स्वतंत्रता के बाद जितनी भी पार्टी बनी हैं वोट बैंक की राजनीति के कारण सच्चाई नहीं बोल पाती है, जो बोलेगी सच्चाई वह पार्टी खो देगी अपना वर्चस्व इसका होता हैं डर, वोट बैंक की राजनीति और सच्चाई का संकट
स्वतंत्रता के बाद जितनी भी पार्टी बनी हैं वोट बैंक की राजनीति के कारण सच्चाई नहीं बोल पाती है, जो बोलेगी सच्चाई वह पार्टी खो देगी अपना वर्चस्व इसका होता हैं डर, वोट बैंक की राजनीति और सच्चाई का संकट
ढीमरखेड़ा | भारत में स्वतंत्रता के बाद लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित हुई, जिसमें अलग-अलग विचारधाराओं पर आधारित कई राजनीतिक दल बने। इन दलों का उद्देश्य जनता की सेवा और देश को आगे बढ़ाना होना चाहिए था, लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, राजनीति में वोट बैंक का प्रभाव बढ़ता गया। आज स्थिति यह है कि कोई भी राजनीतिक दल खुलकर सच्चाई बोलने से डरता है, क्योंकि उसे अपने वोट बैंक के खिसकने का खतरा रहता है। सच्चाई बोलने का साहस कम होता गया, और इस कमी का कारण सिर्फ सत्ता की लालसा नहीं है, बल्कि यह भी है कि समाज को टुकड़ों में बांटकर वोट बटोरने की प्रवृत्ति ने राजनीति का नैतिक आधार कमजोर कर दिया।आज यदि कोई पार्टी सच्चाई बोलती है, तो उसे अपने समर्थकों का एक बड़ा वर्ग खोने का डर सताता है।स्वतंत्रता के बाद भारतीय राजनीति ने समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और जनहितकारी नीतियों का पालन करने का दावा किया। लेकिन जैसे-जैसे चुनावी प्रतिस्पर्धा बढ़ी, राजनीतिक दलों ने महसूस किया कि यदि उन्हें सत्ता में बने रहना है, तो उन्हें खास समूहों को खुश करना होगा। यहीं से वोट बैंक की राजनीति की शुरुआत हुई। वोट बैंक की राजनीति का सीधा अर्थ है , किसी खास जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा या समुदाय को विशेष रूप से लाभ पहुंचाकर उनका स्थायी समर्थन प्राप्त करना। यह प्रक्रिया धीरे-धीरे इतनी गहरी हो गई कि राजनीतिक दलों के लिए सच्चाई से समझौता करना मजबूरी बन गया।
*जातिगत वोट बैंक*
भारत में जातिगत भेदभाव की समस्या पुरानी रही है। इसे समाप्त करने के बजाय, राजनीतिक दलों ने इसे वोट बैंक में बदल दिया। कुछ पार्टियां दलितों और पिछड़ों को अपने पक्ष में करने के लिए विशेष नीतियां बनाती हैं। कुछ पार्टियां उच्च जातियों को आकर्षित करने के लिए उनके पक्ष में फैसले लेती हैं। कुछ दल जाति-आधारित आरक्षण और लाभों को इस तरह प्रस्तुत करते हैं कि उनके वोट बैंक मजबूत बने रहें।
*धार्मिक वोट बैंक*
धर्म भी एक बड़ा वोट बैंक बना । कुछ पार्टियां हिंदू धर्म को आगे रखकर राजनीति करती हैं, जिससे बहुसंख्यक समुदाय उनके साथ जुड़ा रहे। कुछ पार्टियां मुस्लिम, ईसाई या अन्य अल्पसंख्यकों को संरक्षण देने की बात कहकर उनके वोट बटोरती हैं।
धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण किया जाता है ताकि समाज बंटा रहे और चुनाव में एकतरफा समर्थन मिले।भारत में क्षेत्रवाद भी राजनीति का बड़ा हिस्सा बन चुका है। कुछ पार्टियां खास राज्यों या क्षेत्रों में विकास का वादा करती हैं और वहां के स्थानीय मुद्दों को उठाकर वोट बटोरती हैं। अन्य राज्यों के साथ भेदभाव की भावना पैदा कर क्षेत्रीय अस्मिता को भड़काया जाता है। वोट बैंक की राजनीति का सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ कि सच्चाई पर पर्दा डालना मजबूरी बन गया।
*जनसंख्या विस्फोट पर चुप्पी*
भारत की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है, लेकिन कोई भी राजनीतिक दल खुलकर इस पर बात नहीं करता। इसका कारण यह है कि यदि जनसंख्या नियंत्रण कानून की बात होती है, तो कुछ धर्म विशेष के लोग इसे अपने खिलाफ मान सकते हैं, जिससे दलों को वोट बैंक खोने का डर रहता है। सरकारें कई बार ऐसे आर्थिक फैसले नहीं ले पातीं, जो देश के दीर्घकालिक हित में हों। सब्सिडी और मुफ्त योजनाएं बढ़ाई जाती हैं, भले ही अर्थव्यवस्था पर बोझ पड़े। यदि कोई पार्टी यह कहे कि मुफ्त योजनाएं दीर्घकालिक रूप से नुकसानदायक हैं, तो गरीब वर्ग उससे नाराज हो सकता है।
*भ्रष्टाचार पर लीपा-पोती*
भ्रष्टाचार भारत की सबसे बड़ी समस्या है, लेकिन जब किसी दल के नेता भ्रष्टाचार में फंसते हैं, तो उनकी पार्टी उन्हें बचाने की कोशिश करती है। नेताओं के खिलाफ जांच धीमी कर दी जाती है। घोटालों पर पर्दा डालने की कोशिश की जाती है। यदि किसी नेता पर कार्रवाई होती है, तो संबंधित समुदाय इसे अपने खिलाफ साजिश मानने लगता है।
*कट्टरपंथ और हिंसा पर चुप्पी*
देश में जब भी दंगे या हिंसा होती है, तो राजनीतिक दल खुलकर दोषियों को नहीं पकड़ते। इसके पीछे वोट बैंक की राजनीति होती है। यदि कोई दल किसी समुदाय के खिलाफ कार्रवाई करता है, तो उसे उस समुदाय के वोटों का नुकसान उठाना पड़ सकता है। कई बार अपराधियों को सिर्फ इसलिए बचाया जाता है क्योंकि वे किसी विशेष जाति या धर्म से आते हैं।
*मीडिया और बौद्धिक वर्ग की भूमिका*
मीडिया और बुद्धिजीवी वर्ग भी वोट बैंक की राजनीति का शिकार हो गए हैं। कुछ मीडिया संस्थान खास दलों का समर्थन करते हैं और उनके खिलाफ कुछ भी नहीं दिखाते। बौद्धिक वर्ग भी निष्पक्ष रहने के बजाय किसी खास विचारधारा के समर्थन में आ जाता है।इससे आम जनता को पूरी सच्चाई नहीं मिल पाती और भ्रम की स्थिति बनी रहती है। जनता को यह समझना होगा कि राजनीतिक दल उनके हित के लिए नहीं, बल्कि अपने वोट बैंक को बचाने के लिए नीतियां बना रहे हैं। जब तक जनता सच्चाई को नहीं पहचानेगी, तब तक यह राजनीति जारी रहेगी।चुनाव में मतदान करते समय लोगों को अपनी जाति, धर्म और क्षेत्र से ऊपर उठकर देशहित को प्राथमिकता देनी चाहिए। मीडिया और सोशल मीडिया का इस्तेमाल जागरूकता फैलाने के लिए किया जाए। झूठी खबरों और भ्रामक प्रचार से बचें।
*शिक्षा और जागरूकता बढ़ाएं*
यदि जनता शिक्षित होगी और राजनीतिक खेल को समझेगी, तो नेताओं की वोट बैंक की राजनीति काम नहीं करेगी। भारत में वोट बैंक की राजनीति इतनी मजबूत हो गई है कि कोई भी दल सच्चाई बोलने से डरता है। किसी भी मुद्दे पर स्पष्ट रुख लेने से उनके वोट कम हो सकते हैं। इससे देश के दीर्घकालिक हितों को नुकसान होता है। अगर जनता जाति, धर्म और क्षेत्र से ऊपर उठकर केवल विकास और सुशासन के आधार पर वोट डालने लगे, तो वोट बैंक की राजनीति खत्म हो सकती है। जब तक यह नहीं होगा, तब तक सच्चाई की जगह अवसरवादिता हावी रहेगी, और राजनीति में नैतिकता और ईमानदारी की गुंजाइश कम होती जाएगी।
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