यशैली को लेकर न सिर्फ पंचायत क्षेत्र के नागरिकों में रोष है, बल्कि सरकारी कर्मचारियों और जनप्रतिनिधियों के बीच भी असंतोष की लहर दौड़ रही है। छोटे-छोटे प्रशासनिक और व्यक्तिगत विवादों में बार-बार विधायक को फोन कर परेशान करने की उनकी आदत, कर्मचारियों को धमकाने वाला रवैया, और ‘मैं भाजपा से हूं’ कहकर खुद को प्रभावशाली दिखाने की कोशिशें ये सभी घटनाएं क्षेत्रीय राजनीति और शासन-प्रशासन की गरिमा को चोट पहुंचा रही हैं।

*संपर्क माध्यम या दबाव की राजनीति?*

शारदा प्रसाद महोबिया द्वारा बार-बार विधायक को फोन कर विभिन्न मुद्दों की शिकायत करना अब आम बात हो गई है। चाहे वह पंचायत स्तर पर छोटे मोटे विकास कार्यों की बात हो, मनरेगा मजदूरों की उपस्थिति, या फिर पटवारी द्वारा भूमि मुआवजा वितरण, सरपंच का सीधा विधायक से संवाद एक सामान्य प्रक्रिया नहीं बल्कि एक प्रकार का राजनीतिक दबाव बन चुका है। ग्राम पंचायतों में यह देखा गया है कि सरपंच और जनपद सदस्यों का मुख्य कार्य स्थानीय समस्याओं का समाधान प्रशासनिक स्तर पर करना होता है, लेकिन जब कोई सरपंच हर बात पर विधायक को फोन कर हस्तक्षेप की मांग करता है, तो यह विधायक के दायित्वों और छवि को भी आघात पहुंचाता है। विधायक को इस तरह की छोटी बातों में उलझाना उनके मुख्य कामकाज में बाधा उत्पन्न करता है और इससे जनता की निगाहों में विधायक की गंभीरता पर भी सवाल खड़े होते हैं।

*कर्मचारियों पर अभद्र भाषा और धमकियों का आरोप*

शारदा प्रसाद महोबिया का एक और बड़ा विवाद कर्मचारियों के प्रति उनके व्यवहार को लेकर है। पंचायत सचिव, रोजगार सहायक, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, स्वास्थ्य कर्मी या पटवारी कोई भी उनसे सुरक्षित नहीं दिखता। प्राप्त जानकारी के अनुसार, वे अक्सर कर्मचारियों को "चमका" देने की भाषा में बात करते हैं, जिससे न केवल उनके मनोबल पर असर पड़ता है, बल्कि सरकारी तंत्र का भी अपमान होता है। एक पटवारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सरपंच बार-बार उन्हें धमकाते हुए कहते हैं, “मैं भाजपा से हूं, सबको देख लूंगा।” इसी प्रकार पंचायत सचिव ने बताया कि सरपंच अकसर विकास कार्यों में हस्तक्षेप करते हैं और जब मनमाफिक निर्णय नहीं होता, तो फर्जी आरोप लगाकर परेशान करते हैं। यह सब ग्रामीण प्रशासन में अराजकता का कारण बनता जा रहा है।

*भाजपा का नाम लेकर अनुचित प्रभाव बनाने की कोशिश*

शारदा प्रसाद महोबिया का बार-बार यह कहना कि वे भाजपा पार्टी से हैं, उन्हें यह अधिकार नहीं देता कि वे नियमों और मर्यादाओं की अनदेखी करें। लोकतंत्र में हर व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, लेकिन यदि कोई जनप्रतिनिधि अपने राजनीतिक जुड़ाव का दुरुपयोग कर अधिकारियों को धमकाए, जनसेवाओं में बाधा उत्पन्न करे या लोगों को डराने-धमकाने लगे, तो यह न केवल असंवैधानिक है बल्कि पार्टी की प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंचाने वाला होता है। भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टी की छवि मेहनती, ईमानदार और जनता को समर्पित नेताओं की रही है, लेकिन यदि निचले स्तर पर चुने हुए प्रतिनिधि पार्टी के नाम का उपयोग कर व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्ध करते हैं, तो इससे जनता में पार्टी के प्रति भी नकारात्मक भाव उत्पन्न होता है।

*विधायक की छवि पर प्रतिकूल प्रभाव*

पहरुआ सरपंच द्वारा बार-बार विधायक को छोटी-छोटी बातों में फोन करना, उनके नाम का उपयोग करते हुए अधिकारियों को धमकाना और विवाद उत्पन्न करना  ये सभी बातें विधायक की प्रतिष्ठा पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रही हैं। आमजन में यह धारणा बन रही है कि विधायक का उपयोग अब कुछ जनप्रतिनिधि अपनी शक्ति प्रदर्शन के लिए कर रहे हैं, जिससे उनकी गंभीरता और निष्पक्षता पर संदेह उत्पन्न हो रहा है।विधायक जनसेवा के लिए चुने गए हैं, न कि पंचायत स्तर की राजनीति में उलझने के लिए। यदि सरपंचों की ऐसी आदतें जारी रहीं, तो विधायक को भी राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ सकता है, क्योंकि जनता ऐसे मुद्दों को लंबे समय तक याद रखती है।

 *ग्रामवासियों में आक्रोश और असंतोष*

ग्राम पंचायत पहरुआ में रहने वाले आम लोग अब धीरे-धीरे सरपंच के व्यवहार से नाराज होते जा रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि सरपंच अब विकास की बजाय विवाद में रुचि लेने लगे हैं। जल, बिजली, सड़क, सफाई जैसे मुद्दे पीछे छूट गए हैं, और अब पंचायत की बैठकों में भी केवल आरोप-प्रत्यारोप का माहौल होता है।कुछ लोगों ने बताया कि सरपंच व्यक्तिगत दुश्मनी में लोगों को योजनाओं का लाभ देने से वंचित कर रहे हैं, मनरेगा में अपने चहेतों को ही काम मिल रहा है, और वृद्धा पेंशन, प्रधानमंत्री आवास जैसी योजनाओं में पक्षपात हो रहा है।

*अविश्वास प्रस्ताव की तैयारी*

स्थानीय सूत्रों के अनुसार, अब पंचायत स्तर पर सरपंच के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी चल रही है। जनपद सदस्यों और पंचों का एक बड़ा समूह सरपंच की कार्यशैली से नाराज है और वे जल्द ही कलेक्टर को ज्ञापन सौंप सकते हैं। यदि आवश्यक संख्या में पंच और जनपद सदस्य प्रस्ताव का समर्थन करते हैं, तो पंचायत अधिनियम की धाराओं के तहत सरपंच को पद से हटाया जा सकता है। अविश्वास प्रस्ताव ग्राम पंचायत की राजनीति में एक संवैधानिक उपाय है, जो जनप्रतिनिधियों को जवाबदेह बनाता है। यदि शारदा प्रसाद महोबिया अपनी कार्यशैली में बदलाव नहीं लाते, तो यह तय माना जा रहा है कि अविश्वास प्रस्ताव की मुहर उन पर लग सकती है।

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