ग्राम निमास में अवैध बिड़ी कारखाना, प्रशासन की मिलीभगत से हों रहा कार्य, कार्यवाही के नाम पर हीलाहवाली, ढीमरखेड़ा क्षेत्र में भी होना चाहिए कार्यवाही कई जगह चल रहे कार्य
ग्राम निमास में अवैध बिड़ी कारखाना, प्रशासन की मिलीभगत से हों रहा कार्य, कार्यवाही के नाम पर हीलाहवाली, ढीमरखेड़ा क्षेत्र में भी होना चाहिए कार्यवाही कई जगह चल रहे कार्य
कटनी | भारत एक लोकतांत्रिक राष्ट्र है, जहां कानून सबके लिए बराबर है, लेकिन जब इन्हीं कानूनों को ताक पर रखकर कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए अवैध गतिविधियों को अंजाम देते हैं और शासन-प्रशासन की आंखों में धूल झोंकते हैं, तब यह सवाल उठना लाज़िमी हो जाता है कि क्या देश में नियम-कानून सिर्फ गरीबों के लिए हैं? ऐसा ही एक मामला सामने आया है मध्यप्रदेश के कटनी जिले की बहोरीबंद तहसील के ग्राम निमास से, जहां वर्षों से रामस्वरूप जायसवाल उर्फ गुड्डा नामक व्यक्ति बिना किसी लाइसेंस, जीएसटी पंजीकरण या कानूनी स्वीकृति के अवैध बीड़ी कारखाने का संचालन कर रहा है।
*कारोबार का गोरखधंधा*
रामस्वरूप जायसवाल द्वारा संचालित बीड़ी का यह अवैध कारोबार केवल ग्राम निमास तक सीमित नहीं है, बल्कि इसकी जड़ें उत्तर प्रदेश के रायबरेली, राजस्थान और अन्य शहरों तक फैली हुई हैं। बताया जाता है कि गुड्डा द्वारा कई कमरों में बीड़ी तैयार करवाई जाती है और फिर उन्हें ट्रेनों के जरिए भेजा जाता है। बीड़ी के पैकेट और बंडलों को अन्य नामों की बिल्टी पर भेजा जाता है ताकि असली स्रोत को छुपाया जा सके। यह कार्य वर्षों से किया जा रहा है, और इसमें रेलवे के पार्सल एजेंटों की भी मिलीभगत बताई जाती है।
*बिना दस्तावेज़, बिना अनुमति*
जब मीडिया द्वारा मौके पर दस्तावेज मांगे गए, तो रामस्वरूप जायसवाल कोई वैध दस्तावेज दिखाने में असफल रहा। न तो फैक्ट्री का लाइसेंस, न जीएसटी रजिस्ट्रेशन, न ही किसी प्रकार की वैध अनुमति पत्र उपलब्ध था। बावजूद इसके, उसका दावा था कि उसे कुछ नहीं हो सकता क्योंकि उसकी पहुंच जबलपुर, कटनी सहित कई बड़े अधिकारियों तक है। उसका यह बयान न केवल कानून का मज़ाक उड़ाता है, बल्कि प्रशासनिक तंत्र पर भी सवाल खड़े करता है।
*सरकार को करोड़ों का नुकसान*
गुड्डा द्वारा किए जा रहे इस अवैध व्यापार से राज्य और केंद्र सरकार को लाखों-करोड़ों रुपयों का नुकसान हो रहा है। न जीएसटी का भुगतान किया जा रहा है, न ही किसी प्रकार का राजस्व। यह सीधे तौर पर कर चोरी का मामला है, जो एक गंभीर आर्थिक अपराध की श्रेणी में आता है। इसके बावजूद किसी भी जांच एजेंसी ने अब तक इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया।
*प्रशासन की चुप्पी क्या है कारण?*
सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों शासन-प्रशासन इस अवैध धंधे पर चुप्पी साधे बैठा है? क्या वास्तव में कुछ छोटे-बड़े अधिकारियों की मिलीभगत है? क्या रेलवे अधिकारियों की नज़रों के सामने ही बीड़ी के पैकेट्स ट्रेनों में चढ़ाए जाते हैं और मोटी रकम लेकर उन्हें अनदेखा कर दिया जाता है? यदि यह सब हो रहा है तो यह सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम का पतन है।
*अवैध धंधे की जड़ें और नेटवर्क*
जानकारों के अनुसार गुड्डा का नेटवर्क इतना मजबूत है कि वह सिर्फ कटनी या रायबरेली तक सीमित नहीं है। उसकी बीड़ी राजस्थान, बिहार, दिल्ली जैसे राज्यों में भी पहुंच रही है। कार्टून में पैक की गई बीड़ियां रेलवे पार्सल के जरिए देशभर में भेजी जाती हैं। इन बीड़ियों पर न तो निर्माता का नाम होता है, न ही किसी प्रकार की गुणवत्ता का प्रमाण। ऐसे में यह उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य के लिए भी खतरा है।
*कानून की धज्जियां और पुलिस की भूमिका*
इतने बड़े पैमाने पर अवैध व्यापार होने के बावजूद न तो स्लीमनाबाद पुलिस और न ही जिला प्रशासन ने कोई ठोस कार्यवाही की है। इससे साफ ज़ाहिर होता है कि या तो पुलिस को इसकी जानकारी नहीं है (जो संभव नहीं लगता) या जानबूझकर आंखें मूंद रखी हैं। यह प्रशासनिक भ्रष्टाचार और लापरवाही का जीवंत उदाहरण है।
*बीड़ी मजदूरों का शोषण*
एक और अहम पहलू यह है कि इस अवैध कारखाने में काम कर रहे मजदूरों का कोई रिकॉर्ड नहीं है। उन्हें न्यूनतम वेतन, चिकित्सा सुविधा, सुरक्षा उपकरण आदि कुछ भी नहीं मिलता। न ही उनके पास किसी प्रकार का पहचान पत्र होता है। अगर कल को कोई दुर्घटना होती है, तो जिम्मेदारी कौन लेगा? ऐसे अवैध उद्योग सिर्फ सरकार को ही नहीं, आम जनता को भी नुकसान पहुंचाते हैं।
*स्वास्थ्य पर प्रभाव और समाज में खतरे*
बिना गुणवत्ता मानकों के तैयार की जा रही बीड़ी सीधे तौर पर लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ है। तम्बाखू और बीड़ी से जुड़ी बीमारियां जैसे कैंसर, श्वसन तंत्र के रोग, हृदय रोग आदि का ख़तरा और बढ़ जाता है। लेकिन फिर भी ऐसी बीड़ियों को खुलेआम बाजार में बेचा जा रहा है, जिससे न केवल उपभोक्ता बल्कि पूरा समाज प्रभावित हो रहा है।
*क्या नियम-कानून सिर्फ गरीबों के लिए हैं?*
जब एक गरीब व्यक्ति बिना हेलमेट के गाड़ी चलाए तो पुलिस चालान काटती है। जब एक छोटी दुकान वाला जीएसटी रजिस्ट्रेशन नहीं कराता तो उसे नोटिस थमा दिया जाता है। लेकिन जब एक व्यक्ति करोड़ों के अवैध कारोबार को खुलेआम अंजाम देता है, तो उसे कोई कुछ नहीं कहता। क्या यही है लोकतंत्र? क्या कानून की लाठी सिर्फ गरीबों पर ही चलती है?
*जनता और सामाजिक संगठनों की जिम्मेदारी*
इस पूरे मामले में अब वक्त आ गया है कि सामाजिक संगठन, जनप्रतिनिधि और आम जनता इस गोरखधंधे के खिलाफ आवाज उठाएं। यदि यह मामला यूं ही चलता रहा तो अन्य लोग भी इसी रास्ते पर चलने लगेंगे और इससे अपराध को बढ़ावा मिलेगा। ग्राम निमास में चल रहा यह अवैध बीड़ी व्यापार न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि सरकार को आर्थिक क्षति, आमजन को स्वास्थ्य नुकसान और समाज में गलत संदेश देने वाला है। यह अत्यंत आवश्यक है कि जिला प्रशासन, पुलिस, रेलवे विभाग, जीएसटी विभाग और अन्य संबंधित एजेंसियां तुरंत प्रभाव से इस पर कड़ी कार्यवाही करें। यदि अब भी कार्रवाई नहीं होती है तो यह समझा जाएगा कि प्रशासन की मिलीभगत है और यह मामला मीडिया और जन अदालत में उठाया जाना चाहिए।भारत में यदि कानून व्यवस्था को मजबूत करना है, तो ऐसे अवैध व्यापार और उनके संचालकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई जरूरी है। यदि रामस्वरूप जायसवाल जैसे लोग खुलेआम कहते हैं कि "मुझे कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता", तो यह लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है। अब समय आ गया है कि सरकार यह साबित करे कि कानून सबके लिए बराबर है चाहे वह गरीब हो या रसूखदार गुड्डा।
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