बहोरीबंद ओपन कैप में धान चोरी पर चुप्पी, क्या जिला प्रशासन का न्याय सबके लिए समान है? क्या बहोरीबंद में न्याय ‘विशेष’ बन गया है? क्या धर्मकांटे की चोरी को प्रशासन की ‘मूक स्वीकृति’ मिली हुई है?
बहोरीबंद ओपन कैप में धान चोरी पर चुप्पी, क्या जिला प्रशासन का न्याय सबके लिए समान है? क्या बहोरीबंद में न्याय ‘विशेष’ बन गया है? क्या धर्मकांटे की चोरी को प्रशासन की ‘मूक स्वीकृति’ मिली हुई है?
ढीमरखेड़ा | मध्यप्रदेश के कटनी जिले में धान चोरी के मामलों की बाढ़-सी आ गई है। मझगवां, तेवरी और स्लीमनाबाद बायपास में धान चोरी की घटनाएं हुईं, जिन पर त्वरित कार्रवाई करते हुए संबंधित पुलिस थानों में एफआईआर दर्ज की गई। इन घटनाओं को प्रशासन ने गंभीरता से लिया, और कानून के दायरे में लाकर कार्यवाही की गई। लेकिन जब बात बहोरीबंद के ओपन कैप की आती है, जहां बड़े पैमाने पर सरकारी गेंहू और धान का भंडारण होता है, तो मामला अलग नजर आता है। धर्मकांटे से छेड़छाड़ कर धान की चोरी की जानकारी होने के बावजूद न तो एफआईआर होती है और न ही मध्यप्रदेश स्टेट वेयरहाउसिंग कॉर्पोरेशन (SWC) के जिम्मेदार अधिकारियों पर कोई ठोस कार्रवाई होती है।
*एक समान न्याय की बात, लेकिन दोहरे मापदंड क्यों?*
भारतीय संविधान सभी नागरिकों को समान न्याय का अधिकार देता है। कानून के सामने सब बराबर हैं राजा हो या रंक। फिर क्या कारण है कि जब एक आम किसान या ट्रैक्टर चालक पर धान चोरी का आरोप लगता है तो उस पर तुरंत एफआईआर दर्ज होती है, लेकिन जब वही अपराध एक बड़े गोदाम में, सरकारी संरक्षण में, संगठित तरीके से होता है, तो आंखें मूंद ली जाती हैं? क्या यह प्रशासनिक मिलीभगत नहीं है? क्या यह दोहरे मापदंड नहीं है?मझगवां में धान चोरी एक ट्रैक्टर पकड़ा गया जिसमें बिना अनुमति धान का परिवहन हो रहा था। पुलिस ने तत्परता से कार्यवाही करते हुए एफआईआर दर्ज की। संबंधित व्यक्ति से पूछताछ हुई और मामला न्यायालय तक पहुंचा।तेवरी में धान चोरी पंचायत गोदाम से चोरी हुई धान की बोरियां बरामद हुईं। स्थानीय लोगों के विरोध और मीडिया की रिपोर्टिंग से प्रशासन हरकत में आया। मामले में तीन लोगों पर एफआईआर हुई और आगे की जांच चालू है। स्लीमनाबाद बायपास पर धान चोरी धान से भरा ट्रक बिना वैध दस्तावेज के पकड़ा गया। एफआईआर दर्ज हुई, ट्रक जब्त किया गया, और चालक को हिरासत में लिया गया। अब अगर इन घटनाओं को बहोरीबंद के ओपन कैप से जोड़कर देखा जाए, तो विरोधाभास साफ दिखाई देता है।
*बहोरीबंद ओपन कैप का मामला*
यहां हजारों क्विंटल धान सरकारी धर्मकांटे पर तौला जाता है। यह पूरी प्रक्रिया रिकॉर्ड में होनी चाहिए, लेकिन जब मशीनों से छेड़छाड़ कर तौल कम दिखाकर बड़ा हिस्सा गायब कर दिया जाए, तो यह ‘कागज़ पर वैध लेकिन असल में संगठित चोरी’ बन जाती है। स्थानीय सूत्रों के अनुसार, बहोरीबंद ओपन कैप में धर्मकांटे के वजन में हेराफेरी कर के बड़ी मात्रा में धान चोरी की जा रही है, और इसकी जानकारी उच्च अधिकारियों को भी है। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होती। न एफआईआर, न कोई विभागीय जांच।
*प्रशासन की चुप्पी भ्रष्टाचार को संरक्षण?*
जब प्रशासन छोटे मामलों पर तुरंत कार्रवाई करता है लेकिन बड़े घोटालों पर चुप रहता है, तो सवाल उठना लाजमी है। क्या यह चुप्पी किसी समझौते का हिस्सा है? क्या भ्रष्ट अधिकारी और कर्मचारी एक संगठित गिरोह की तरह इस सरकारी धन की लूट को अंजाम दे रहे हैं?
*किसानों के साथ अन्याय*
किसान जो मेहनत से धान उगाते हैं, सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेचते हैं, उन्हें यह उम्मीद रहती है कि उनका अनाज सुरक्षित रहेगा। लेकिन जब वही अनाज प्रशासनिक लापरवाही या मिलीभगत से चोरी हो जाता है, तो उनका विश्वास टूटता है।
*राजनीतिक हस्तक्षेप या संरक्षण?*
यह भी चर्चा में है कि कुछ नेताओं का संरक्षण इन धान चोरों को प्राप्त है। गोदामों का ठेका देने से लेकर परिवहन एजेंसी तक, हर जगह कमीशन का खेल चलता है। अगर कोई अधिकारी ईमानदारी से जांच करता है, तो उसका तबादला कर दिया जाता है या उसे किनारे कर दिया जाता है।
*लोकतंत्र की नींव हिलती हुई*
जब एक प्रशासन दोहरा रवैया अपनाता है, गरीब पर कानून का डंडा और अमीर या संगठित अपराधियों पर मौन, तो लोकतंत्र की नींव कमजोर होती है। लोगों का विश्वास प्रशासन और न्याय प्रणाली से उठता है। ऐसे मामलों में आवश्यक है कि हाईकोर्ट या लोकायुक्त स्वत: संज्ञान लें। एक स्वतंत्र जांच समिति गठित हो, जो धर्मकांटे की जांच करे, पिछले छह महीनों का डेटा निकाले और यह पता लगाए कि किस तौल में गड़बड़ी हुई है। बहोरीबंद ओपन कैप में हो रही धान चोरी सिर्फ एक आर्थिक अपराध नहीं, बल्कि यह आम जनता के विश्वास और देश की खाद्य सुरक्षा के साथ किया जा रहा खिलवाड़ है। प्रशासन को अपनी जवाबदेही तय करनी होगी। जब तक छोटे और बड़े अपराधियों के लिए एक समान कानून लागू नहीं होगा, तब तक भ्रष्टाचार और असमानता बढ़ती रहेगी। "न्याय सबके लिए बराबर है" यह सिर्फ किताबों तक सीमित न रह जाए, बल्कि जमीन पर भी दिखे। मझगवां, तेवरी, स्लीमनाबाद जैसे गांवों में एफआईआर हो सकती है, तो बहोरीबंद जैसे बड़े मामले में क्यों नहीं?
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