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अनेकों बिल्डिंग जो निर्माण हुई हैं या निर्माण हों रही हैं अगर इनकी जांच की जाएं तो कोई भी बिल्डिंग पूर्ण मानक के तहत नहीं बनी सब जगह बट रहा हैं पैसा अधिकारियो को, नेताओं को अब कैसे होगी कार्यवाही जब पूरा सिस्टम सेट हैं तो, ऐसे - ऐसे सफेदपोश नेता शामिल हैं जिनका नाम आते ही जनता को नहीं होगा विश्वास , जिनको नहीं मिलता पैसा वो करते हैं विरोध मिल जाता हैं पैसा तो हों जाते हैं पक्ष में, सरकारी जमीन में कब्ज़ा किए हुए हैं नेता, अवैध रेत के कार्यों में लिप्त हैं नेता इनके ऊपर भी होना चाहिए जांच, अगर राजस्व के मामले में प्रकाशन किया जाता हैं तो पैसा लेकर अधिकारी अपनी कलम से पक्ष में लिख देते हैं फैसला, 181 भी अब मज़ाक हों गई हैं किसी विभाग को लेकर लगाई जाती हैं किसी और विभाग को भेज दी जाती हैं, कोई टूटी सी कश्ती ही बगावत पर उतर आये तो कुछ दिन को ये तूफां सर उठाना भूल जाते हैं

 अनेकों बिल्डिंग जो निर्माण हुई हैं या निर्माण हों रही हैं अगर इनकी जांच की जाएं तो कोई भी बिल्डिंग पूर्ण मानक के तहत नहीं बनी सब जगह बट रहा हैं पैसा अधिकारियो को, नेताओं को अब कैसे होगी कार्यवाही जब पूरा सिस्टम सेट हैं तो, ऐसे - ऐसे सफेदपोश नेता शामिल हैं जिनका नाम आते ही जनता को नहीं होगा विश्वास , जिनको नहीं मिलता पैसा वो करते हैं विरोध मिल जाता हैं पैसा तो हों जाते हैं पक्ष में, सरकारी जमीन में कब्ज़ा किए हुए हैं नेता, अवैध रेत के कार्यों में लिप्त हैं नेता इनके ऊपर भी होना चाहिए जांच, अगर राजस्व के मामले में प्रकाशन किया जाता हैं तो पैसा लेकर अधिकारी अपनी कलम से पक्ष में लिख देते हैं फैसला, 181 भी अब मज़ाक हों गई हैं किसी विभाग को लेकर लगाई जाती हैं किसी और विभाग को भेज दी जाती हैं, कोई टूटी सी कश्ती ही बगावत पर उतर आये तो कुछ दिन को ये तूफां सर उठाना भूल जाते हैं



ढीमरखेड़ा | भारत में विकास के नाम पर जो निर्माण कार्य हो रहे हैं, वे अक्सर गुणवत्ता और पारदर्शिता की कसौटी पर खरे नहीं उतरते। चाहे वह सरकारी भवन हो, पुल, सड़कें या अन्य बुनियादी ढांचा, हर जगह भ्रष्टाचार और घोटालों की कहानियां आम हैं। इस भ्रष्टाचार में केवल ठेकेदार ही नहीं, बल्कि नेता, अधिकारी और यहां तक कि कुछ सफेदपोश लोग भी शामिल हैं। जब पूरा सिस्टम ही भ्रष्टाचार में लिप्त हो, तो ऐसी स्थिति में किसी भी तरह की निष्पक्ष जांच या कार्यवाही की उम्मीद करना मुश्किल हो जाता है। इस समस्या का समाधान तब तक संभव नहीं है जब तक कि जनता इस मुद्दे पर गंभीरता से ध्यान न दे और प्रशासन को जवाबदेह न बनाए।

*अधिकारियो की तीसरी आंख खुली लक्ष्मी लेने के लिए*

सरकारी निर्माण कार्यों में निर्धारित मानकों की अनदेखी एक सामान्य बात हो गई है। कम गुणवत्ता वाली सामग्री का उपयोग, कार्य में देरी, और निर्माण प्रक्रिया में लापरवाही आम समस्याएं हैं। इसके पीछे का कारण भ्रष्टाचार है, जहां अधिकारियों और ठेकेदारों के बीच सांठगांठ होती है।निर्माण परियोजनाओं में शामिल लोग, चाहे वह इंजीनियर हों, अधिकारी हों या नेता, सभी को अपनी "हिस्सेदारी" चाहिए। जब ठेकेदारों से अधिकारियों को घूस दी जाती है, तो वे गुणवत्ता की जांच नहीं करते और खराब निर्माण को भी स्वीकृति दे देते हैं। कई सफेदपोश नेता सीधे या परोक्ष रूप से इन परियोजनाओं से जुड़े होते हैं। उनके नाम जनता के सामने आते ही विश्वास करना कठिन हो जाता है क्योंकि वे खुद को समाज के हितैषी के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

*राजस्व और भूमि विवादों में भ्रष्टाचार, खबरों के प्रकाशन के बाद ले लेते हैं लक्ष्मी*

सरकारी जमीन पर कब्जा करना अब एक आम बात हो गई है। राजनेता और प्रभावशाली व्यक्ति इस जमीन का उपयोग अपने निजी लाभ के लिए करते हैं। यह जमीन या तो बेची जाती है या उस पर अवैध निर्माण किया जाता है। राजस्व से जुड़े मामले में अगर कोई प्रकाशन किया जाता है, तो अधिकारियों पर पैसा लेकर पक्ष में फैसला देने के आरोप लगते हैं। यह प्रक्रिया पूरी तरह से भ्रष्टाचार के आधार पर चलती है। जिन लोगों को पैसा नहीं मिलता, वे विरोध करते हैं, लेकिन जैसे ही उन्हें पैसा मिल जाता है, वे पक्ष में हो जाते हैं। यह एक स्पष्ट संकेत है कि भ्रष्टाचार ने न केवल संस्थानों को बल्कि व्यक्तिगत नैतिकता को भी प्रभावित किया है। अवैध रेत खनन आज एक बड़ी समस्या बन गई है। इसमें नेताओं और अधिकारियों की मिलीभगत होती है। यह खनन न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि राजस्व की भी भारी हानि करता है। कई नेता इस अवैध खनन से लाभ कमाते हैं। इन पर कोई कार्रवाई नहीं होती क्योंकि वे सत्ता में अपने प्रभाव का उपयोग करते हैं।

*कैसे होगी जांच जब ले लिए हैं लक्ष्मी तो*

अवैध खनन के मामलों में पुलिस और प्रशासन की भूमिका संदिग्ध होती है। जिन पर इसे रोकने की जिम्मेदारी है, वे ही इसमें शामिल होते हैं। जब पूरा सिस्टम भ्रष्टाचार में लिप्त हो, तो निष्पक्ष जांच की उम्मीद करना मुश्किल है। जांच एजेंसियां भी नेताओं और अधिकारियों के दबाव में काम करती हैं। सफेदपोश नेता और अधिकारी अपने प्रभाव का उपयोग करके किसी भी जांच को रोकने में सक्षम होते हैं। उनके खिलाफ सबूत होते हुए भी उन्हें बचा लिया जाता है। जनता की शिकायतों के लिए बनाई गई 181 सेवा अब मजाक बन गई है। शिकायतों पर कार्रवाई नहीं होती और समस्या जस की तस बनी रहती है।

*रेत - माफियाओ का क्षेत्र में दबदबा*

जवाबदेह संस्थानों का निर्माण करना आवश्यक है। हर स्तर पर पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए तकनीक का उपयोग किया जा सकता है। जो लोग भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाते हैं, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। उन्हें कड़ी सजा दी जानी चाहिए ताकि भविष्य में कोई इस तरह की गतिविधियों में शामिल होने की हिम्मत न करे। जनता को भी जागरूक और सक्रिय होना होगा। उन्हें अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सचेत रहना चाहिए और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। भ्रष्टाचार हमारे देश की प्रगति में सबसे बड़ा अवरोधक है। जब तक नेता, अधिकारी, और जनता अपने-अपने स्तर पर ईमानदारी और जिम्मेदारी से काम नहीं करेंगे, तब तक यह समस्या बनी रहेगी। यह समय है जब हमें अपने सिस्टम को पुनर्गठित करना होगा और हर स्तर पर भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। भ्रष्टाचार से लड़ाई अकेले किसी एक व्यक्ति की नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज की जिम्मेदारी है। यदि हम सभी मिलकर प्रयास करें, तो एक पारदर्शी और ईमानदार व्यवस्था स्थापित करना संभव है।

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