भोपाल में वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप सिंगोरिया की गिरफ्तारी पर विवाद, कटारा हिल्स टीआई लाइन अटैच, पत्रकारों का विरोध प्रदर्शन, लेखनी और पत्रकारों पर हाथ डालने वालों को होना चाहिए फांसी, सस्पेंड करना एक उपाधी के बराबर
भोपाल में वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप सिंगोरिया की गिरफ्तारी पर विवाद, कटारा हिल्स टीआई लाइन अटैच, पत्रकारों का विरोध प्रदर्शन, लेखनी और पत्रकारों पर हाथ डालने वालों को होना चाहिए फांसी, सस्पेंड करना एक उपाधी के बराबर
ढीमरखेड़ा | मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप सिंगोरिया की गिरफ्तारी ने पत्रकारिता जगत में उबाल ला दिया है। कटारा हिल्स थाना पुलिस ने कुलदीप सिंगोरिया को एक एक्सीडेंट और अड़ीबाजी (जबरन उगाही) के आरोप में गिरफ्तार किया। हालांकि, पत्रकार समुदाय का कहना है कि यह मामला झूठा है और पत्रकार को फंसाने के लिए पुलिस ने दबाव में कार्रवाई की है।
*गिरफ्तारी और विरोध प्रदर्शन*
सोमवार देर रात पुलिस ने कुलदीप सिंगोरिया को उनके निवास से हिरासत में लिया। पुलिस का दावा है कि सिंगोरिया एक सफेद बोलेरो गाड़ी से जुड़े एक्सीडेंट और जबरन उगाही के मामले में संलिप्त थे। हालांकि, पत्रकारों ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि जिस वाहन का जिक्र किया गया है, वह न तो सिंगोरिया का है और न ही वह उसमें सवार थे। इस गिरफ्तारी के बाद मंगलवार सुबह बड़ी संख्या में पत्रकार कटारा हिल्स थाने के बाहर जुट गए और इस कार्रवाई का विरोध किया। उन्होंने थाना प्रभारी केजी शुक्ला को तत्काल सस्पेंड करने की मांग की और गिरफ्तारी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया।
*टीआई का लाइन अटैचमेंट*
बढ़ते विरोध और मीडिया के दबाव के बीच, भोपाल पुलिस ने कटारा हिल्स थाना प्रभारी केजी शुक्ला को लाइन अटैच कर दिया है। प्रारंभिक जांच में पुलिस की कार्यशैली में गड़बड़ी पाई गई, जिससे साफ हुआ कि यह मामला मनगढ़ंत हो सकता है।
*कमलनाथ का ट्वीट और राजनीतिक प्रतिक्रिया*
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता कमलनाथ ने इस गिरफ्तारी को अन्यायपूर्ण करार देते हुए सरकार से तुरंत न्यायपूर्ण कार्रवाई करने की मांग की। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (ट्विटर) पर लिखा
"भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप सिंगोरिया को बिना किसी अपराध के झूठा मामला बनाकर कल रात गिरफ्तार कर लिया गया। पत्रकारों के भारी विरोध के बावजूद आज उन्हें जेल भेज दिया गया। राजधानी के समस्त पत्रकार इस गिरफ़्तारी का विरोध कर रहे हैं। प्रदेश सरकार से मेरी मांग है कि वरिष्ठ पत्रकार को तुरंत रिहा किया जाए और न्यायपूर्ण कार्रवाई की जाए।"
*एक्सीडेंट के मामले में अड़ीबाजी की धारा?*
इस मामले में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि कुलदीप सिंगोरिया पर गैर-जमानती धारा लगाई गई है, जो आमतौर पर गंभीर अपराधों में लगाई जाती है। यह पहली बार देखा गया है कि एक सड़क दुर्घटना के मामले में "अड़ीबाजी" (जबरन वसूली) जैसी गंभीर धारा लगाई गई हो। पत्रकारों का कहना है कि यह कानून का दुरुपयोग है और पुलिस ने जानबूझकर सिंगोरिया को फंसाने के लिए यह धाराएं जोड़ी हैं।
*पत्रकारों का आक्रोश और मांगें*
पत्रकार कुलदीप सिंगोरिया को तत्काल रिहा किया जाए। एफआईआर को रद्द कर मामले की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए। इस पूरे प्रकरण में शामिल पुलिसकर्मियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए। पत्रकारों की सुरक्षा के लिए ठोस कानून बनाया जाए, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
*राजनीतिक गलियारों में हलचल*
इस पूरे मामले ने राज्य की राजनीति को गर्मा दिया है। जहां कांग्रेस ने इस कार्रवाई को प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला बताया है, वहीं भाजपा की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। वरिष्ठ पत्रकारों का मानना है कि यह मामला केवल एक गिरफ्तारी का नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि किस प्रकार पुलिस और प्रशासन स्वतंत्र पत्रकारों की आवाज़ को दबाने की कोशिश कर रहे हैं। भोपाल पुलिस ने इस मामले की जांच के आदेश दिए हैं। एडिशनल सीपी अवधेश गोस्वामी ने कहा है कि पुलिस प्रशासन निष्पक्ष जांच करेगा और दोषी पाए जाने पर उचित कार्रवाई की जाएगी। यह मामला पत्रकारिता की स्वतंत्रता और पुलिस की जवाबदेही को लेकर महत्वपूर्ण सवाल खड़े करता है। क्या पत्रकारों की आवाज़ दबाने के लिए इस तरह के झूठे मामलों का सहारा लिया जा रहा है? क्या यह किसी बड़े राजनीतिक या प्रशासनिक षड्यंत्र का हिस्सा है? इन सवालों के जवाब आने वाले दिनों में स्पष्ट होंगे, लेकिन इतना तय है कि यह मामला अब सिर्फ कुलदीप सिंगोरिया की गिरफ्तारी तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह एक प्रेस स्वतंत्रता बनाम सत्ता के दुरुपयोग की लड़ाई बन चुका है।
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