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खरी - अखरी सवाल उठाते हैं पालकी नहीं, जब हमाम में सब नंगे तब ज्यूडीसरी जेंटलमैन कैसे ? न्यायिक मूर्ति की आंखों पर शायद इसीलिए पट्टी बांधी गई थी कि सामने कितनी भी बड़ी शख्सियत खड़ी हो मगर न्याय तथ्यों के आधार पर ही किया जायेगा, मगर तत्कालीन सीजेआई धनंजय यशवंत चंद्रचूड को ये रास नहीं आया, उन्होंने न्याय की देवी की आंखों से पट्टी हटा दी कि अब न्याय सामने खड़ी शख्सियत को देख कर ही किया जायेगा

 खरी - अखरी सवाल उठाते हैं पालकी नहीं, जब हमाम में सब नंगे तब ज्यूडीसरी जेंटलमैन कैसे  ? न्यायिक मूर्ति की आंखों पर शायद इसीलिए पट्टी बांधी गई थी कि सामने कितनी भी बड़ी शख्सियत खड़ी हो मगर न्याय तथ्यों के आधार पर ही किया जायेगा, मगर तत्कालीन सीजेआई धनंजय यशवंत चंद्रचूड को ये रास नहीं आया, उन्होंने न्याय की देवी की आंखों से पट्टी हटा दी कि अब न्याय सामने खड़ी शख्सियत को देख कर ही किया जायेगा



*केवल  रूपयों  वाली  हराम  की  कमाई  ही भृष्टाचार नहीं कहलाती। हराम की कमाई काम के बदले  अनाज  के रूप में  भी ली  जाती है। जायज हकों की  मांगों से आंखें  मूंद लेना भी भृष्टाचार की श्रेणी में आता है। जिसे अक्सर सत्ता के शिखर पर बैठे हुए लोग करते रहते हैं, फिर वो चाहे  महामहिम हों  या  मंत्रियों का लीडर  और उसके नीचे   लटके हुए मंत्री,  संतरी।  न्यायिक भृष्टाचार के तौर तरीके भी उसी तरह के होते हैं जो लोकतंत्र के बाकी स्तम्भों में नख से शिख तक विष बेल की तरह फैला हुआ है। फिर भी उसके 10 तरीकों का उल्लेख तो किया ही जा सकता है।*


*रिश्वतखोरी (Bribery) - न्यायाधीश अनुकूल शासनों के बदले में धन या एहसान स्वीकार करते हैं (judges  accept money  or favors  in  exchange  for  favorable  rulings)* _राजनीतिक प्रभाव  (Political  Influence) निर्णय कानून के बजाय राजनीतिक आंकड़ों या पार्टियों से  प्रभावित  होता है (Decision are influenced  by  political  figures  or parties   rather  than   the   law)_        *मुकदमा लगाना (Case Fixing) न्यायाधीशों द्वारा कुछ व्यक्तियों या समूहों को लाभान्वित करने के लिए मामले में हेरफेर किया जाता है (judges   manipulate   case   out comes    to    benefit    certain individuals    or    groups)*                   _पक्षपात और भाई भतीजावाद ( Favoritism and Nepotism ) सत्तारुढ़ मित्र मित्रों के परिवार या सहयोगियों को कानूनी योग्यता पर आधारित होने के बजाय मुंह देखी पर होती है (Ruling   favor   friends   family   or associates    rather   than    being based   on   legal   merit)_                     *जबरदस्ती बसूली (Extortion) न्यायाधीश मा अदालत के अधिकारी न्याय के बदले में धन या एहसान की मांग करते हैं (Judges  or court officials   demand   money   or  favors  in  exchange  for  justice)*       _चयनात्मक न्याय (Selective justice) कुछ मामलों को तेजी से ट्रैक किया जाता है या व्यक्तिगत अथवा राजनीतिक हित के आधार पर बिलंबित किया जाता है (Some   cases    are   fast   tracked   dismissed   or delayed    based    on    personal    or political   interest)_                                *न्यायिक पूर्वाग्रह (Judicial Bias) नस्ल, लिंग, सामाजिक स्थिति या राजनीतिक लाभों के आधार पर पूर्वाग्रह निर्णयों को प्रभावित करता है (Prejudice based on race gender    social    status    or   political    benefits influence decisions)*            _अदालत की निधियों का दुरुपयोग (Misuse of court funds) व्यक्तिगत लाभ के लिए न्यायिक संसाधनों का गबन या दुरुपयोग किया जाता है (Embezzlement or misallocation of judicial resources for personal gain)*                       _निगमित (कार्पोरेट) प्रभाव (Corporate Influence) न्यायाधीश वित्तीय लाभ के बदले व्यवसायों या अमीर व्यक्तियों के पक्ष में निर्णय (शासन) करते हैं (Judges rule in favor of businesses or wealthy individuals in exchange  for  financial   benefits)_  कानून प्रवर्तन के साथ मिलीभगत (Collusion with law enforcement) न्यायाधीश भृष्ट पुलिस या अभियोजन के साथ सहयोग करते हैं या गलत तरीके से व्यक्तियों को दोषी ठहराने के लिए सांठगांठ करते हैं (Judges cooperate with corrupt police or prosecution to frame or wrongfully convict individuals)* 


_इन परिस्थितियों के अक्श तले तो यही दिखाई देता है कि न्याय बेचा जा रहा है। कहते भी हैं कि_  एक भृष्ट न्यायाधीश न्याय नहीं करता वह केवल फैसले बेचता है (A corrupt judge does not judge, he simply sell verdicts)* _तो फिर सवाल पर सवाल_ *क्या कोई खरीददार है ? (Is there a buyer ?)*


*दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास में होलिकोत्सव की रात       होलिका (भारतीय करेंसी) के अधजले अवशेषों को लेकर देशभर में चारों खूंट चर्चाओं का बाजार गर्म है। स्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर हर कोई अपने-अपने स्तर पर विश्लेषण करने में लगा हुआ है। जब लोकतांत्रिक व्यवस्था के तीन पाये भृष्टाचार में आकंठ डूबे हुए हैं। जब मेडिकल, इंजीनियरिंग, एज्युकेशन, प्रशासन, शासन यानी समाज का हर तबका अपनी-अपनी हैसियत के हिसाब से ईमानदारी की अस्मिता को नोचने खसोटने में लगा हुआ है तो फिर ज्यूडीसरी और उसके नुमाइंदे अछूते कैसे रह सकते हैं और उनमें ही हरिश्चन्द्र का चाल, चरित्र, चेहरा देखने की चाहत क्यों ? आखिरकार वो भी तो इसी समाज का हिस्सा हैं। जब योगी मोह-माया के वशीभूत होकर भोगी हो सकता है तो फिर वे तो सामान्य इंसान हैं। उनकी भी अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं। जो मानवीय कमजोरियां आम आदमी में हैं वही कमजोरियां ज्यूडीसरी से जुड़े हाड़ मांस वालों में भी है।*


*ऐसा नहीं है कि केवल भारत की ही ज्यूडीसरी में भृष्टाचार व्याप्त है बल्कि दुनिया के हर देश की ज्यूडीसरी भृष्टाचार में लिप्त है। यह बात दीगर है कि भारत की न्यायिक व्यवस्था की तुलना अफगानिस्तान की न्याय प्रणाली से की जाती है। आयकर अधिनियम 1961 कहता है - कि अगर किसी के पास 2 लाख से ज्यादा नगदी पाई जाती है और उसका स्त्रोत वैध नहीं है तो आयकर विभाग उसे अवैध मानकर कार्रवाई कर सकता है। बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम 1988 में प्रावधान है कि - अगर किसी के पास आय से अधिक संपत्ति या नगदी पाई जाती है और वह घोषित नहीं है तो उस पर कार्रवाई की जाएगी। प्रिवेंशन आफ करप्शन एक्ट 1988 के मुताबिक - सरकारी अधिकारियों, जिसमें जजेज भी शामिल हैं, की संपत्ति में असामान्य बढोत्तरी पाई जाती है तो उस पर आयकर और प्रवर्तन निदेशालय जांच कार्रवाई कर सकता है।*


*मगर पिछले 10 सालों में इन विभागों द्वारा की गई कार्रवाई ने साबित कर दिया है ये विभाग सत्ता पार्टी के ईशारों पर केवल विपक्षियों पर कार्रवाई करते हैं और जैसे ही वह विपक्षी सत्ता पार्टी में शामिल हो जाता है सारी कार्रवाई दफन कर दी जाती है। ज्यूडीसरी की ऊंची कुर्सी पर बैठे हुए जजेज जब रिटायर्मेंट के बाद लाभांवित होने के लिए सत्ता के ईशारे पर निर्णय देते हैं तो फिर निचली अदालतों के जजेज अपनी हैसियत के हिसाब से अपना हित क्यों नहीं साध सकते हैं। न्यायपालिका में पनप रहे भृष्टाचार की बेल को काटने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 1999 में कुछ दिशानिर्देश बनाये थे। In 1999 the Supreme Court laid down guidelines to deal with allegations of corruption, wrongdoing and judicial irregularity against Judges of the Constitutional court   according   to   the   Supreme Court   guidelines   on   receiving   a complaint the Chief Justice will first seek    a    reply    from  the    judge concerned. If he is dissatisfied with the answer or   believes  the matter requires further investigation he can form an   internal   committee. This committee   will   consist  of   one Supreme   Court   Judge   and   two High   Court   Chief   Justices. Bombay  High  Court  refuses anticipatory bail to Satara Judge booked for demanding Rs. 5 lakh bribe.*


*न्यायपालिका के भीतर चुप्पियों और समझौतों का खजाना जितना बढ़ता जायेगा उतना ही आसान होता जायेगा बाहर से धक्का देकर उसे ध्वस्त करना। 2014 से देश की बागडोर सम्हाल रही पार्टी तो न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति करने का अधिकार अपने हाथों में लेने के न केवल छटपटा रही है बल्कि तिकडमों का जाल बुनने से चूकती भी नहीं है। वह तो सुप्रीम कोर्ट है जो पतंग की डोर ढीला नहीं कर रही है। 2020 में दिल्ली हाई कोर्ट के जज मुरलीधर का तबादला पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में उसी दिन कर दिया गया था जिस दिन उन्होंने बीजेपी के तीन नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं करने पर दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई थी। जस्टिस मुरलीधर की टिप्पणियां और फैसले मोदी सरकार की आंखों की रोशनी कम कर रहे थे। जिसका खामियाजा मुरलीधर को सुप्रीम कोर्ट ना जाकर चुकाना पड़ा। मुरलीधर को दिल्ली हाई कोर्ट के वकीलों जिस तरह से सेलेब्रिटी की तरह बिदाई दी और मुरलीधर ने यह कहते हुए सरकार पर तंज कसा कि वे अगली पारी के लिए तैयार हैं।*


*एक न्यायपालिका जो सत्ता या धन के लिए झुकती है, वह अब न्याय की अदालत नहीं है, बल्कि न्याय का एक बाजार है (Judiciary Bends to power and wealth this no longer Court of justice Boot marketplace of justice). न्यायिक मूर्ति की आंखों पर शायद इसीलिए पट्टी बांधी गई थी कि सामने कितनी भी बड़ी शख्सियत खड़ी हो मगर न्याय तथ्यों के आधार पर ही किया जायेगा। मगर तत्कालीन सीजेआई धनंजय यशवंत चंद्रचूड को ये रास नहीं आया। उन्होंने न्याय की देवी की आंखों से पट्टी हटा दी कि अब न्याय सामने खड़ी शख्सियत को देख कर ही किया जायेगा।* 


*अश्वनी बडगैया अधिवक्ता*

_स्वतंत्र पत्रकार_

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