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अति का होता हैं अंत अपने लोगों को प्रभार देकर के काटते थे मलाई, भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे डीपीसी केके डेहरिया पद से हटाए गए, शिक्षा जगत में पारदर्शिता की ओर एक बड़ा कदम उठाया

 अति का होता हैं अंत अपने लोगों को प्रभार देकर के काटते थे मलाई, भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे डीपीसी केके डेहरिया पद से हटाए गए,  शिक्षा जगत में पारदर्शिता की ओर एक बड़ा कदम



ढीमरखेड़ा |  भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में शिक्षा को राष्ट्र निर्माण की रीढ़ कहा जाता है। लेकिन जब शिक्षा व्यवस्था को संचालित करने वाले अधिकारी ही भ्रष्टाचार में लिप्त हों, तो उस व्यवस्था की नींव हिलने लगती है। कुछ ऐसा ही मामला सामने आया है मध्य प्रदेश के कटनी जिले से, जहां जिला परियोजना समन्वयक (डीपीसी) केके डेहरिया को भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के चलते उनके पद से हटा दिया गया है। इस पूरे मामले में जिला पंचायत सदस्य मोहिनी देवी की भूमिका सराहनीय रही, जिन्होंने न सिर्फ शिकायत दर्ज कराई बल्कि इस मुद्दे को न्याय तक पहुँचाया।

 *डीपीसी का पद और उसकी जिम्मेदारियाँ*

डीपीसी यानी जिला परियोजना समन्वयक वह अधिकारी होता है जो जिला स्तर पर शिक्षा विभाग की योजनाओं, परियोजनाओं, छात्रों की सुविधाओं, छात्रावास संचालन, वार्डन नियुक्ति, सामग्री खरीदी, शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार जैसे कार्यों की निगरानी करता है। इस पद की गरिमा और जिम्मेदारी अत्यंत महत्वपूर्ण होती है क्योंकि इसके कार्य सीधे बच्चों, अभिभावकों और विद्यालयों के हितों से जुड़े होते हैं। ऐसे में यदि डीपीसी स्वयं अनियमितता और भ्रष्टाचार में लिप्त हो, तो पूरी व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लग जाता है।

 *शिकायत की शुरुआत,मोहिनी देवी की भूमिका*

कटनी जिले की जिला पंचायत सदस्य मोहिनी देवी ने प्रदेश के शिक्षा तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज़ उठाते हुए एक शिकायती पत्र संचालक लोक शिक्षण संचालनालय को लिखा। उन्होंने स्पष्ट रूप से लिखा कि केके डेहरिया ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए शिक्षा क्षेत्र को कलंकित किया है। मोहिनी देवी का यह साहसिक कदम उस समय और भी प्रशंसनीय हो जाता है जब हम देखते हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलना कितनी कठिन और जोखिम भरी प्रक्रिया होती है।

*वार्डन की मनमानी नियुक्तियाँ*

 नियमों की अवहेलना करते हुए डीपीसी केके डेहरिया ने ऐसे व्यक्तियों को छात्रावासों में वार्डन नियुक्त किया जो उनके निजी हितों की पूर्ति करते थे। राज्य शिक्षा केंद्र के दिशा-निर्देशों की खुलेआम अवहेलना की गई।

*पात्रता की अनदेखी*

 योग्य और पात्र लोगों को नजरअंदाज करके निजी हितों की पूर्ति के लिए नियुक्तियाँ की गईं। इसका सीधा प्रभाव छात्रावास की व्यवस्था और छात्रों की सुरक्षा पर पड़ा।

*माननीय उच्च न्यायालय की अवमानना*

 कुछ समय पहले हाईकोर्ट द्वारा वार्डन नियुक्ति प्रक्रिया में अनियमितताओं को देखते हुए आदेशों को निरस्त किया गया था, लेकिन डीपीसी ने फिर भी अपने मनमाने निर्णय जारी रखे।

*अनुचित नियुक्ति*

 राकेश दुबे नामक व्यक्ति को 55 वर्ष की आयु के बावजूद बीएसी का पद दिया गया, जो नियमों के विरुद्ध था।

*दस्तावेज़ जलाने का आरोप*

 भुडसा छात्रावास में वार्डन द्वारा की गई वित्तीय अनियमितताओं की शिकायत पर कार्रवाई करने के बजाय पूरे दस्तावेज जलवा दिए गए ताकि साक्ष्य न मिल सकें।

*आरटीआई आवेदकों के साथ अभद्रता*

 सूचना का अधिकार (RTI) के तहत जानकारी माँगने वालों के साथ डीपीसी द्वारा बदसलूकी की जाती थी, जो कि न सिर्फ नियमों के विरुद्ध है, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों का उल्लंघन भी है।

*फर्नीचर खरीदी में भ्रष्टाचार*

करोड़ों रुपये की फर्नीचर खरीदी में शासन की राशि का दुरुपयोग हुआ। इसमें मनमाने तरीके से टेंडर पास कराए गए और गुणवत्ता की अनदेखी की गई।

*शासन का संज्ञान और कार्यवाही*

इन गंभीर आरोपों को देखते हुए संचालक लोक शिक्षण संचालनालय द्वारा इस पूरे मामले की जांच के आदेश दिए गए। जांच में कई तथ्य उजागर हुए और प्राथमिक स्तर पर आरोपों को सही माना गया। इसके बाद मध्य प्रदेश शासन स्कूल शिक्षा विभाग के उप सचिव कमल सोलंकी ने आदेश जारी करते हुए केके डेहरिया को पद से हटा दिया और उनकी जगह प्रेम नारायण तिवारी को डीपीसी कटनी बनाया गया।

 *प्रेम नारायण तिवारी को सौंपी गई जिम्मेदारी*

प्रेम नारायण तिवारी, जो अब नए डीपीसी बनाए गए हैं, के ऊपर अब एक बड़ी जिम्मेदारी है भ्रष्टाचार से गिरी हुई शिक्षा प्रणाली को पुनः पटरी पर लाना। उन्हें ना सिर्फ पुराने मामलों की जांच को गति देनी है बल्कि यह सुनिश्चित भी करना है कि भविष्य में किसी प्रकार की अनियमितता न हो।

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