जनपद ढीमरखेड़ा में मनरेगा का नहीं हो रहा भुगतान, मजदूर वर्ग परेशान, व्यवस्था की सुस्ती ने बढ़ाई ग्रामीणों की पीड़ा
जनपद ढीमरखेड़ा में मनरेगा का नहीं हो रहा भुगतान, मजदूर वर्ग परेशान, व्यवस्था की सुस्ती ने बढ़ाई ग्रामीणों की पीड़ा
ढीमरखेड़ा | जनपद पंचायत ढीमरखेड़ा में इन दिनों मनरेगा भुगतान की समस्या एक गंभीर मुद्दा बन चुकी है। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के प्रमुख साधन के रूप में मनरेगा हमेशा से ही गरीब और श्रमिक वर्ग की जीवनरेखा रहा है। खेतों में काम न मिलने की स्थिति में मजदूर इसी योजना के माध्यम से अपने परिवार की आवश्यकताएँ पूरी करते हैं।लेकिन पिछले कई महीनों से मजदूरों को समय पर भुगतान नहीं मिल पा रहा है, जिसके कारण मजदूरों की आर्थिक स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। उनके सामने रोज़मर्रा का खर्च, बच्चों की पढ़ाई, घर का राशन और इलाज जैसे बुनियादी सवाल खड़े हो गए हैं।
*काम किया लेकिन पैसे नहीं मिले मजदूरों का दर्द गहरा*
ढीमरखेड़ा जनपद के कई ग्राम पंचायतों में मजदूरों ने मनरेगा के तहत तालाब निर्माण, गड्ढा खुदाई, सड़क मरम्मत, नाली निर्माण, मैदान समतलीकरण और वृक्षारोपण जैसे कार्य किए। लेकिन 15 दिन में भुगतान देने का नियम यहाँ महीनों से लागू ही नहीं हो पा रहा है। मजदूरों का कहना है कि वे सुबह से शाम तक कड़ी मेहनत करते हैं, लेकिन मेहनताना मिलने में दो–दो महीने लग जाते हैं। कई पंचायतों में मजदूरी का भुगतान तो तीन महीने से भी अधिक समय से अटका हुआ है।
*तकनीकी स्वीकृतियों और जॉबकार्ड सत्यापन में देरी बड़ी वजह*
मनरेगा भुगतान रोकने के पीछे कई तकनीकी कारण भी सामने आए हैं। जनपद स्तर पर तकनीकी सहायकों की कमी, जॉबकार्ड का समय पर सत्यापन न होना, MIS में मजदूरी प्रविष्टि देरी से होना और कार्यस्थलों की जियो-टैगिंग समय पर न होने की वजह से हजारों मजदूरों का भुगतान अटक गया है। रिपोर्ट के अनुसार, कई पंचायतों में कार्य तो पूरा दिखाया जाता है लेकिन संबंधित अधिकारियों द्वारा उसकी डिजिटल एंट्री समय पर नहीं की जाती। इससे मजदूरों की पूरी फाइल मध्यप्रदेश शासन तक नहीं पहुँच पाती और भुगतान स्वीकृत नहीं हो पाता।कई ऐसी पंचायतें भी हैं जहाँ कार्यस्थल की मस्टररोल सही तरीके से नहीं भरी जाती या फर्जी नाम जोड़ दिए जाते हैं, जिसके चलते वास्तविक मजदूरों को भी परेशानी झेलनी पड़ती है।
*रोजगार की उम्मीद में बैठे मजदूरों की जेब ख़ाली*
इस समय ढीमरखेड़ा जनपद के लगभग सभी गांवों में मजदूर बेरोज़गार बैठे हैं। कई मजदूर बताते हैं कि यदि भुगतान मिल जाए तो वे फिर से काम पर लग जाएँ, लेकिन पिछले कार्यों की मजदूरी न मिलने की वजह से वे घर से बाहर निकलने में भी हिचकते हैं। ग्रामीणों के पास खेती के दिन खत्म होने के बाद मनरेगा ही एकमात्र रोज़गार रहता है। लेकिन भुगतान की अनिश्चितता ने उनके सामने बहुत बड़ी आर्थिक चुनौती खड़ी कर दी है। राशन के लिए पैसे नहीं, बच्चों की फीस भरने में दिक्कत, त्योहारों में ख़ुशी की जगह चिंता ऐसी स्थिति मजदूरों के जीवन में गहराती जा रही है। कई मजदूरों ने साहूकारों से उधार लेना शुरू कर दिया है, जिससे उनकी परेशानी और बढ़ रही है।

टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें