प्रशासनिक अनदेखी या मिलीभगत? तहसील ढीमरखेड़ा की सहायक ग्रेड-3 गीता झारिया के विरुद्ध शिकायत के बावजूद कार्रवाई नहीं
प्रशासनिक अनदेखी या मिलीभगत? तहसील ढीमरखेड़ा की सहायक ग्रेड-3 गीता झारिया के विरुद्ध शिकायत के बावजूद कार्रवाई नहीं
ढीमरखेड़ा | लोकतंत्र की आत्मा निष्पक्षता, पारदर्शिता और जिम्मेदारी में निहित होती है। जब कोई सरकारी कर्मचारी अपनी योग्यता, कर्तव्यनिष्ठा और आचरण में दोषी पाया जाता है और उसके खिलाफ उच्च अधिकारियों द्वारा दिए गए निर्देशों के बावजूद भी कार्रवाई नहीं होती, तो यह न केवल शासन व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है, बल्कि जनता के विश्वास को भी गहरा आघात पहुँचाता है। ऐसा ही एक मामला तहसील ढीमरखेड़ा में सहायक ग्रेड-3 पद पर कार्यरत गीता झारिया से जुड़ा हुआ है, जिसकी शिकायत एक प्रतिष्ठित जबलपुर निवासी वकील द्वारा की गई थी, लेकिन वर्षों बीत जाने के बाद भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
*शिकायत का आधार और पात्रता पर सवाल*
शिकायतकर्ता वकील ने स्पष्ट रूप से आरोप लगाया था कि गीता झारिया के पास सहायक ग्रेड-3 पद के लिए अनिवार्य कंप्यूटर दक्षता प्रमाण पत्र (CPCT) नहीं है, जो इस पद के लिए अनिवार्य योग्यता है। शासन द्वारा तय मापदंडों के अनुसार इस पद पर नियुक्त व्यक्ति को कंप्यूटर पर हिंदी एवं अंग्रेजी टाइपिंग में दक्ष होना चाहिए। यह योग्यता न केवल कार्यालयीन कार्यों के संचालन में मददगार होती है, बल्कि यह सूचना के अधिकार के अंतर्गत पारदर्शिता और तत्परता सुनिश्चित करने हेतु भी आवश्यक है।
*अपर कलेक्टर का औचक निरीक्षण और सेवा समाप्ति आदेश*
स्थिति उस समय और गंभीर हो गई जब एक औचक निरीक्षण के दौरान जिले के अपर कलेक्टर ने स्वयं गीता झारिया की कार्यदक्षता की समीक्षा की और स्पष्ट रूप से पाया कि वे अपने दायित्वों के निर्वहन में अयोग्य हैं। रिपोर्ट में उल्लेख किया गया कि गीता झारिया को दिए गए दस्तावेजों का संपादन, टाइपिंग तथा कंप्यूटर संचालन का सामान्य ज्ञान तक नहीं है। इसी के आधार पर अपर कलेक्टर द्वारा तत्काल सेवा समाप्ति का आदेश जारी किया गया था।
*कलेक्टर का हस्तक्षेप और जांच के निर्देश*
शिकायत को गंभीरता से लेते हुए कलेक्टर ने भी इस मामले में स्पष्ट निर्देश जारी किए थे कि जांच समिति गठित कर तथ्यों की पुष्टि की जाए और रिपोर्ट के आधार पर तत्काल प्रभाव से कार्रवाई सुनिश्चित की जाए। उन्होंने स्पष्ट कहा था कि शासन के नियमों के उल्लंघन पर कोई समझौता नहीं किया जाएगा और दोषी पाए जाने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
*कार्रवाई क्यों रुकी?*
प्रश्न यह उठता है कि जब कलेक्टर द्वारा जांच के निर्देश दे दिए गए, अपर कलेक्टर ने सेवा समाप्ति का आदेश दे दिया, और शिकायत प्रमाणों के साथ दर्ज की गई तो फिर कार्यवाही क्यों नहीं हुई? कई सूत्रों का दावा है कि गीता झारिया को तहसील स्तर पर कुछ प्रभावशाली लोगों का संरक्षण प्राप्त है। यही वजह है कि उनकी नियुक्ति के बाद से उनके विरुद्ध शिकायतें होने के बावजूद वे सुरक्षित बनी हुई हैं। यह भी देखा गया है कि कई बार शिकायतों की फाइलें जानबूझकर लंबित रखी जाती हैं या उन पर असंगत टिप्पणियाँ लगाकर समय टालने की कोशिश की जाती है। यह सरकारी तंत्र में व्याप्त जड़ता और लचर प्रणाली की ओर भी इशारा करता है।
*सीपीसीटी प्रमाण पत्र की आवश्यकता और शासन का रुख*
मध्यप्रदेश शासन ने वर्ष 2016 में CPCT प्रमाण पत्र को अनिवार्य कर दिया था ताकि प्रशासन में दक्ष और योग्य लोगों को ही भर्ती किया जाए। इसका मुख्य उद्देश्य था कंप्यूटर साक्षरता को बढ़ावा देना और कार्यालयीन कार्यों में पारदर्शिता और गति सुनिश्चित करना। लेकिन यदि इस आधार पर कोई कर्मचारी बिना उक्त प्रमाण पत्र के वर्षों से नौकरी कर रहा है, तो यह केवल गम्भीर नियम उल्लंघन नहीं, बल्कि सिस्टम की कमजोरी को दर्शाता है।
*सेवा समाप्ति आदेश को कार्यान्वित क्यों नहीं किया गया?*
गीता झारिया के प्रकरण ने प्रशासन की निष्क्रियता और आंतरिक कमजोरियों को उजागर किया है। शिकायत, जांच निर्देश, सेवा समाप्ति आदेश तीनों होने के बावजूद कोई कार्रवाई न होना शासन के ऊपर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। यदि इस तरह के मामलों में समय रहते उचित कार्रवाई नहीं की गई, तो यह और भी कर्मचारियों को नियमों को ताक पर रखने का संकेत देगा और लोकतंत्र की नींव को कमजोर करेगा। अब जरूरत है कि जिला प्रशासन और राज्य शासन इस प्रकरण को गंभीरता से लेते हुए तत्काल प्रभाव से निष्पक्ष जांच कराएं और यदि दोष सिद्ध हो तो सेवा समाप्ति की कार्रवाई की जाए।
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